news127, नई दिल्ली/हरिद्वार
हरिद्वार जनपद में संचालित स्टोन क्रेशरों को लेकर उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए ऐतिहासिक आदेश को देश की सर्वोच्च अदालत ने भी बरकरार रखा है। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने स्टोन क्रेशर संचालकों द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका (SLP) को 25 अगस्त 2025 को खारिज करते हुए, उच्च न्यायालय के आदेश को यथावत बनाए रखा।
यह मामला उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय द्वारा 30 जुलाई को हरिद्वार जिले के 48 स्टोन क्रेशरों के संचालन पर रोक लगाए जाने से जुड़ा है। इस निर्णय को चुनौती देते हुए 33 स्टोन क्रेशर मालिकों ने देश के वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की थी। उत्तराखण्ड सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री मुकुल रोहतगी ने पक्ष रखा।
वहीं, पर्यावरण और गंगा संरक्षण के लिए लंबे समय से संघर्षरत संस्था मातृसदन ने इस याचिका का तीव्र विरोध किया। पूज्य स्वामी श्री शिवानंद जी महाराज के मार्गदर्शन में कार्य कर रहे मातृसदन ने न्यायालय में यह स्पष्ट किया कि स्टोन क्रेशर संचालन से न केवल पर्यावरणीय असंतुलन बढ़ता है, बल्कि गंगा नदी की अविरलता और शुद्धता पर भी गहरा आघात होता है।
माननीय मुख्य न्यायाधीश श्री बी आर गवई और माननीय न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की खंडपीठ ने मातृसदन के तर्कों को स्वीकार्य और जनहितकारी मानते हुए, याचिकाकर्ताओं को कोई राहत न देते हुए उनकी याचिका खारिज कर दी।
एक बड़ी सामाजिक और पर्यावरणीय जीत
यह निर्णय न केवल मातृसदन के लिए, बल्कि गंगा नदी, पर्यावरण संरक्षण और भावी पीढ़ियों के हित में एक मील का पत्थर माना जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला दर्शाता है कि जब पर्यावरणीय सरोकार और न्याय की कसौटी पर विषय रखा जाता है, तो सच्चाई और जनहित की ही जीत होती है।
मातृसदन ने इस निर्णय को गंगा और प्रकृति के अधिकारों की विजय बताया है और उम्मीद जताई है कि यह आदेश अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में भी प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए एक मिसाल बनेगा।