नवीन चौहान
उत्तराखंड में मुददों की कोई कमी नही है। बेरोजगारी और पलायन लाइलाज बीमारी बन गई है। जनता की समस्याओं का अंबार लगा है। उत्तराखंड पर कर्ज लगातार बढ़ रहा है। सरकार के पास कोई ठोस कार्य योजना नही है। गैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर त्रिवेंद्र सरकार अपनी पीठ थपथपा रही है और आसमान से गिरी बर्फ का लुत्फ उठा रही है। जिस प्रदेश की जनता पर मुसीबतों का पहाड़ टूटा हो वहां की सरकार को बर्फ में खेलने की सूझ रही है। आखिरकार सरकार गंभीर कब होगी ? जनता को परेशानियों से कब निजात मिलेगी। जश्न भी उसी माहौल में अच्छा लगता है जब घर में सब ठीक हो। लेकिन यहां तो कुछ भी ठीक नही है।

बात गंभीर है। लेकिन कहनी पड़ेगी। मिलेनियम वर्ष 2000 में 9 नवंबर को उत्तराखंड राज्य का गठन किया गया। 13 जनपदों का एक पहाड़ी राज्य। जहां की जनता में प्रेम और सदभाव की कोई कमी नही है। यहां की जनता में अपनी पहाड़ों से प्रेम करने की भावना में कूट—कूट कर भरी हुई है। यहां के लोगों की कोई ज्यादा चाहत भी नही थी। जनता को मूलभूत सुविधाओं को पूरा करने की चाहत थी। बिजली, पानी, सड़के, चिकित्सा और रोजगार की चाहत थी। इन तमाम व्यवस्थाओं को ठीक रखो तो सब खुशहाल रहे। लेकिन राज्य गठन के बाद से ही प्रदेश सरकारों की इच्छा शक्ति में कमी देखने को मिली। मंत्रियों और नौकरशाहों की चाहते बढ़ गई। भ्रष्टाचार का पेड़ पनपने लगा। सत्ता पर काबिज मंत्रियों को कुर्सी प्रेम उमड़ने लगा। जन प्रतिनिधि अपनी जनता की समस्याओं को ही भूल गए। केंद्र सरकार के कर्ज से राज्य में विकास गाथा लिखने लगा। नतीजा ये रहा कि दो दशक के भीतर प्रदेश के कर्ज का आंकड़ा 50 हजार करोड़ को पार कर गया। सरकारी कर्मचारियों के वेतन के लाले पड़ने लगे। प्रदेश में जुटाए जाने वाले राजस्व में कमी आने लगी। रोजगार की तलाश में युवा प्रदेश से पलायन करने लगे। पहाड़ के घर खाली होकर खंडर बनने लगे। सरकार ने इन खंडरो को होम स्टे बनाने की तैयारी कर ली। उत्तराखंड को पर्यटन राज्य के रूप में विकसित करने की योजना तैयार की। लेकिन इस योजना को भी भ्रष्टाचार की दीमक लग गई। भ्रष्टाचार इस राज्य में एक फलदार पेड़ की तरह पनपने लगा। सत्ता पर काबिज सरकारे अपने तरीके से ही भ्रष्टाचार को परिभाषित करने लगे। उत्तराखंड की जनता सरकार के मंत्रियों को समझ नही पाई। बस अच्छे दिनों का इंतजार करती रही। लेकिन वो अच्छे दिन नही आए। दो दशकों में पलायन और बेरोजगारी का मुददा राजनैतिक हथियार बन गया। चुनावी दिनों में इन हथियारों को चलाया जाने लगा। साल 2017 में उत्तराखंड में केंद्र की मोदी सरकार पर यकीन करते हुए प्रदेश की जनता ने प्रचंड बहुमत से भाजपा को सत्ता सौंप दी। त्रिवेंद्र सिंह रावत को प्रदेश का मुखिया बनाया गया। बेहद गंभीर दिखने वाले त्रिवेंद्र सिंह रावत ने जीरों टालरेंस की मुहिम शुरू की और प्रदेश से भ्रष्टाचार की दीमक का सफाया करने की उम्मीद जगा दी। लेकिन त्रिवेंद्र सरकार की ये मुहिम भी सियासी तीर ही साबित हुआ। प्रदेश में भ्रष्टाचार जस का तस रहा। बस लेनदेन के तरीके बदल गए। सरकार की पैतरेबाजी को देख जनता खुद को ठगा सा महसूस करने लगी। सरकार के तीन साल पूरे हो चले। सरकार की एक मात्र उपलब्धि ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसेण को बनाने की है। जहां इन दिनों विधानसभा का सत्र चल रहा है और जमकर बर्फबारी हो रही है। सरकार बर्फ को हाथों में उठाकर खेल रही है। काश प्रदेश की सरकार बर्फ की तरह ही जनता के विश्वास को हाथों में उठाकर देेंखे, उनकी भावनाओं को समझे और समस्याओं को दूर करने का प्रयास करें। बर्फ के आंनद के बीच कुछ गंभीर बातों पर चर्चा हो। सत्ता पक्ष और विपक्ष जनता की समस्याओं को दूर करने पर बहस करें तो कुछ नतीजा निकले। अरे सरकार एक आम जन मानस को राजधानी से कोई लेना देना नही है। राजधानी गैरसेण हो या दून। बस जनता को समस्याओं से निजात दिला दो।



 
		
			

