न्यूज127
“कल ‘सैयारा’ देखने गया था। हॉल में कुल जमा 20 लोग भी नहीं थे — लगा प्राइवेट शो चल रहा है।
पर मेरा असली शो अंदर चल रहा था… मैं लगातार ढूंढ रहा था कि इसमें ‘रोना’ कब आएगा।
इंटरवल तक कुछ नहीं हुआ। सोचा शायद भूख से इमोशंस अटके पड़े हैं — तो कोक, पिज़्ज़ा और पॉपकॉर्न से पेट पूजा की।
अब तय कर लिया — चाहे जो हो, अब तो रोना है! पर अफ़सोस… आँखें सूखी रहीं।
कई बार तो इस बात पर ही रोना आ गया कि रो क्यों नहीं पा रहा।
खुद पर शक होने लगा — क्या मैं इतना भावहीन हो गया हूँ? क्या मेरे अंदर दया, करूणा, सामाजिक ज़िम्मेदारी कुछ बचा भी है?
रोने की भी एक सामाजिक गरिमा होती है — और मैं उसमें फेल हो गया।
बस यही लग रहा था कि काश पड़ोसी सीट वाला देखे और कहे: “भाई साहब अंदर से कितना टूटा हुआ है ये इंसान…” ????
खैर…
अगर वाकई दिल से रोना हो,
तो ‘मैरी कॉम’ देखिए।
संघर्ष, जुनून, और असली देशभक्ति क्या होती है — महसूस होगा।
आपके नयन कोर पर कुछ बूँदें खुद-ब-खुद आकर रुक जाएँगी — बिना कोक-पिज़्ज़ा के सहारे।





