नवीन चौहान, हरिद्वार। पत्रकारों के दामन पर दाग और मालिकों के दामन उजले क्यों हैं? जी हां हम पत्रकारों की उस हकीकत से परदा उठा जा रहे हैं जिसे कोई जानना नहीं चाहता है और अगर वह जानता है तो उस बात को समझना नहीं चाहता है। वास्तविक पत्रकार तो ईमानदार ही होता है। उसके दिल में आग होती है बिगड़े सिस्टम को सुधारने की। पत्रकार अपनी पूरी कोशिश भी करता है। लेकिन कुछ हालात और कुछ परिस्थितिया एक पत्रकार को बीच भंवर में छोड़ देती है। जिससे निकलना एक पत्रकार के बस की बात नहीं होती है।
पत्रकारिता एक जुनून है। वह जोश और जुनून जो एक सामान्य इंसान के भीतर की आत्मा को जगाकर एक पत्रकार बनने पर विवश कर देती हैं। समाज में जो कुछ भी गलत हो रहा उसको सुधारने की आग पैदा कर देती हैं। एक पत्रकार की कोशिश यही होती है समाज में जो कुछ भी घटित हो वह सब कानून के दायरे में हो। सिस्टम से हो। सभी क्षेत्र के लोग चाहे नेता हो या अभिनेता, कारोबारी हो प्रशासनिक अफसर हो या लोक सेवक और समाज के आम नागरिक सभी लोग भारतीय कानून का पालन करें। इसी सिस्टम को सुधारने की चाहत ही पत्रकार को जन्म देती है। इसी पत्रकार को गड़बड़ सिस्टम से जूझने के लिये अखबार, टीवी चैनल से जुड़ना होता है। इन अखबारों और टीवी चैनल के माध्यम से ही पत्रकार समाज की समसामयिक घटनाओं को प्रकाशित कर सकता है। लेकिन एक सच यह भी है कि इन अखबारों और टीवी चैनल के मालिक होते हैं। जहां मालिक शब्द जुड़ जाता है तो स्वाभाविक है कि उसके यहां काम करने वाले लोगों को नौकर कहा जायेगा या पत्रकार ये आप खुद ही समझ सकते हैं। इन मालिकों ने अखबारों और चैनलों को चलाने के लिये प्रधान संपादक की नियुक्ति की होती है। वह प्रधान संपादक ही पत्रकार के हितों की बात मालिकों तक पहुंचाता है। पत्रकारों में से ही श्रेष्ठ व्यक्ति को प्रधान संपादक का दायित्व दिया जाता है। लेकिन बदलते वक्त और मालिकों की कॉरपोरेट इंडस्ट्री में तब्दील होने के चलते प्रधान संपादक से ऊपर एक मैनेजर की नियुक्ति की जाने की परंपरा शुरू हो गई है। जो लाभ हानि की गणना का हिसाब मालिकों तक पहुंचाता है। अब आप सोच रहे होंगे कि बात पत्रकारों की हो रही है तो मालिक बीच में कहां से आ गये। जी हां ये ही मैनेजर साहब मालिकों के शुभचिंतक प्रधान संपादक को दरकिनार कर पत्रकारों के हितों की अनदेखी करने में महती भूमिका अदा करते हैं। इन मैनेजरों को लगता है कि पत्रकारों का समाज में दबदबा होता है। इनको मोटी आमदनी होती है। मंत्री से लेकर प्रशासनिक अफसर और सभी विभाग के कर्मचारी पत्रकारों से खौफ खाते है। इन पत्रकारों को वेतन की कोई जरुरत नहीं होती है। यहां से पत्रकारों के दामन पर दाग लगना शुरू होता है। सिस्टम को सुधारने की आग दिल में जगाये रखने वाला पत्रकार अपने पेट की आग को शांत नहीं कर पाता है। इस स्थिति में पत्रकार को अपने परिवार का भरण पोषण करना तो एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी की बात है। यही पेट की मजबूरी ही कई बार पत्रकारों के दामन को दागदार बना देती है। जबकि हकीकत में पत्रकार जिंदगी के बीच भंवर में फंसे होने के बावजूद दिल में सिस्टम को आग को जलाये रखना चाहता है। पत्रकार की इसी कशमकश में सच्ची पत्रकारिता कहीं गुम हो गई है।
इंडस्ट्री में तब्दील हो चुके है अखबार और टीवी चैनल
हरिद्वार। अखबार और टीवी चैनल कोई व्यवसाय नहीं अपितु जनहित में समाजसेवा है। लेकिन आज के दौर में अखबारों और टीवी चैनल इंडस्ट्री में तब्दील हो चुके हैं। हजारों हजार करोड़ का प्रतिवर्ष का टर्न ओवर हो गया है। इन्हंी इंडस्ट्री में काम करने वाले तमाम पत्रकारों को कानून के मुताबिक वेतन और भत्ते नहीं दिये जाते है। किसी पत्रकार की इतनी हिम्मत नहीं कि वह अपनी आवाज को मालिकों के कानों तक पहुंंचा सके। यहीं कारण है कि पत्रकारों के हितों के लिये बना मजीठिया कानून प्रभावी ढंग से लागू नहीं हो पाया। मजीठिया के विरोध में लगभग सभी मालिक एकजुट है। जबकि पत्रकार अपनी नौकरी खो जाने के भय से अलग-थलग पड़े है। पत्रकारों को नौकरी से निकाले जाने का डर सताता है।
पत्रकारों की नहीं हो रही शादी
हरिद्वार। पत्रकारिता करने का खामिजाया पत्रकारों को अपनी जिंदगी की कीमत देकर चुकाना पड़ रहा है। पत्रकारों को शादियां तक खतरे में पड़ने लगी है। बेटियों के परिवार वालों ने अपनी बेटी देने तक से इंकार कर दिया है। इस घटना ने पत्रकारों का अपनी निजी जिंदगी के बारे में सोचने पर विवश कर दिया है। आखिर हम कर क्या रहे हैं?
लोकतंत्र का सबसे मजबूत स्तंभ है मीडिया
हरिद्वार। लोकतंत्र का सबसे मजबूत स्तंभ मीडिया ही है। मीडिया के खौफ से समाज में आज भी बहुत से गलत काम खुलेआम नहीं होते हैं। देश की सरकार पत्रकारों को नजर अंदाज नहीं कर सकती है। मीडिया के भय ही सरकारी दफ्तरों में बाबू खुलेआम जेब गरम नहीं कर सकता है। मीडिया के कारण आज भी देश में जनता को इंसाफ मिल जाता है। कई भरष्टचार उजागर हो जाते हैं।
पत्रकारों के सिर पर ग्लैमरस का जादू
हरिद्वार। पत्रकारों पर ग्लैमरस का जादू सिर चढ़ कर बोलता है। समाज में मिलने वाला मान सम्मान और प्रतिष्ठा इसी का प्रमाण है। सरकार के मंत्री से लेकर नौकरशाह और सरकारी अधिकारी पुलिस अफसर सभी पत्रकारों के सबसे ज्यादा नजदीक होते है। यही कारण है कि पत्रकारिता आज आकर्षण का केंद्र बन गई है। कारोबार जगत के लोग भी पत्रकार बनने का आतुर रहते है।
पत्रकारों के दामन पर दाग तो मालिकों के दामन उजले क्यों है?


