नवीन चौहान
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार ने शिक्षा और अल्पसंख्यक अधिकारों के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए “उत्तराखंड अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान विधेयक, 2025” को आगामी विधानसभा सत्र में पेश करने का निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में रविवार को हुई कैबिनेट बैठक में इस विधेयक को मंजूरी दी गई।
इस विधेयक के लागू होने से अब केवल मुस्लिम समुदाय ही नहीं, बल्कि सिख, जैन, ईसाई, बौद्ध और पारसी समुदायों द्वारा स्थापित शैक्षिक संस्थानों को भी “अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान” का दर्जा मिल सकेगा।
नया प्राधिकरण होगा गठित
विधेयक के तहत राज्य में “उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण” का गठन किया जाएगा, जो इन संस्थानों को मान्यता प्रदान करेगा। किसी भी संस्थान को अल्पसंख्यक दर्जा पाने के लिए इस प्राधिकरण से अनुमोदन लेना अनिवार्य होगा। प्राधिकरण शिक्षा की गुणवत्ता, पारदर्शिता और सामाजिक सद्भाव पर भी निगरानी रखेगा।
गुरुमुखी और पाली भाषा की पढ़ाई को बढ़ावा
मान्यता प्राप्त संस्थानों में छात्रों को गुरुमुखी और पाली जैसी भाषाएं पढ़ने का विकल्प मिलेगा, जिससे भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को बल मिलेगा।
मान्यता के लिए शर्तें
संस्थान का पंजीकरण सोसाइटी एक्ट, ट्रस्ट एक्ट या कंपनी एक्ट के तहत होना चाहिए। भूमि, बैंक खाता और अन्य संपत्तियां संस्था के नाम पर अनिवार्य। सभी शिक्षण गतिविधियां उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा बोर्ड के मानकों के अनुरूप होंगी। मूल्यांकन प्रक्रिया निष्पक्ष व पारदर्शी होगी।
मान्यता रद्द करने के प्रावधान
अगर किसी संस्थान में वित्तीय अनियमितता, पारदर्शिता की कमी या सामाजिक सौहार्द के विरुद्ध गतिविधियां पाई जाती हैं, तो प्राधिकरण उसकी मान्यता रद्द कर सकेगा।
पुराने कानून होंगे रद्द
सरकार ने यह भी घोषणा की कि विधेयक के लागू होने के बाद 1 जुलाई 2026 से निम्न कानून निरस्त कर दिए जाएंगे:
उत्तराखंड मदरसा शिक्षा बोर्ड अधिनियम, 2016
उत्तराखंड गैर-सरकारी अरबी और फारसी मदरसा मान्यता नियम, 2019
सरकार का दावा
राज्य सरकार का कहना है कि यह देश का पहला ऐसा विधेयक है, जो सभी अल्पसंख्यक समुदायों के शैक्षिक संस्थानों को मान्यता देने की एकीकृत, पारदर्शी और संगठित व्यवस्था स्थापित करेगा। इससे न केवल अल्पसंख्यकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा होगी, बल्कि शिक्षा की गुणवत्ता और प्रशासनिक पारदर्शिता भी सुनिश्चित की जा सकेगी।
विशेषज्ञों की राय:
शिक्षा विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस विधेयक को समावेशी शिक्षा व्यवस्था की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम बताया है। उनका मानना है कि यह निर्णय सांस्कृतिक विविधता और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देगा।