तीन सरकारें बदली किन्तु संतों को समाधि के लिए नहीं दे पाई जमीन
आज भी गंगा में बहाए जा रहे संतों के शव, बढ़ा रहे गंगा का प्रदूषण
महेश पारीक
हरिद्वार। त्रिपदगामिनी मां गंगा को जीवनदायिनी, पापनाशिनी, मोक्षदायिनी कहा जाता है। जन्म से लेकर मृत्योपरांत तक गंगा व्यक्ति के जीवन का अंग बनती है। मां गंगा करोड़ों लोगों के जीने का न केवल साधन है बल्कि गंगा का जल भारत की रक्तवाहिनियों में बहने वाले रक्त की भांति है। जो भारतीयता को पोषण देता है। ंदेश ही नहीं अपितु विदेशियों की भी मां गंगा के प्रति अगाध श्रद्धा है। यही कारण है कि गंगा को मां कहकर सम्बोधित किया जाता है। तीनों लोकों में गमन करने वाली मां गंगा की स्थित लाख कोशिशों के बाद आज दयनीय होती जा रही है। गंगा रोकथाम के बाद भी दिन प्रतिदिन प्रदूषित होती जा रही है। इसका कारण और कोई नहीं हम ही हैं। जो स्थिति आज मां गंगा की है उसको देखते हुए वह दिन दूर नहीं जग मां गंगा इतिहास की बात बनकर रह जाएगी।
गोमुख से गंगासागर तक मां गंगा ऊबड़-खाबड़, सकरे, रास्तों से गुजरती हुई, चट्टानों का सीना विरती हुई मैदान की ओर निरंतर कल-कल निनाद करती हुई प्राचीनकाल से बहती चली आ रही है। जिसकी धारा में असीम सुख की अनुभूति होती है। जिसकी बहती धारा में कभी सूर के पद, तो कभी बकीर के दोहे, रसखान के छंद तो कभी तुलसी की चौपाईयों के स्वर सुनाई देते हैं, जो बरबस ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। किन्तु वर्तमान में इन सबके अलावा जो दिखाई व सुनाई देता है वह है गंगा का प्रदूषण। बात यदि धर्मनगरी हरिद्वार की करें तो यहां मां गंगा की हालत इतनी बुरी है कि तमाम गंदे नाले सीधे गंगा में बहाए जा रहे हैं। शवों की राख, शव व पूजा सामग्री का सीधे गंगा में डालना हमारी मां के प्रति मानसिकता को जाहिर करता है। हमारे कृत्यों के कारण सनातन संस्कृति का पोषण करने वाली गंगा आज अपनी की दुर्दशा पर आंसू बहाने के लिए मजबूर है।
मोदी सरकार ने चुनाव से पूर्व बनारस के गंगा घाट से यह कहकर चुनाव लड़ा था कि मां गंगा ने मुझे बुलाया है, और में गंगा को प्रदूषण मुक्त करूंगा। उसके बाद सत्ता संभालने पर मोदी को मां गंगा की यद आई और उन्होंने अलग से गंगा प्रदूषण मुक्ति के लिए के गंगा मंत्रालय का गठन किया। उसका जिम्मा तत्कालीन केंद्रीय मंत्री उमा भारती को सौंपा। उस समय उम्मीद जगी थी कि अब गंगा की स्थिति में सुधारहोगा, किन्तु नतीजा ढाक के तीन पात वाला ही रहा। हरिद्वार में इन नालों को बंद करवाने के लिए कई तरह की बयानबाजी की गई। करोड़ों रुपया पानी की तरह बहाया भी गया, किन्तु आज भी गंगा में नाले सीधे प्रवाहित हो रहे हैं।
स्थिति यह है कि आज भी कुतंलों मुर्दों की राख व अस्थियां सीधे गंगा में प्रवाहित हो रही हैं। इतना ही नहीं शवों को सीधे ही गंगा में प्रवाहित किया जा रहा है। गंगा की मुख्यधारा नीलधारा में आज भी संतो ंके शवों को प्रवाहित किया जा रहा है और ये शव गंगा के जल में ऊपर ही तैरते रहते हैं। जिस कारण गंगा प्रदूषित हो रही है।
संतों के शरीर को जल समाधि दिए जाने की लंबे समय से प्रथा रही है। गंगाकी दुर्दशा को देखते हुए संतों ने ठोस पहल करते हुए संतो के शवों को जल समाधि के स्थान पर भू समाधि देने का प्रस्ताव तत्कालीन भाजपा की निशंक सरकार के समक्ष रखा था। सरकार ने भी संतो ंके इस फैसले का स्वागत किया था। भू समाधि देने के लिए संतों ने सरकार से एक नियत स्थान उपलब्ध कराने को कहा था। सरकार इस पर राजी भी हो गई, लेकिन सरकार बदलीं किन्तु संतों को भूसमाधि के लिए स्थान उपलब्ध नहीं कराया जा सका। जिसका खामियाजा मां गंगा को प्रदूषण के रूप में झेलना पड़ रहा है। हरिद्वार में नीलधारा पर बने ठोकर नंबर 10 पर आज भी संतो ंके शवों को जल समाधि दी जा रही है। स्थिति यह है कि जल समाधि देने के कुद दिनों बाद शव जल में ऊपर तैरने लगते है। और उससे गंगा का प्रदूषण बढ़ रहा है। आज भी दर्जनों शव गंगा में तैर रहे हैं।
हालांकि गंगा में शव को देखकर उसे निकालने का कार्य पुलिस द्वारा किया जाता है, किन्तु बैरागी कैंप व ठोकर नंम्बर दस पर शव गंगा में तैरते रहते हैं। स्थिति यह है कि गंगा में जल कम होने के कारण शव ऊपर आ जाते है। और उन शवों को जानवर भी नोचकर प्रदूषण को बढ़ाने का काम करते हैं। जिस हिसाब से गंगा को लेकर कार्य किया जा रहा है उसको देखते हुए गंगा का प्रदूषण से मुक्त होना संभव नजर नहीं आ रहा।
अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाने के लिए मजबूर गंगा


