नवीन चौहान/दीपक चौहान
नमामि गंगा घाट हरिद्वार में एक साथ 51 सौ यज्ञ कुंडों में प्रज्जवलित हुई अग्नि से न केवल गंगा का घाट रोशन हो उठा बल्कि यज्ञ की पवित्र सुंगध से वातावरण को भी सुंगधित कर मनमोहक बना दिया। मौका था महान समाज सुधारक महर्षि दयानदं जी की 200 वीं जयंती पर आयोजित कुंडीय यज्ञ का।

डीएवी शिक्षण संस्थाएं, जो शिक्षा और संस्कृतियों को बढ़ावा देने में अग्रणी भूमिका निभाती हैं, सभी ने मिलकर हरिद्वार में ऐतिहासिक और भव्य यज्ञ आयोजन किया। इस आयोजन में 5100 यज्ञ कुंडों में अग्नि प्रज्वलित की गई, जो एक अभूतपूर्व धार्मिक और आध्यात्मिक कार्यक्रम था। महान समाज सुधारक महर्षि दयानंद के 200वीं जयंती के अवसर पर 5100 कुंडीय यज्ञ करवाया गया।

डीएवी देहरादून की प्रधानाचार्या, अध्यापकगण के साथ-साथ 1500 विद्यार्थियों ने इस यज्ञ अनुष्ठान में भाग लिया। इस कार्यक्रम का उद्देश्य न केवल धार्मिक आस्था को प्रगाढ़ करना था, बल्कि समाज में शांति, सद्भाव और वातावरण के प्रति लोगों में संवेदनशीलता को भी बढ़ावा देना था।

वैदिक विधान से हवन पूजन मंत्र उच्चारण से युक्त लोकहित के विचार से की गई पूजा को यज्ञ कहते हैं । इस यज्ञ प्रक्रिया का पालन करते हुए मनुष्य अपनी आत्मशुद्धि ,आत्मबल वृद्धि और आरोग्य की रक्षा करता है, इसी तथ्य से प्रभावित होकर डीएवी कालेज प्रबंधन समिति के अध्यक्ष पद्म श्री पूनम सूरी जी ने डीएवी विद्यालयों को इस भव्य आयोजन का सुझाव दिया। यह यज्ञ आयोजन हरिद्वार में गंगा जी के घाट पर गोधूलि बेला में संपन्न हुआ इस आयोजन की विशेष बात यह रही कि डीएवी में अध्यनरत छात्रों ने ईश्वर व वैदिक संस्कृति के प्रति अपने निष्ठाभाव को प्रदर्शित करते हुए एकल रूप से यज्ञ किया।

एक और गंगा जी की पवित्र जल धारा तो वहीं दूसरी और अपने बसेरे की ओर कदम बढ़ाते पशु- पक्षियों के साथ-साथ सूर्य की मंदिम होती किरणों के बीच हवन कुंडों में प्रज्वलित अग्नि, प्रतीक बनी हमारी आस्था, हमारे विश्वास व विश्व कल्याण की हमारी कामना का। वैदिक ध्वनि , शंखनाद व वैदिक मंत्रोच्चारण ने जहां संपूर्ण वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार किया वहीं आसपास उपस्थित सभी जनों के हृदय को वैदिक युग की अनुभूति कराई।

इस आयोजन ने समाज में धर्म, संस्कृति और परंपराओं के प्रति सम्मान और जागरूकता को बढ़ाया। हवन कुंड से उत्सर्जित धुआं व मंत्रोच्चारण से वातावरण में फैली सकारात्मक ऊर्जा , शरीर व मन को ताजगी प्रदान करने के साथ-साथ वातावरण को शुद्ध कर, पर्यावरण संरक्षण में भी विशेष योगदान देती है। डीएवी संस्थाएंँ विद्यार्थियों को न केवल शैक्षिक दृष्टि से प्रगति के लिए प्रेरित करती हैं, बल्कि उन्हें अपनी संस्कृति और आध्यात्मिकता से भी जोड़े रखती हैं।

प्रधानाचार्या शालिनी समाधिया जी ने अपने विचारों को साझा करते हुए कहा कि इस प्रकार के आयोजन समाज में आध्यात्मिक जागरूकता और पर्यावरण की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकते है। हमें इस प्रकार के आयोजनों में बढ़-चढ़ कर भाग लेना चाहिए ताकि हम अपनी सांस्कृतिक धरोहर को सहेज सकें और एक स्वस्थ व सामंजस्यपूर्ण वातावरण का निर्माण कर सकें , जो समाज में शांति, सद्भाव और एकता की भावना को और मजबूत करेगा।


