विश्व दर्शन दिवस पर गुरुकुल कांगड़ी में दर्शन, संस्कृति, आध्यात्मिकता और अनुभव का अनूठा संगम




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न्यूज 127.
हरिद्वार। गुरुकुल कांगड़ी (समविश्वविद्यालय) हरिद्वार के दर्शनशास्त्र विभाग द्वारा विश्व दर्शन दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित तीन दिवसीय “तुरीय दार्शनिकोत्सव” अद्भुत वैचारिक ऊँचाइयों, भारतीय दार्शनिक परंपरा के आलोक और अनुभवजन्य अध्यात्म का जीवंत उत्सव बनकर सम्पन्न हुआ। मुख्य परिसर एवं कन्या गुरुकुल परिसर द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस महोत्सव ने दर्शन के शैक्षणिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और अनुभवात्मक—चारों आयामों को एक सूत्र में पिरोकर विद्यार्थियों व विद्वानों को अद्वितीय सीख प्रदान की।

प्रथम दिवस 20 नवम्बर को उत्सव का शुभारंभ वैदिक यज्ञ और कुलपति प्रो. हेमलता के. के कर-कमलों द्वारा उद्घाटन के साथ हुआ। परीक्षा नियंत्रक एल.पी. पुरोहित सहित विभिन्न विभागों के विद्वानों की उपस्थिति ने समारोह की गरिमा बढ़ाई। डॉ. सोहनपाल सिंह आर्य ने दर्शन दिवस 2025 के विषय “दर्शन का समकालीन महत्व” का प्रवर्तन करते हुए उसकी ऐतिहासिक यात्रा और जटिलताओं पर प्रकाश डाला। तत्पश्चात प्रो. जटा शंकर (सेवानिवृत्त अध्यक्ष, दर्शनशास्त्र विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय) ने “विश्व समरसता के संदर्भ में भारतीय दार्शनिक दृष्टि” पर अत्यंत प्रभावशाली व्याख्यान प्रस्तुत किया। उन्होंने भारतीय दर्शन के समन्वयवाद, पुरुषार्थ चतुष्टय, वैश्विक शांति और सह-अस्तित्व की अवधारणाओं को नए दृष्टिकोण से व्याख्यायित किया। विद्यार्थियों के संवादपूर्ण प्रश्नोत्तर ने सत्र को जीवंत बना दिया।

सांस्कृतिक सत्र:
हिमांशु मिश्रा द्वारा निर्देशित लघु नाटिका “दर्शन और दोस्ती” में छात्र आदित्य शर्मा, केशव नेगी एवं दत्तात्रेय ने कामू–सार्त्र के अस्तित्ववादी तनाव को प्रभावशाली अभिनय से जीवंत किया।

दार्शनिक पोस्टर प्रस्तुति:
प्रो. ब्रह्मदेव की अध्यक्षता में छात्रों ने वैश्विक शांति, पर्यावरण नैतिकता, भारतीय ज्ञान परंपरा और मानव मूल्यों पर आधारित पोस्टर प्रदर्शित किए।

परिचर्चा:
“विश्व एकता की चुनौतियों के निवारण हेतु दार्शनिक समाधान” विषय पर आयोजित परिचर्चा में शिक्षक-विद्यार्थियों ने मानव स्वार्थ, अहंकार, आसक्ति, क्रोध, अधीरता जैसी मनोवैज्ञानिक चुनौतियों को वैश्विक विषमता का मूल कारण मानते हुए गीता, उपनिषदों व योग-दर्शन आधारित समाधान सुझाए।

दीपोत्सव एवं काव्यपाठ:
संध्या का दीपोत्सव “अंधकार से प्रकाश” की अवधारणा का जीवंत अनुभव बनकर सामने आया। प्रथम दिवस का समापन डॉ. भारत वेदालंकार के संयोजन में भव्य दार्शनिक काव्यपाठ और सामूहिक भोज के साथ हुआ।

