लॉक डाउन के 49 दिन मकान की छत देखकर गुजारे, बदल गई सूरत




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नवीन चौहान
कोरोना संक्रमण के चलते लॉक डाउन के 49 दिन लोगों के बहुत भारी गुजरे। देश की जनता ने घरों में कैद होकर मकान की छत और दीवारे देखकर कर गुजारे है। बच्चे रो रहे है। मां से पिटाई खा रहे है। ​बाल ना कटने के कारण इंसान की सूरत तक बदल गई है। कुछ लोग बाबा नजर आने लगे है। लेकिन जान है तो जहान है। इस सूत्र वाक्य का देश की जनता अनुसरण कर रही है। हालांकि लॉक डाउन—2 के बाद बाजारों को मिली छूट और इंसान को सामान खरीदने की आजादी ने मानसिक तनाव कुछ हद तक तो कम किया है। लेकिन रोजगार और आय के संसाधन ना होने की चिंता मनुष्यों को सता रही है। फिलहाल आने वाले दिनों में कोरोना के संकट को लेकर देश की जनता पूरी तरह से तैयार नही है। यही कारण है कि बाजार में निकलने के ​दौरान लोग सोशल डिस्टेंसिंग का बखूवी पालन नही कर रहे है। जिसके भयावय परिणाम आने वाले दिनों में देखने को मिलेंगे।
चीन के बुहान से शुरू हुआ कोरोना संक्रमण लाखों लोगों की जिंदगी लील लेने के बाद भारत पहुंचा था। लेकिन भारत के सजग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वक्त रहते ही कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए पूरे देश में लॉक डाउन घोषित कर दिया। देश की जनता को घरों में रहने की भावनात्मक अपील की। 21 दिनों के लॉक डाउन ने संक्रमण को काफी हद तक फैलने से रोक लिया। जिसके बाद लॉक डाउन—2 लागू किया गया और वर्तमान में 14 दिनों के लिए लॉक डाउन अवधि जारी है। कुल मिलाकर लॉक डाउन के 49 दिन बीत चुके है। इन बीते दिनों में देश के हालात भी पूरी तरह से बदल चुके है। लोग गरीबों की गरीबी और भूखमरी को नजदीक से देख चुके है। बाजारों की चाट—पकौड़ों, गोल गप्पों और स्वादिष्ट मिठाईयों के नामों को भी भूलने लगे है। नागरिेकों का जीवन दाल रोटी,सब्जी पर निर्भर होकर रह गया है। लेकिन हम बात कर रहे एक आम आदमी की दिनचर्या की तो वह भी बदल गई है। इंसान को कोई काम नही रह गया है। वह सिर्फ घर की दीवारों को ही देख रहा है। सुबह उठने और नियमित स्नान आदि के बाद उसके पास रोटी खाने के अलावा कोई काम नही है। कभी कमरे में तो कभी बरामदे में और शाम ढले तो छत से ही दूसरे लोगों को देख रहा है। अधिकतम समय टीवी और मोबाइल पर इंटरनेट यूज करने में व्यतीत कर रहा है। रूक—रूक कर दिमाग में बस एक चिंता सताती है कि घर कैसे चलेगा। अगर कारोबार में है तो व्यापार की चिंता। प्राइवेट नौकरी है तो वेतन की चिंता। निजी काम है तो घर चलाने की चिंता। कुल मिलाकर इंसान चिंता में घुले जा रहा है।
बीते 49 दिन मनुष्य के यह सोचने विचारने में गुजर गए कि आगे क्या होगा। लॉक डाउन कब खुलेगा। लेकिन देश की वर्तमान कोरोना संक्रमण की रिपोर्ट पर नजर डाले तो वह लॉक डाउन खोलने की अनुमति देने के कतई मूढ में नही है। संक्रमण बढ़ रहा है। खतरे के बादल मंडरा रहे है। संक्रमण आसपास ही हवा में विचरण कर रहा है। तो सबसे अहम बात ये है कि आखिरकार आगे होगा क्या। देश के हालात कब बदलेंगे। ये मुसीबत कब टलेगी। आगे की जिंदगी सोशल डिस्टेंसिंग पर ही गुजारनी होगी। ये तमाम सवाल इंसान के दिमाग में घूम रहे है। लेकिन जबाब कोई नही है। आगे क्या होगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल ही नही नामुमकिन है। कोरोना संक्रमण का समूल नष्ट होना इतना आसान नही है। तो फिर आगे की स्थिति कैसी होगी। फिलहाल ये सवाल तो भविष्य के गर्भ में छिपा है। लेकिन हमारे हाथ में कुछ करने को है तो वह सिर्फ और सिर्फ सोशल डिस्टेंसिंग ही है। यही फार्मूला हमको कोरोना के वायरस से बचाकर रख सकता है। फिलहाल सरकार के निर्देशों का पालन करने के लिए अलावा कोई रास्ता नही है। तो हमारी अपील है कि आप धैर्य को बनाए रखिए और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते रहे।