कम लागत में अधिक उत्पादन देगी बासमती की नई प्रजाति नगीना वल्लभ बासमती-1

Nagina Vallabh Basmati-1 new species of Basmati will give more production at less cost


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कुमार अजय
सरदार वल्लभ भाई पटेल कृषि यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने बासमती धान की नई प्रजाति विकसित की है। नगीना वल्लभ बासमती-1 के नाम की इस प्रजाति की खासियत कम लागत में अधिक उत्पादन है। वेस्ट यूपी के किसानों के लिए लाभकारी साबित होगी।

यूनिवर्सिटी के कृषि वैज्ञानिकों ने वर्तमान में मौसम की परिस्थिति, मिटटी व सिंचाई के लिए पानी की उपलब्धता को देखते हुए यह प्रजाति विकसित की है। यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. आरके मित्तल के कुशल दिशा निर्देशन में यूनिवर्सिटी के नगीना अनुसंधान केंद्र पर नगीना वल्लभ बासमती-1 प्रजाति विकसित की गई। पीआरओ रितुल सिंह के मुताबिक बासमती की इस प्रजाति को 23 जून 2021 में आयोजित हुई उत्तर प्रदेश राज्य बीज उप समिति की 33वीं बैठक में वेस्ट यूपी के लिए अनुमोदित कर दिया गया है।

नगीना वल्लभ बासमती-1 की उत्पादन क्षमता, पकने की अवधि, फसल की देखभाल करना वर्तमान में अन्य लोकप्रिय बासमती प्रजाति पूसा बासमती-1 व तरावडी बासमती की तुलना में आसान व कम लागत होने के कारण काफी बेहतर है। यह प्रजाति पूसा बासमती-1 से 39 प्रतिशत और तरावड़ी बासमती से 123 प्रतिशत अधिक पैदावार देती है। इस प्रजाति की उपज क्षमता 63 कुंतल प्रति हेक्टेयर तक प्राप्त की गई है। यह प्रजाति पूसा बासमती-1 से करीब 15 से 20 दिन पहले पककर तैयार हो जाती है।

इस प्रजाति में अन्य प्रजातियों के मुकाबले दो से तीन कम सिंचाई की आवश्यकता रहती है। इसीलिए इसमें पानी की बचत होने के साथ साथ किसान को अगली फसल के लिए भी खेत जल्दी खाली मिल जाता है। नगीना वल्लभ बासमती-1 का तना भी मजबूत होता है, जिससे यह जल्दी से गिरती नहीं है। इसके पौधों की ऊंचाई 100 से 105 सेमी के बीच होती है।

कुलपति डॉ आरके मित्तल के मुताबिक इसे पूसा सुगंध 5 एवं उन्नत पूसा बासमती 1 से विकसित किया गया है। जो रोगों एवं कीटों के लिए मध्यम अवरोधी है। इसमें गर्दन तोड़ ब्लास्ट रोग नहीं लगता। इस प्रजाति के चावल पतले, लंबे, मुलायम एवं खुश्बूदार होते हैं। इसकी कुकिंग क्वालिटी भी पूसा बासमती-1 से काफी अच्छी है। उन्होंने बताया कि इस प्रजाति को जल्द ही नोटिफिकेशन के लिए प्रेषित किया जाएगा।

नगीना वल्लभ बासमती-1 को विकसित करने में डॉ अनिल सिरोही निदेशक शोध, मुख्य अन्वेषक डॉ राजेंद्र मलिक, डॉ विवेक यादव, डॉ डीएन मिश्रा, डॉ पूरन चंद्र, डॉ मुकेश आदि का योगदान रहा। प्रजाति को विकसित करने पर सभी वैज्ञानिकों को कुलपति ने शुभकामनाएं दी।