बहुपति विवाह की परंपरा से लेकर वायरल आधुनिक विवाह तक: हिमालयी समाज के सांस्कृतिक ताने-बाने की पड़ताल




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न्यूज127
हाल ही में हिमाचल प्रदेश में हुए एक बहुपति विवाह ने सोशल मीडिया पर काफी ध्यान आकर्षित किया है। कई लोगों के लिए यह एक आश्चर्यजनक घटना रही, तो कई ने इसे भारतीय समाज की सांस्कृतिक विविधता और जटिलता की मिसाल बताया। पर क्या यह वास्तव में नया है ? या यह उस परंपरा की आधुनिक झलक है जो सदियों से उत्तराखंड और हिमाचल के खास क्षेत्रों में सामाजिक ढांचे का हिस्सा रही है?
जौनसार-बावर, रवाई और सिरमौर: जहां बहुपति प्रथा कभी सामाजिक व्यवस्था थी
उत्तराखंड के जौनसार, रवाई, जौनपुर क्षेत्र और हिमाचल के सिरमौर जिले में खश समाज की सामाजिक व्यवस्था में बहुपति प्रथा (Polyandry) प्रचलित रही है। यह प्रथा केवल एक विवाह पद्धति नहीं थी, बल्कि संपत्ति के विभाजन से बचाव, पारिवारिक एकता, और आर्थिक स्थिरता की दृष्टि से एक सामाजिक समाधान थी।
पारंपरिक रूप से, जब एक महिला का विवाह परिवार के सबसे बड़े भाई से होता था, तो उसके सभी छोटे भाइयों को भी उस विवाह में पति का अधिकार मिलता था। विवाह की रस्में केवल बड़े भाई के साथ होती थीं, जबकि छोटे भाई प्रतीकात्मक रूप से इस व्यवस्था में शामिल होते थे।
यह व्यवस्था तब की है जब कृषि पर आधारित जीवन में ज़मीन की बँटवारे से जीवन-यापन कठिन हो सकता था। इसलिए, एक पत्नी और एक संयुक्त परिवार की अवधारणा ने समाज को स्थिरता दी।
जौनसारी समाज में बहुपति और बहुपत्नी – दोनों प्रथाएं
यह भी कम ज्ञात तथ्य है कि जौनसारी समाज में न केवल बहुपति, बल्कि बहुपत्नी प्रथा भी सामाजिक रूप से स्वीकार्य रही है। यह दोनों ही व्यवस्थाएं सामाजिक संतुलन, कार्य विभाजन और पारिवारिक सहयोग की भावना को मजबूती देती थीं।
इस समाज में मैंने स्वयं देखा है कि बहुपति या बहुपत्नी होना न तो शर्म की बात मानी जाती थी और न ही किसी “मजबूरी” का प्रतीक, बल्कि यह एक सामूहिक पारिवारिक जिम्मेदारी की झलक थी।
क्या बदला है आज ?
हाल ही में हिमाचल में हुआ बहुपति विवाह पारंपरिक ढांचे से कुछ अलग दिखाई देता है। इसमें सभी पतियों की सहमति और सहभागिता स्पष्ट रूप से आधुनिक सोच का प्रतिबिंब है। यह विवाह सामाजिक आवश्यकता से अधिक व्यक्तिगत निर्णय और आधुनिक सहमति आधारित संबंधों की मिसाल प्रतीत होता है। यह बदलाव दर्शाता है कि जहां परंपरा जड़ नहीं है, वहीं आधुनिकता भी पूरी तरह परंपरा से अलग नहीं है। समाजशास्त्रियों की नजर में
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह घटना भारतीय समाज में लचीलेपन और सह-अस्तित्व की प्रवृत्ति को दर्शाती है। भारत में विवाह एक सामाजिक संस्था है, और इस प्रकार की घटनाएं इस संस्था के भीतर नए विचारों और प्रयोगों की गुंजाइश को उजागर करती हैं।
कानूनी और सामाजिक चुनौती
वर्तमान में भारत का विवाह कानून, विशेषकर हिंदू विवाह अधिनियम, 1955, केवल एक पति और एक पत्नी के विवाह को मान्यता देता है। बहुपति या बहुपत्नी विवाह को कानूनी मान्यता नहीं प्राप्त है। ऐसे में इस तरह के विवाह सामाजिक या पारिवारिक स्तर पर चाहे जितने स्वीकृत हों, उनकी कानूनी वैधता अभी भी प्रश्नचिह्न के घेरे में है।
परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संगम
यह घटना सिर्फ एक विवाह नहीं, बल्कि परंपरा और आधुनिकता के टकराव और समन्वय की गाथा है। जौनसार और हिमाचल की पारंपरिक बहुपति प्रथा हमें यह सिखाती है कि हर सामाजिक व्यवस्था का एक सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भ होता है। आधुनिक समाज इन्हीं धरोहरों से सीख लेकर यदि नई व्यवस्थाएं अपनाता है, तो वह केवल प्रयोग नहीं, बल्कि संवाद है—पीढ़ियों के बीच, समय के साथ।