महेश पारीक, हरिद्वार। सत्ता का परिवर्तन अवश्य होता है, किन्तु सत्ता का मिजाज नहीं बदलता। यह बात पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए कही थी। उनकी यह बात आज भी अक्षरस सही साबित प्रतीत होती है। सरकारें चाहें किसी भी दल की हों, शासन कोई भी करें, किन्तु सत्ता के मिजाज में परिवर्तन होता दिखाई नहीं देता। आजादी के बाद से करीब पांच दशक तक कांग्रेस ने देश की सत्ता पर राज किया। अब भाजपा केन्द्र की सत्ता पर राज कर रही है। भले ही आर्थिक तौर पर देश में परिवर्तन हुआ, किन्तु नैतिक रूप से दिन प्रतिदिन गिरावट ही देखने को मिल रही है। सरकार चाहे केन्द्र की हो या राज्यों की, सब जगह एक जैसा ही हाल है। बात यदि उत्तराखण्ड के परिपेक्ष्य में करें तो यहां भी कुछ हालातों में राज्य गठन के 17 सालों बाद भी कोई बदलाव देखने को नहीं मिला। ईमानदार अफसर और अधिकारी सरकारों के मुखिया के दबाव में मूकदर्शक बने दिखाई पड़ते है।
उत्तराखंड प्रदेश में विधानसभा चुनाव के कांगेस से सत्ता हथियाने के लिये भाजपा नेताओं ने जीरो टालरेंस का दावा किया था। केन्द्र के मुखिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तराखंड में भाजपा की डबल इंजन की सरकार बनाने की संज्ञा भी दी। चुनाव परिणामों में प्रदेश की जनता ने भाजपा को प्रचंड बहुमत दिया। सत्ता की कुर्सी पर भाजपा काबिज हुई तो प्रदेश का कोई भ्रष्टाचार का मामला उजागर नहीं हुआ। पूर्व की सरकारों भ्रष्टाचारों को उजागर करने के दावे खोखले साबित हुये। जीरों टालरेंस का दावा करने वाली सरकार त्रिवेंद्र सरकार में नौकरशाह सरकार के दबाव में कार्य कर रहे है। जो अफसर ईमानदारी से कार्य करना चाहते हैं उनके राजनैतिक दबाव की कैंची से कुर्सी खिसका दी जाती है। हरिद्वार जनपद की बात करे चार वर्ष पूर्व हुए मंहत सुधीर गिरि हत्याकांड का खुलासा तत्कालीन एसएसपी सदानंद दाते ने किया था। उसके बाद मामले में कई और की गिरफ्तारियां होने की चर्चा जोरों पर थी। पर हुआ क्या, अगली सुबह एसएसपी सदानंद दाते के तबादले का संदेश लेकर आई। उस समय कांग्रेस की सरकार में प्रदेश की बागडोर हरीश रावत के हाथों थीं। आखिर सदानंद दाते का अचानक तबादला क्यों हुआ इसका कारण कांग्रेस आज तक नहीं बता पाई। कारण साफ था कि अन्य होने वाली गिरफ्तारियों में कई बड़ी मछलियों के नाम उजागर होने का खतरा था। जिससे सरकार परेशानी में आ सकती थी। या फिर उसे राजनैतिक रूप से नुकसान हो सकता था। ऐसा ही कुछ कुख्यात सुनील राठी द्वारा कारोबारियों को वसूली के नाम पर धमकी देने और उसके सूत्रधार आशीष शर्मा ऊर्फ टुल्ली की गिरफ्तारी के बाद देखने को मिला। सुनील राठी द्वारा धमकी दिए जाने के मामले में पुलिस ने बहुत तेजी के साथ जांच की। एसएसपी कृष्ण कुमार वीके ने कुख्यात के आतंक का खात्मा करने की दिशा में कदम बढ़ा दिये। टुल्ली की गिरफ्तारी के बाद कई ओर गिरफ्तारियां होने की हवा उड़ने लगी। जिनमें कुछ नेताओं, कारोबारियों, पुलिस अधिकारियों व पत्रकारों के नाम भी शामिल थे। कई पत्रकारों, कारोबारियों व नेताओं से पुलिस इस मामले में पूछताछ भी कर चुकी थी। किन्तु अचानक पुलिस की तेज जांच की गति थम गई। नेताओं से लेकर कारोबारी और पत्रकार सभी देहरादून के चक्कर काटने लगे और सरकार भी इन सभी के दबाव में आ गई। और मामले की जांच को पुलिस ने ठंड़े बस्ते में डाल दिया। एसएसपी कृष्ण कुमार वीके की अचानक चुप्पी कई सवाल खड़े कर रही है। सबसे अधिक हैरान करने वाली बात यह कि सुधीर गिरि हत्याकांड और कुख्यात सुनील राठी से संबधों के मामले में आशीष शर्मा का नाम ही सामने आया। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस अपराध के पीछे सत्ता के गलियारों में रहने वालों से लेकर बड़े नेताओं का हाथ अवश्य है। यदि ऐसा नहीं होता तो जिस प्रकार मामले में पुलिस ने शुरूआती तेजी दिखाई उसी प्रकार मामले की जांच कर अपराधियों के नेटवर्क को तोड़ने का पुलिस कार्य करती। इस प्रकरण के बाद इतना तो स्पष्ट है कि प्रशासन में बैठे बड़े अधिकारी भले ही वह स्वंय को आईएएस या पीसीएस कहे, किन्तु राजनीति की चौखट के समक्ष वह एक मजबूर इंसान से अधिक और कुछ नहीं हैं। वह अधिकारी अधिक मजबूर हैं जो ईमानदार हैं। इसलिए पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई की वह बात सत्य साबित होती दिखती है कि सत्ता का परिवर्तन अवश्य होता है, किन्तु सत्ता का मिजाज नहीं बदलता। प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह जीरो टालरेंस व स्वच्छ प्रशासन के अपने चुनावी वादों को पूरा कर उस भं्राति को तोड़े जो अटल बिहारी बाजपेई ने राजनीति के संबंध में कही थी। वरना जनता आगामी चुनावों में फिर से सत्ता का मिजाज बदल सकती है।
सत्ता की सियासत के सामने मजबूर आईएएस व आईपीएस, जानिए पूरी खबर



