29 साल का आतंक: गैंगस्टर विनय त्यागी के 57 मुकदमों के सफर का खौफनाक अंत




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अतीक अहमद स्टाइल मर्डर से कांपी देवभूमि, गैंगस्टर की मौत पर विलाप क्यों?
देहरादून/हरिद्वार।
मुजफ्फरनगर के खाईखेड़ी गांव से निकलकर उत्तर प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा और उत्तराखंड तक अपराध का नेटवर्क खड़ा करने वाला कुख्यात गैंगस्टर विनय त्यागी उर्फ टिंकू आखिरकार मौत के घाट उतर गया। 29 साल के आपराधिक सफर में हत्या, रंगदारी, अपहरण, डकैती और गैंगवार जैसे 57 संगीन मुकदमों का आरोपी विनय त्यागी, वही चेहरा था जिसने वर्षों तक कानून और समाज—दोनों को चुनौती दी। उसकी मौत के साथ एक युग का अंत हुआ, लेकिन सवाल यह है कि एक कुख्यात अपराधी की हत्या पर शोक और विलाप क्यों?
अपराध की दुनिया में एंट्री: 1996 का काला अध्याय
विनय त्यागी की अपराध की राह 1996 में तब शुरू हुई, जब खाईखेड़ी में प्रेम-प्रसंग के विवाद में संदीप उर्फ टोनी और उसके बहनोई प्रदीप की हत्या के मामले में उसका नाम आया। यहीं से वह जरायम की दुनिया में उतर गया। मेरठ में पढ़ाई के दौरान बने संपर्कों ने उसे अपराध के नेटवर्क तक पहुंचाया और फिर पीछे मुड़कर देखने का मौका नहीं मिला।
राजनीति की छांव में अपराध का विस्तार
अपराध के साथ-साथ सियासत में दखल की ख्वाहिश ने विनय को और ताकत दी। पत्नी को पुरकाजी ब्लॉक प्रमुख दो बार बनवाया, खुद देवबंद विधानसभा से चुनाव लड़ा। राजनीतिक संरक्षण के दम पर पश्चिमी यूपी में उसका आतंक बढ़ता गया। मेरठ, गाजियाबाद, नोएडा से लेकर देहरादून तक विवादित प्रॉपर्टी डील, रंगदारी और वसूली—हर जगह उसका नाम खौफ का पर्याय बन गया।
उत्तराखंड ‘सेफ ज़ोन’ नहीं
उत्तर प्रदेश में शिकंजा कसने के बाद कई अपराधियों ने उत्तराखंड को “सेफ ज़ोन” समझना शुरू किया। विनय त्यागी भी उन्हीं में से एक था। लेकिन देवभूमि उत्तराखंड ने साफ कर दिया कि अब यहां अपराधियों के लिए कोई ठिकाना नहीं। अक्टूबर में देहरादून पुलिस ने उस पर गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की—संकेत साफ था।

अतीक अहमद स्टाइल मर्डर: पेशी के दौरान हमला
घटना हरिद्वार-रुड़की के पास हुई, जब विनय त्यागी को पेशी के लिए ले जाया जा रहा था। तभी बदमाशों ने पुलिस वाहन पर गोलियां बरसा दीं। गंभीर रूप से घायल विनय को एम्स ऋषिकेश में भर्ती कराया गया। दो दिन तक जिंदगी और मौत से जूझने के बाद शनिवार सुबह ट्रॉमा आईसीयू में उसकी मौत हो गई।
पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए दोनों शूटरों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। जांच जारी है—आपसी रंजिश या गैंगवार, हर एंगल खंगाला जा रहा है।
अतीक पर वाहवाही, विनय पर विलाप क्यों?
यूपी में अतीक अहमद की हत्या को “दहशत का अंत” बताकर तालियां बजीं। लेकिन उत्तराखंड में विनय त्यागी की मौत पर कुछ वर्गों में ऐसा शोक क्यों, मानो किसी संत की हत्या हो गई हो? जिस अपराधी के कारण कई घर उजड़े, कई मांगें सूनी हुईं, उसकी मौत पर कानून-व्यवस्था को कटघरे में खड़ा करना—यह नैरेटिव किसके हित में है?
कानून पर शक, अपराधी पर नहीं?
शूटरों की गिरफ्तारी के बावजूद सवाल उठाए जा रहे हैं—“किसने चलवाई गोली?” शक की सुई पुलिस पर घुमाई जा रही है। यह वही सोच है जो अपराध के खिलाफ सख्ती को कमजोर करना चाहती है।
सरकार का संदेश साफ: ज़ीरो टॉलरेंस
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में उत्तराखंड सरकार का संदेश साफ है—अपराध और अपराधियों के लिए कोई जगह नहीं। गिरफ्तारी हो, नेटवर्क तोड़ना हो या गैंग पर शिकंजा—हर मोर्चे पर कार्रवाई जारी है। यही सख्ती कुछ लोगों को चुभ रही है।