गंगधारा–2.0 में प्री–वेडिंग काउंसलिंग पर गहन मंथन, विशेषज्ञों और युवा प्रतिभागियों में अद्भुत सामंजस्य
देहरादून
देवभूमि विकास संस्थान की अनूठी पहल टूटते बिखरते रिश्तों को मजबूती प्रदान करेगा। पति—पत्नी के बीच आपसी सामंजस्य को स्थापित करने में महती भूमिका अदा करेगा। रिश्तों की दरकती दीवारों को मजबूती प्रदान करने के लिए गंगधारा–2.0 में प्री–वेडिंग काउंसलिंग पर गहन मंथन किया गया। विशेषज्ञों, शिक्षाविदों, मानसिक स्वास्थ्य सलाहकारों ने पाया कि भारतीय संस्कृति, संस्कार, समझ और संवाद से पारिवारिक तनावों को दूर किया जा सकता है।

“प्री–वेडिंग काउंसलिंग—समझ और संवाद” थीम के साथ आयोजित इस आयोजन में निष्कर्ष एक ही रहा कि विवाह जैसे पवित्र बंधन को संभालने के लिए संस्कृति की जड़ें, समझ की मजबूती और संवाद की निरंतरता अनिवार्य है।
हरिद्वार रोड स्थित संस्कृति विभाग के प्रेक्षागृह में देवभूमि विकास संस्थान और दून विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित इस विमर्श का शुभारंभ हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति यू.सी. ध्यानी ने किया। उन्होंने स्पष्ट संदेश दिया कि आज का समाज संवादहीनता और अपेक्षाओं के दबाव से जूझ रहा है, इसलिए “विवाह से पहले परामर्श अब विकल्प नहीं, आवश्यकता बन गया है।”
उन्होंने कहा कि कानूनी प्रावधान समाधान देते हैं, लेकिन रिश्तों को बचाते हैं मूल्य, परंपराएँ और परस्पर समन्वय।
देवभूमि विकास संस्थान के संरक्षक एवं हरिद्वार सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि भारतीय संस्कृति में रिश्ते केवल जुड़ते नहीं, निभाए जाते हैं। उन्होंने जनरेशन–जेड और जनरेशन–अल्फा के बीच बढ़ती दूरी का जिक्र करते हुए कहा, “पीढ़ियों को जोड़ने के लिए संवाद की पहल युवाओं को करनी होगी। यही रिश्तों की नई बुनियाद बनेगी।”

कुमाऊं विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. दीवान सिंह बिष्ट ने रिश्तों में “मैं” के बढ़ते स्वरूप को चुनौती बताया। दून विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल ने सुझाव दिया कि प्री–वेडिंग काउंसलिंग को शिक्षा का हिस्सा बनाना चाहिए, ताकि युवावस्था में ही रिश्तों को समझने की क्षमता विकसित हो सके।
सत्र की अध्यक्षता प्रो. राजेश बहुगुणा और संचालन प्रो. एच.सी. पुरोहित ने किया।
अनुभव से निकला सार—रिश्ते निभाने से बनते हैं, थोपने से नहीं
समापन सत्र में स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो. विजय धस्माना ने अपने माता–पिता के संबंधों का उदाहरण देकर बताया कि समर्पण और संयम हर कठिनाई को आसान बना देता है।
उन्होंने कहा कि उनके माता-पिता की शादी उम्र, विचारों और परिस्थितियों की बड़ी खाई के बावजूद आदर्श साबित हुई, क्योंकि उन्होंने रिश्ते को निभाया—न कि परखा।
कार्यक्रम में विधायक उमेश शर्मा काऊ, विनोद चमोली, बृजभूषण गैरोला, सविता कपूर, साहित्य परिषद की उपाध्यक्ष मधु भट्ट, पूर्व मेयर सुनील उनियाल गामा सहित अनेक विशिष्ट अतिथि मौजूद रहे।
युवा उत्साह से भरा संवाद—महत्वपूर्ण सवाल, सार्थक जवाब
संवाद सत्र का वातावरण सबसे अधिक उत्साहपूर्ण रहा। विभिन्न कॉलेजों के छात्रों ने प्रख्यात मनोवैज्ञानिकों और विशेषज्ञों से सीधे प्रश्न पूछे।
डॉ. आशुतोष श्रीवास्तव, डॉ. विक्रम रावत, अमन कपूर, डॉ. मालिनी श्रीवास्तव, एडवोकेट रवि नेगी और रामेंद्री मंद्रवाल ने साफ कहा—
“विवाह अधिकारों की मांग नहीं, कर्तव्यों के निर्वहन की भावना से चलता है।”
उन्होंने बताया कि प्री–वेडिंग काउंसलिंग इसलिए जरूरी है ताकि युवा विवाह से पहले अपेक्षाओं, जिम्मेदारियों और भविष्य की योजनाओं को स्पष्ट कर सकें। इस रोचक सत्र का संचालन प्रो. राजेश भट्ट ने किया।
गौरा देवी का सम्मान और जनजाति दिवस की झलक
कार्यक्रम में चिपको आंदोलन की जननी स्व. गौरा देवी के शताब्दी वर्ष पर उन्हें श्रद्धांजलि दी गई। सभागार में लगाए गए पोस्टर पर्यावरण संरक्षण और महिलाओं की भूमिका का सशक्त संदेश देते रहे। इसी क्रम में डीएवी पब्लिक स्कूल, डिफेंस कॉलोनी के बच्चों ने उत्तराखंड की जनजातियों पर आधारित आकर्षक प्रस्तुति देकर दर्शकों की खूब वाहवाही बटोरी।
आदर्श दंपतियों का सम्मान—लंबे वैवाहिक जीवन का प्रेरक संदेश
कार्यक्रम में अपने दीर्घ और सफल वैवाहिक जीवन से समाज के लिए उदाहरण बने पाँच दंपतियों— राकेश ओबराय, वीरेंद्र सिंह कृषाली, जगमोहन सिंह राणा, मनोहर सिंह रावत और खुशहाल सिंह पुंडीर का मंच पर सम्मान किया गया। इनका सम्मान केवल व्यक्तियों का नहीं, बल्कि सुदृढ़ वैवाहिक मूल्यों का प्रतीक बनकर सामने आया।
दो पुस्तकों का विमोचन—विचारों से लेकर अनुसंधान तक पूर्ण समग्रता
इस अवसर पर दो महत्वपूर्ण पुस्तकों का विमोचन हुआ—
गंगधारा: संस्कृति से सतत विकास—लेखक: प्रो. सुरेखा डंगवाल व प्रो. सुधांशु जोशी प्री–वेडिंग काउंसिलिंग—लेखक: प्रो. राजेश भट्ट
देवभूमि विकास संस्थान की मेन ट्रस्टी कृति रावत ने विभिन्न सामाजिक वर्गों पर किए गए सर्वे की रिपोर्ट प्रस्तुत की, जिसके निष्कर्षों ने आयोजन को और भी समृद्ध बनाया।
गंगधारा–2.0 का संदेश
इस पूरे विमर्श ने यह स्थापित किया कि— रिश्ते समय से नहीं, समझ से चलते हैं। कानून संरक्षण दे सकता है, पर स्थायित्व संस्कृति देती है।
और संवाद—वह पुल है जो हर दिल को जोड़ देता है।
इसीलिए गंगधारा–2.0 ने समाज को यह स्पष्ट संदेश दिया कि प्री–वेडिंग काउंसलिंग भविष्य के पारिवारिक ढांचे को मजबूत करने का सबसे प्रभावी माध्यम बन सकती है।



