नवीन चौहान
त्रिवेंद्र सिंह रावत जी आपके साथ ये तो होना ही था। क्योकि आपको झूठ बोलना भी तो नही आता। आखिरकार आप चार सालों से उत्तराखंड के मुख्यमंत्री बनकर ईमानदारी से कार्य करते हुए माफियाओं के बाधक बन चुके थे। आपने प्रदेश में ईमानदार नौकरशाह दिए। इन नौकरशाहों ने ईमानदारी से कार्य करते हुए जनहित के कार्यो को प्राथमिकता दी। ईमानदार आईएएस अफसरों को कार्य करने की पूरी स्वतंत्रता प्रदान की। आपने मीठी—मीठी बाते बोलने में यकीन नही रखा। आप तो बस बात कम और काम ज्यादा करने में विश्वास रखते रहे। उत्तराखंड को कर्ज से उबारने की कोशिश करते रहे। मातृभूमि उत्तराखंड के सपूत बनकर उसकी सेवा में जुटे थे।
आपको क्या मालूम था कि आपके साथ चलने वाले कितने विधायक तकलीफ के दौर से गुजर रहे है। माफियाओं से आने वाली आमदनी बंद है। नौकरशाहों के ईमानदारी से कार्य करने के चलते प्रदेश की जनता ने विधायकों के दरवाजे की तरफ देखना बंद कर दिया था। विधायकों के घर के बाहर भीड़ लगना बंद हो गई थी। आपने माफियाओं के सचिवालय में जाने के सभी रास्ते बंद कर दिए थे। भूमाफिया गरीबों की जमीन भी तो नही कब्जा पा रहे थे। आपने तो मुख्यमंत्री शिकायत पोर्टल खोल दिया। जिसको भी समस्या आई उसने मुख्यमंत्री पोर्टल पर शिकायत दर्ज करा दी। पीड़ित को इंसाफ मिल गया। विधायकों को जनता ने पूछना बंद कर दिया। आपके नियुक्त किए हुए जिलाधिकारी विधायको के गलत कार्यो को सुनने को राजी नही थे। जब विधायक जिलाधिकारियों की शिकायत लेकर आप तक पहुंचते थे तो आप विधायकों को रास्ता नही देते थे। विधायक नाराज नही होंगे तो क्या आपका सम्मान करेंगे। आपकी ईमानदारी के चर्चे करेंगे। जनता को बतायेंगे कि हमारे मुख्यमंत्री ईमानदार है।
त्रिवेंद्र साहब आप भी किस प्रदेश को सुशासन की तरफ ले जाने में जुटे थे। इस प्रदेश में ग्राम प्रधान से लेकर सभी विधायकों की महत्वकांक्षा मुख्यमंत्री बनने की है। उत्तराखंड का इतिहास उठाकर देख लीजिए। जब से राज्य का गठन हुआ यहां पर माफिया हाबी रहे। माफियाओं ने प्रदेश को खोखला किया। माफियाओं ने अपने तरीके से सरकार में दखल रखी। लेकिन यह पहली बार हुआ कि माफिया छटपटां रहे थे। आपने माफियाओं को पैंसा कमाने नही दिया। विधायक लोगों की आप बात सुनकर राजी नही थे। आप तो बस प्रदेश के विकास की बात करते हो। अरे साहब कुछ अपने विकास के बारे में सोचते। लेकिन आपको तो कुछ सुनना नही था। बस गरीब जनता की सेवा करनी थी। ऐसा नही होता साहब। आप उस पार्टी के मुखिया थे। जिसमें कांग्रेस से शामिल तमाम विधायक सिर्फ सत्ता के लिए आए थे। आपको उनको समझना चाहिए था। जब वो अपनी विचारधारा की पार्टी छोड़ सकते है तो आपके कैसे हो सकते है।
और हां एक बात आपने टांसफर पोस्टिंग की दलाली का जो खेल बंद किया, इससे भी बहुत निजी आर्थिक नुकसान हुआ। कर्तव्यनिष्ठा का जमाना नही है त्रिवेंद्र साहब। जमाना मतलब का है। जिससे मतलब निकले वो अपना। एक साहब तो प्रदेश अध्यक्ष के बुलावे पर भी आपकी प्रेस वार्ता में शामिल नही हुए। आखिरकार इनके कारण भी बहुत लोग आपसे नाराज थे। लेकिन आपको तो बस काम करना था। आप सुनते ही कहां थे किसी की। ना बोलते थे और ना ही सुनते थे। इसीलिए तो आपसे विधायक नाराज थे।
त्रिवेंद्र साहब आपके साथ ये तो होना ही था, आपके पास लॉलीपाप भी तो नही….



