मुख्यमंत्री का चेहरा बदला तो कार्यकर्ताओं की निष्ठा बदल गई, पोस्टर से गायब त्रिवेंद्र




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नवीन चौहान

मुख्यमंत्री की कुर्सी पर चेहरा बदला तो भाजपाईयों की निष्ठा भी बदल गई। कार्यकर्ताओं ने बधाई देने वाले तमाम पोस्टर से त्रिवेंद्र सिंह रावत गायब हो गए। उनकी फोटो अब पोस्टर बैनर में जरूरी नही रही। कार्यकताओं ने मदन कौशिक को प्रदेश अध्यक्ष पद की बधाई दी गई तो त्रिवेंद्र सिंह रावत को गैर जरूरी करार दिया। जिस त्रिवेंद्र के साथ सेल्फी खिंचाने के लिए कार्यकर्ता बेकरार दिखाई देते थे, अब बेरूखी दिखा रहे है। सब कुर्सी का खेल है।
उत्तराखंड की राजनीति में बीते एक सप्ताह में भयंकर भूचाल रहा। भूचाल जब शांत हुआ तो सबकुछ बदला हुआ था। मुख्यमंत्री की कुर्सी पर चेहरा बदला हुआ था। भूचाल के पीछे भाजपा के विधायक शामिल थे। जिन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी को चारों ओर घेर लिया। कुर्सी पर बैठे त्रिवेंद्र को गिराने में सभी विधायक एकजुट हो गए। असंतुष्ट विधायकों को मनाने के लिए भाजपा हाईकमान ने भी चेहरा बदल दिया। लेकिन सबसे रोचक बात यह रही कि बधाई देने वाले पोस्टर से ही त्रिवेंद्र सिंह रावत को गायब कर दिया गया। हालांकि यह कोई नई बात नही है। किसी जमाने में बीसी खंडूरी उत्तराखंड और भाजपा के लिए जरूरी थे। लेकिन आज वह गैर जरूरी हो गए है। यह जमाने का दस्तूर है। उगते सूरज को ही सलाम किया जाता है। भाजपाईयों के लिए गैरतलब है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत डूबता सूरज नही है। उनकी ईमानदारी और प्रदेशहित में लिए गए निर्णय ने उत्तराखंड की चरमराई अर्थव्यवस्था को संतुलित रखने में महती भू​मिका अदा की है। उनकी कुर्सी का जाना एक राजनैतिक स्टंट हो सकता है। त्रिवेंद्र सिंह रावत एक बड़ा चेहरा बन चुके है। जिनको दरकिनार करना अब भाजपा की भूल हो सकती है। वैसे भी सीएम का चेहरा बदलने का प्रयोग कितना सफल होगा यह तो वक्त बतायेगा। अभी भाजपा को जनता की अदालत में जाना है। उप चुनाव और आगामी 2022 के विधानसभा चुनाव की अग्निपरीक्षा से गुजरना है। इस चुनाव में भी भाजपा त्रिवेंद्र सिंह रावत के चार साल बेमिशाल को ही गिनायेगी। वैसे भी​ त्रिवेंद्र सिंह रावत पर चार सालों में भ्रष्टाचार का कोेई आरोप नही है। उनका दामन बेदाग है। गरीबों के हितों में किए गए कार्य जनता को याद है। यह जनता सब जानती समझती है।