मेरठ। रामलीला के माध्यम से हिंदू संस्कृति और आपसी भाईचारा कायम रखने में पुरुषोत्तम उपाध्याय ने अपने साथियों के साथ मिलकर कोई कसर नहीं छोड़ी है। रामलीला की परंपरा पर आधुनिकता हावी न हो जाए इस लिए पुरुषोत्तम उपाध्याय न केवल खुद 45 साल से रामलीला से जुड़े है बल्कि उनके भाई, बेटे और भतीजे भी इस रामलीला में सक्रिय भूमिका निभाकर अलग-अलग पात्रों का रोल करते आ रहे हैं।
पुरुषोत्तम उपाध्याय ने बताया कि दौराला और मटौर गांव के लोग मिलकर रामलीला का आयोजन करते हैं। यह परंपरा पिछले 63 साल से लगातार चली आ रही है। इस रामलीला की खासियत सही है कि इसके सभी कलाकार साधारण आम आदमी है। राम का रोल करने वाले संजीव उपध्याय दिन में अपना मेडिकल स्टोर चलाते हैं। जबकि लक्ष्मण का रोल करने वाल राजू की एक छोटी सी स्टेशनी की दुकान है। रावण का रोल कई सालों से लगातार मास्टर सुंदर सिंह कर रहे हैं। सुंदर सिंह कुछ समय पहले ही रिटायर्ड हुए हैं। सीता का रोल अशोक उपाध्यय करते हैं। इनका पीने के पानी की सप्लाई का काम है। इसी तरह हनुमान का रोल करने वाले दौराल निवासी रविंद्र अहलावत एक साधारण किसान परिवार से हैं।
ये सभी कलाकार साधारण परिवारों से हैं। इन्होंने कभी अभिनय की प्रैक्टिस नहीं की। लेकिन जब ये मंच पर आकर अपना अभिनय करते हैं तो लोग उनकी प्रस्तुति पर तालियां बजाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। इस रामलीला को देखने के लिए आसपास के आधा दर्जन से अधिक गांवों के लोग इस रामलीला को देखने यहां आते हैं। इस रामलीला की खासियत यही है कि इस रामलीला के माध्यम से आपस में भाई चारा कायम करने की प्रेरणा दी जाती है। पुरुषोत्तम उपाध्याय ने बताया कि उनके परिवार के 10 सदस्य इस रामलीला में किसी न किसी किरदार की भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह पिछले 45 साल से इस रामलीला से जुड़ें हैं। इस रामलीला के माध्यम से वह हिंदू संस्कृति को बचाने का प्रयास करते हैं। आने वाली पीढ़ी जिस तरह से मोबाइल और कंप्यूटर में ही व्यस्त है ऐसे में भावी पीढ़ी को रामलीला के माध्यम से संस्कारों के प्रति सजग किया जाता है। कमेटी का नाम राम लखन रंगमंच कमेटी रखा गया है। इसके डायरेक्टर मटौर निवासी तेजपाल उर्फ कालू हैं। जो एक साधारण किसान है। तेजपाल पिछले 57 साल से इस रामलीला से जुड़े हैं। तेजपाल पहले रामलीला में स्वयं सूपर्णखां, सलोचना आदि किरदारों का रोल करते थे। अब वह रामलीला में मंच पर ढोलक बजाने का काम बखूबी कर रहे हैं। करीब 70 वर्षीय तेजपाल में आज भी वही रामलीला के प्रति है जो अब से 57 साल पहले होता था। मटौर के ही कृपाल चौहान रामलीला से करीब 40 साल से जुड़े हैं। उनका कहना है कि रामलीला हमारी संस्कृति की पहचान है। आम जीवन में रामलीला के हर किरदार का अहम रोल है। हमें इससे सीख लेनी चाहिए। पुरुषोत्तम उपाध्याय ने बताया कि इस बार रामलीला को 63 साल हो गए हैं, इसलिए रावण का पुतला 63 फीट का बनवाया गया है। मेघनाथ का पुतला 51 फीट और लंका 21 फीट की रहेगी।


