गृहमंत्री अमित शाह का घुसपैठियों पर डिटेक्ट–डिलीट–डिपोर्ट मॉडल, विपक्ष का वाकआउट
नई दिल्ली/देहरादून।
लोकसभा में बुधवार को अवैध घुसपैठ, चुनाव सुधारों और वीवीपैट–ईवीएम की विश्वसनीयता के मुद्दे पर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच जोरदार टकराव देखने को मिला। गृह मंत्री अमित शाह के भाषण के दौरान विपक्षी दलों ने अचानक सदन से वाकआउट कर दिया, जबकि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला बार-बार उन्हें बैठने और चर्चा जारी रखने की अपील करते रहे। सत्ता पक्ष ने विपक्ष के कदम को “सच्चाई से भागने” की संज्ञा दी।
घुसपैठियों पर डिटेक्ट–डिलीट–डिपोर्ट मॉडल: उत्तराखंड में भी शुरू प्रक्रिया
गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में अपने संबोधन में कहा कि एनडीए सरकार ‘‘डिटेक्ट, डिलीट और डिपोर्ट’’ की नीति पर बिना किसी दबाव के कार्य करेगी। उन्होंने कहा, “ये 200 बार भी बहिष्कार करेंगे तो भी हम एक भी घुसपैठिये को देश में रहने नहीं देंगे। यह एनडीए की स्पष्ट नीति है—संवैधानिक प्रक्रिया के तहत पहचान कर, नाम हटाकर, देश से बाहर भेजना।”

उन्होंने कहा कि देश पहले ही जनसंख्या के आधार पर एक बार विभाजन देख चुका है, और सरकार नहीं चाहती कि आने वाली पीढ़ियां दोबारा ऐसी परिस्थिति का सामना करें। इसलिए घुसपैठ को रोकना अनिवार्य है।
इसी क्रम में उत्तराखंड में भी एसआईआर (Special Intensive Revision) के तहत संपूर्ण मतदाता सूची की व्यापक जांच शुरू हो चुकी है। संदिग्ध और अवैध वोटरों की पहचान कर उन्हें सूची से हटाने की प्रक्रिया तेज है। अधिकारियों के अनुसार, पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने के लिए यह सबसे अहम कदम है।
वीवीपैट और ईवीएम की टेस्टिंग—16,000 मशीनों में नहीं मिली कोई गड़बड़ी
सत्ता पक्ष की ओर से चुनाव सुधारों पर विस्तृत जानकारी देते हुए बताया गया कि उत्तराखंड सहित विभिन्न राज्यों में 16,000 से अधिक ईवीएम और वीवीपैट मशीनों की टेस्टिंग कराई गई, जिसमें कहीं भी किसी प्रकार की गड़बड़ी सामने नहीं आई।
सत्ता पक्ष ने विपक्ष पर आरोप लगाया कि—
“ईवीएम का आविष्कार कांग्रेस के शासनकाल में हुआ। प्रधानमंत्री राजीव गांधी के समय ईवीएम पर विचार किया गया। उसके बाद चरणबद्ध तरीके से पहली बार 2004 के लोकसभा चुनावों में इसे संपूर्ण भारत में लागू किया।
2009 में भी यूपीए ने सरकार बनाई। तब किसी ने सवाल नहीं उठाया। लेकिन 2014 में एनडीए की सरकार बनते ही ईवीएम को कटघरे में खड़ा कर दिया गया।” 2014 में एनडीए की सरकार बनी तो यूपीए के सदस्यों ने रोना चिल्लाना शुरू कर दिया।
चुनाव आयोग की नियुक्ति प्रक्रिया में पहली बार पारदर्शिता
अमित शाह ने संसद में कहा कि 73 वर्षों तक चुनाव आयोग के शीर्ष पदों की नियुक्ति कांग्रेस के हाथों में केंद्रित रहीं, लेकिन 2023 में सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बाद एनडीए सरकार ने पूरी प्रक्रिया पारदर्शी बनाई।
अब मुख्य चुनाव आयुक्त और दो उप चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रधानमंत्री, प्रधानमंत्री द्वारा नामित मंत्री और विपक्ष के नेता की समिति करती है। सत्ता पक्ष के अनुसार—”33% विपक्ष को सीधे तौर पर इस प्रक्रिया में भागीदार बनाया गया है।”
विपक्ष क्यों भागा—सवाल सत्ता पक्ष के
सत्ता पक्ष के सांसदों ने विपक्ष के वाकआउट को “सच्चाई से घबराहट” बताया। केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने कहा, “जब सुनना ही नहीं, तो सदन का समय क्यों बर्बाद करते हैं? हमें पहले से मालूम था—ये भागने वाले हैं।” उनके अनुसार पिछला मानसून सत्र, फिर शीतकालीन सत्र और अब यह सत्र—विपक्ष लगातार व्यवधान डाल रहा है।
सांसद त्रिवेंद्र रावत ने विपक्ष को घेरा: ‘ईवीएम’ नहीं, ‘घुसपैठिए’ हैं परेशानी का सबब
हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि मोदी सरकार के कार्यकाल में चुनाव आयोग की नियुक्तियों में पूरी पारदर्शिता अपनाई गई। उन्होंने कहा कि आज विपक्ष की असली समस्या चुनाव सुधार नहीं, बल्कि यह है कि अवैध घुसपैठियों को चुन–चुनकर देश से बाहर निकाला जा रहा है, जो उनका पारंपरिक वोट बैंक रहे हैं।
उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में भी एसआईआर अभियान के बाद अवैध वोटर हटेंगे और पहली बार बेहद पारदर्शी निर्वाचन प्रक्रिया दिखेगी।
सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और एनडीए सरकार को देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत बनाने के लिए धन्यवाद दिया।



