न्यूज127 की विशेष रिपोर्ट
गुरुकुल कांगड़ी डीम्ड यूनिवर्सिटी में प्रशासनिक फेरबदल को लेकर चल रहा विवाद अब नया मोड़ ले चुका है। विश्वविद्यालय में वरिष्ठ महिला प्रोफेसरों की अनदेखी और कनिष्ठ पुरुष प्रोफेसरों की पदोन्नति के खिलाफ उठी आवाज अब उत्तराखंड राज्य महिला आयोग तक पहुंच गई है। आयोग ने इस मामले को “बेहद गंभीर” मानते हुए जांच की घोषणा की है।
महिला आयोग की अध्यक्ष कुसुम कांडपाल ने कहा है कि जल्द ही आयोग की टीम गुरुकुल विश्वविद्यालय पहुंचेगी और तथ्यों की गहन जांच करेगी। इस घटनाक्रम को महिला सम्मान से जुड़ा गंभीर विषय बताते हुए उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी प्रकार का लिंगभेद स्वीकार्य नहीं होगा।
वरिष्ठ महिला प्रोफेसरों को हटाकर जूनियर पुरुषों की नियुक्ति
विश्वविद्यालय प्रशासन पर आरोप है कि हाल ही में किए गए प्रशासनिक फेरबदल में चार महिला संकाय अध्यक्षों और आठ महिला विभागाध्यक्षों को उनके पदों से हटाकर उनसे कनिष्ठ पुरुष प्रोफेसरों को नियुक्त कर दिया गया।
मानविकी संकाय की संकायाध्यक्ष प्रो. हेमलता, जो 2008 से प्रोफेसर हैं, उन्हें हटाकर 13 वर्ष जूनियर प्रो. राकेश कुमार को यह जिम्मेदारी दी गई है। इसी तरह प्रो. नमिता जोशी, प्रो. सुरेखा राणा और प्रो. निपुण सिंह जैसी अनुभवी महिला शिक्षिकाओं को हटाकर उनके कनिष्ठ पुरुष साथियों को संकायाध्यक्ष बना दिया गया।
विभागों में भी महिलाओं की उपेक्षा
फेरबदल केवल संकायों तक सीमित नहीं रहा, विभागाध्यक्षों के स्तर पर भी महिला नेतृत्व की व्यापक अनदेखी की गई है।
हिंदी विभाग की प्रो. मृदुल जोशी, गणित विभाग की प्रो. सीमा शर्मा, रसायन विभाग की प्रो. अंजलि गोयल, अंग्रेज़ी की प्रो. मुदिता अग्निहोत्री, इतिहास की प्रो. रेनू शुक्ला, कंप्यूटर विभाग की प्रो. निपुण सिंह सहित कुल 8 वरिष्ठ महिला विभागाध्यक्षों को पद से हटा दिया गया।
कुछ मामलों में तो एसोसिएट प्रोफेसर स्तर के पुरुष शिक्षकों को वरिष्ठ महिला प्रोफेसरों के स्थान पर नियुक्त कर दिया गया, जैसे कि रसायन विभाग में प्रो. अंजलि गोयल की जगह एसोसिएट प्रो. मनोज कुमार और गणित विभाग में प्रो. सीमा शर्मा की जगह ऋषि शुक्ला को विभागाध्यक्ष बनाया गया।
रेगुलेशन 2023 के विरुद्ध मानी जा रही नियुक्तियाँ
शिक्षाविदों का मानना है कि यह फेरबदल न केवल यूजीसी रेगुलेशन 2023 के खिलाफ है, बल्कि उच्च शिक्षा में योग्यता व वरिष्ठता आधारित नियुक्तियों की परंपरा के भी विरुद्ध है। उन्होंने इसे लिंग आधारित भेदभाव की आशंका से भी जोड़कर देखा है।
महिलाओं में असंतोष, विरोध तेज
विश्वविद्यालय परिसर में इस फैसले को लेकर विरोध का माहौल और तेज हो गया है। सूत्रों के मुताबिक, कई महिला प्रोफेसरों ने इसे पक्षपातपूर्ण और असंवैधानिक बताते हुए औपचारिक आपत्ति दर्ज कराने की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
अब क्या आगे?
अब जब मामला राज्य महिला आयोग तक पहुंच चुका है, यह देखना दिलचस्प होगा कि विश्वविद्यालय प्रशासन इस पर क्या सफाई देता है, और आयोग की जांच के बाद क्या बदलाव होते हैं।
फिलहाल इतना तय है कि गुरुकुल कांगड़ी की शांत प्रशासनिक गलियों में अब महिला सम्मान की गूंज सुनाई देने लगी है।


