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मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने नई दिल्ली में केंद्रीय जल शक्ति मंत्री सीआर पाटिल से भेंट की। इस दौरान मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड के सामाजिक एवं आर्थिक विकास के लिए जल एक महत्वपूर्ण संसाधन हैं। जल विद्युत परियोजनायें राज्य की सकल घरेलु उत्पाद में वृद्धि का मुख्य कारक हैं।
सीएम ने कहा कि उत्तराखण्ड की विद्युत ऊर्जा की मांग की पूर्ति के लिए खुले बाजार से प्रतिवर्ष 1000 करोड़ रूपये की ऊर्जा का क्रय किया जाता है। राज्य में उपलब्ध जल स्त्रोतों से लगभग 25 हजार मेगावाट जल विद्युत क्षमता का आंकलन किया गया है, परंतु वर्तमान में केवल 4200 मेगावाट क्षमता का ही दोहन हो पा रहा है।
उन्होंने कहा कि प्रमुख सचिव, प्रधानमंत्री कार्यालय की अध्यक्षता में हुई समीक्षा में अलकनंदा एवं भागीरथी नदी घाटी में प्रस्तावित 70 परियोजनाओं में से केवल 7 परियोजनाएं जिनका निर्माण कार्य 50 प्रतिशत से अधिक हो गया है उन्हीं का निर्माण जारी रखने एवं कोई भी नई परियोजना प्रारंभ न किए जाने के निर्देश दिए गए हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि हल्द्वानी में बनने वाली जमरानी बांध बहुउद्देश्यीय परियोजना से हल्द्वानी एवं सीमावर्ती क्षेत्रों में वर्ष 2051 तक की अनुमानित जनसंख्या के लिए 170 एमएलडी पेयजल उपलब्ध होगा। इसके अतिरिक्त, उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश में लगभग 57,000 हेक्टेयर कृषि भूमि हेतु सिंचाई के लिए जल उपलब्ध होगा। मुख्यमंत्री ने केंद्रीय मंत्री को यह भी अवगत कराया कि वर्ष 2023 के प्राइस लेवल के स्तर पर परियोजना की लागत 3808.16 करोड़ रूपये है। उन्होंने केंद्रीय मंत्री से पुनरीक्षित लागत PMKSY-AIBP के अंतर्गत वित्त पोषण की स्वीकृति का भी अनुरोध किया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि देहरादून जनपद के सहसपुर विकासखंड में स्वारना नदी पर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी जलाशय का निर्माण ₹ 203.3 करोड़ की लागत से किया जाना प्रस्तावित है। इस परियोजना के इंटर स्टेट क्लीयरेंस का प्रकरण अपर यमुना बोर्ड में विचाराधीन है। इसके लिए भी मुख्यमंत्री ने केंद्रीय मंत्री से अनुमोदन प्रदान करने का अनुरोध किया।
मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय मंत्री को यह भी अवगत कराया कि उत्तराखण्ड सरकार द्वारा लखवाड़ बहुउद्देशीय परियोजना को शीघ्र पूर्ण करने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति गठन की गई है। जो इसकी नियमित समीक्षा कर रही है। जल संसाधन, नदी विकास एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा हाल ही में 11-12 जुलाई को परियोजना स्थल के भ्रमण के उपरान्त समीक्षा बैठक की गयी थी। जिसमें केन्द्रीय जल आयोग से लगभग दस वर्ष पूर्व से किए गए अनुबंध के सापेक्ष अभी तक अपेक्षित ड्राइंग प्राप्त न होने के कारण कार्य प्रभावित होने का प्रकरण संज्ञान में लाया गया था।