नवीन चौहान
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत देवभूमि की माटी के सच्चे सपूत है। सूबे के मुखिया की कुर्सी पर बैठकर उन्होंने जनता के प्रति वफादारी निभाई। राजनीति में नीति से चलने की मिशाल पेश की। जनहित के कार्यो को प्राथमिकता दी। उत्तराखंड की माताओं और बहनों की पीड़ा को समझा। युवाओं को स्वावलंबी बनाने का प्रयास किया। नौकरशाही में पारदर्शिता और शुचिता से कार्य करने की अलख जगाई। उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए कठोर निर्णय किए। माफियाओं के हौसलों को नेस्तानाबूत किया। काजल की कोठरी से बेदाग निकले। जिसके चलते अपने ही भाजपा परिवार में बेगाने हो गए। भाजपा के ही विधायकों की गलत इच्छाओं की पूर्ति ना कर सकें। संघ परिवार की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर पाए। संतों की गलत सिफारिशें भी उनको रास नहीं आई। नीति से चलने के अपने निर्णय पर अडिग रहे। मुख्यमंत्री की कुर्सी का सम्मान बरकरार रखा।
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के चार साल के कार्यकाल की समीक्षा की जाए जो वह बेमिसाल रहे। डबल इंजन की सरकार के मुखिया के तौर पर उन्होंने उत्तराखंड हित के लिए कार्य किया। सत्ता की कुर्सी के सुखों को दरकिनार कर प्रदेश में जीरो टॉलरेंस की मुहिम अर्थात भ्रष्टाचार मुक्त शासन देने की कवायद शुरू की। जीरो टालरेंस की मुहिम को उन्होंने मुखिया की कुर्सी पर काबिज रहने के अंतिम दिन तक निभाया। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सुर्खियां बटोरने के लिए हवाई घोषणाओं का जाल नही फेंका। प्रदेश की जनता से जो वादा किया, उसको निभाने का पूरा प्रयास किया। उत्तराखंड मैं हिचकोले खा रही अर्थव्यवस्था को संभालने का प्रयास किया।
राजनीति में नीति से चलने का भरसक प्रयास किया। सत्ता के मुखिया की कुर्सी छोड़ दी लेकिन आखिरी वक्त तक विधायकों की गलत इच्छाओं को मंजूरी नही दी। जी हां पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के चार साल के कार्यकाल में कई बार नेतृत्व परिवर्तन की अटकले तेज हुई। इसके पीछे की वजह साफ है कि विधायकों और संघ परिवार की नाराजगी का आलम तेज था। त्रिवेंद्र की जीरो टालरेंस की मुहिम विधायकों की आंखों में खटकने लगी थी।
कुर्सी से हटने की वजह
त्रिवेंद्र सिंह रावत एक भावुक और सरल हृदय के व्यक्ति है। वह इंसान तो क्या किसी जीव जन्तु को भी तकलीफ नही दे सकते है। पिंडरघाटी के एक सज्जन ने बताया कि त्रिवेंद्र सिंह रावत लावारिश पशुओं की सेवा करते है। उनके इलाज कराते है। ऐसे ही एक वाक्या बताया कि पिंडरघाटी में कई लावारिश गाय बीमार थी तो त्रिवेंद्र ने उनकी मदद की,उनका इलाज कराया और समुचित व्यवस्था की। ऐसा इंसान जो लावारिश पशुओं के दर्द को समझता हो तो अपनी ही पार्टी के विधायकों को तकलीफ कैसे दे सकता है। विधायकों को आखिरकार त्रिवेंद्र का चेहरा पसंद क्यो नही आया। जबकि त्रिवेंद्र जिददी भी नही थे और अपनी मनमानी भी नही करते थे।
तो फिर विधायकों की नाराजगी का कारण क्या रहा होगा। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह जो है वह जीरो टालरेंस है। त्रिवेंद्र का ज़ीरो टॉलरेंस शब्द सुनने में अच्छा लगता है। लेकिन राजनीति में इसको अपनाना कोई नही चाहता। त्रिवेंद्र विधायकों के गलत कार्यो को पूरा करने की मंजूरी नही देते है। गरीबों की जमीनों पर कब्जे होने बंद हो गए। अवैध खनन पर पूर्णतया अंकुश लग गया। प्रदेश के राजस्व में बढोत्तरी की जाने लगी। त्रिवेंद्र ने प्रदेश में सुशासन की बयार बहाने के लिए एक मुख्यमंत्री के तौर पर परिवार के मुखिया की भांति सादगी,दूरदर्शिता और कर्मठता से विकास योजनाओं को मूर्तरूप दिया। उन्होंने अटल आयुष्मान योजना, ग्रोथ सेंटर,मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना, दीनदयाल ब्याजमुक्त कृषि ऋण,दीनदयाल होम स्टे योजना,मुख्यमंत्री घसियारी योजना लागू कराई। कुछ इसी तरह ब्यूरोक्रेसी से जनहित की योजना बनवाकर उसे धरातल पर उतारने का प्रयास किया। त्रिवेंद्र जनहित के फैसले बेबाकी से लेने लगे थे। बस यही बात सत्ता पक्ष के विधायकों को पसंद नही आ रही थी।
पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने शायद की किसी व्यक्तिगत कार्य के लिए जिलाधिकारियों को फोन किया हो। लेकिन उन्होंने अपने चार साल के कार्यकाल में सिर्फ जनता की समस्याओं को दूर करने का भरसक प्रयास किया। मुख्यमंत्री समाधान पोर्टल का वह व्यक्तिगत तौर पर ध्यान रखते थे। किसी की समस्याओं को निस्तारण करना उनकी पहली प्राथमिकता रही। अब चूंकि नेतृत्व परिवर्तन हो गया। मुखिया की कुर्सी पर तीरथ सिंह रावत काबिज है। जनहित के फैसलों को लेकर वह भी संजीदा दिखाई पड़े है। लेकिन असल परीक्षा में वह तब पास होंगे जब विधायकों के वह गलत कार्यो का पुलिंदा उनके टेबल पर होगा। जिसके चलते नेतृत्व परिवर्तन हुआ। जब विधायकों के पसंदीदा डीएम, एसएसपी जनपदों में होंगे। अगर तीरथ ने विधायकों की बातों को सुनकर तबादले किए तो जनता की भाजपा से नाराजगी तय है। अगर विधायकों की बात पर तबादले नही किए गए तो तमाम विधायकों की नाराजगी एक बार फिर होगी। लेकिन इस बार नेतृत्व परिवर्तन नही होगा।
राजनीति में हर कोई त्रिवेंद्र नही
राजनीति में हर कोई त्रिवेंद्र नहीं बन सकता है। जिसके लिए ईमानदारी सर्वोपरि हो। कुर्सी का सम्मान और संगठन में आस्था हो। अपने ही परिवार में बेगाना हो। लेकिन फिर भी चेहरे पर मुस्कराहट हो और दिल में देश भक्ति की भावना हो। सोमवार को शिवपूजन करने आए त्रिवेंद्र से मिलने भाजपा के भले ही तीन कार्यकर्ता आए हो। लेकिन उनकी आस्था और भाजपा के प्रति निष्ठा बरकरार दिखाई दी।