द्वितीय दिवस 21 नवम्बर को कन्या गुरुकुल परिसर, हरिद्वार में आयोजित इस दिवस का संचालन डॉ. बबीता शर्मा के नेतृत्व में हुआ। दीप प्रज्ज्वलन एवं कुलगीत गायन के साथ आरंभ हुए इस सत्र में छात्राओं की उत्साहपूर्ण भागीदारी देखने को मिली।

डॉ. सोहनपाल सिंह आर्य ने गुरुकुल की प्रश्न-परंपरा और वैचारिक पृष्ठभूमि को रेखांकित किया।
प्रो. सुरेखा राणा ने जीवन-निर्माण में सुसंस्कृत विचारों की निर्णायक भूमिका पर बल दिया।
प्रो. ब्रह्मदेव विद्यालंकार ने मनुष्यत्व की अनिवार्य कसौटी—मनन, चिंतन और प्रवृत्ति-शोधन—को सरल भाषा में व्याख्यायित किया।

विशिष्ट व्याख्यान:
डॉ. साध्वी प्राची ने “विश्व समरसता हेतु वैदिक दार्शनिक मान्यताएँ” विषय पर प्रभावशाली वक्तव्य देते हुए ऋत–धर्म–सत्य की वैदिक धारणाओं को वैश्विक विविधता, नारी-चेतना, कर्तव्यनिष्ठा और मानवता के संदर्भ में समझाया।

सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ व काव्य-सत्र:
छात्राओं ने दार्शनिक भाषण, काव्य और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से नारी दर्शन, मानव मूल्य और भारतीय परंपरा की आधुनिक संदर्भों में भूमिका को अभिव्यक्त किया। समापन:
डॉ. विपिन बालियान द्वारा धन्यवाद ज्ञापन और शांतिपाठ के साथ दिवस सम्पन्न हुआ।

तृतीय दिवस 22 नवम्बर को अंतिम दिवस विद्यार्थियों को कक्षा से बाहर अनुभवजन्य दर्शन का प्रत्यक्ष अभ्यास कराने वाला रहा। माता लाल देवी यज्ञशाला में यज्ञ के उपरांत सभी प्रतिभागी ऋषिकेश के लिए प्रस्थान हुए।

ध्यान–योग सत्र:
84 कुटिया में आयोजित सत्र में शिक्षकों व विद्यार्थियों ने “मन–शरीर–संयम” पर आधारित ध्यान का अभ्यास किया। यह सत्र आंतरिक शांति, जागरूकता और आत्म-अवलोकन की दार्शनिक अनुभूति का ज्वलंत अनुभव बना।

गीता भवन संवाद:
निष्काम कर्म, आत्म-नियंत्रण और करुणा के संदेश पर गहन चर्चा की गई। गुरुकुल परंपरा और गीता के सम्मिलित आदर्शों ने विद्यार्थियों को जीवन-दर्शन का व्यावहारिक दृष्टिकोण प्रदान किया।

गंगा तट पर मनन:
शांत जलधारा के बीच विद्यार्थियों और शिक्षकों ने आत्म-चिंतन, संवाद और आध्यात्मिक अनुभूति का समय बिताया।

समापन घोषणा
“तुरीय दार्शनिकोत्सव” ने अपने वैचारिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और अनुभवजन्य स्तरों पर दर्शन को जीवन की दिशा बनाने का संदेश दिया। प्रतिभागियों ने कहा कि ऐसे आयोजन भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनर्जीवित करने के साथ-साथ युवा पीढ़ी को दर्शन को जीवन में उतारने की प्रेरणा देते हैं।

संरक्षक–संरक्षक:
प्रो. हेमलता के० (कुलपति)
प्रो. विपुल शर्मा (कुलसचिव)

अध्यक्षता:
प्रो. देवेंद्र गुप्ता, अध्यक्ष—प्राच्यविद्या संकाय एवं दर्शनशास्त्र विभाग

संयोजक मंडल:
डॉ. बबलू वेदालंकार
डॉ. बबीता शर्मा
डॉ. भारत वेदालंकार

व्यवस्थापक मंडल:
डॉ. मीरा त्यागी
डॉ. विपिन बालियान
डॉ. आशीष कुमार