उत्तराखंड के चमचों ने किया राज्य को बदहाल, जानिये पूरी खबर




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नवीन चौहान

हरिद्वार। उत्तराखंड राज्य 44हजार करोड़ के कर्ज में डूबा हैं। इस राज्य का कर्ज उतारना तो दूर कर्ज का ब्याज भरने तक का विजन राज्य सरकारों के जनप्रतिनिधियों की सोच में दूर-दूर तक दिखाई नहीं पड़ रहा हैं। 13 जनपदों के इस छोटे से राज्य की आर्थिक स्थिति बदहाल हुई है। उत्तराखंड को इस बदहाली के मोड तक ले जाने में जनप्रतिनिधियों के इन चमचों का सबसे अहम रोल रहा है। राज्य के मुखिया और जनप्रतिनिधियों के साथ हमेशा उनके साथ चिपके रहने वाले चमचों ने कभी राज्य की हकीकत और जनता के दर्द को नहीं समझा। अपना हित साधने के लिये इन चमचो ने जनप्रतिनिधियों को वो रास्ता दिखाया, जिसमें चमचों को अपना फायदा नजर आया। चमचों की मीठी-मीठी और चापसूली भरी बातों को सुनने के बाद जनप्रतिनिधि भी फूले नहीं समाते थे। वह सत्ता के नशे में मदमस्त होते चले गये। जब तक सत्ता में रहे चमचो के चंगुल से जनप्रतिनिधि बाहर नहीं निकल पाये। वर्तमान की सरकार के मुखिया चमचों के चंगुल से तो दूर है। लेकिन उनके मंत्रीमंडल में शामिल दूसरे जनप्रतिनिधि चमचों से घिरे हुये है। इस राज्य का उत्थान करने के लिये जनप्रतिनिधियों को चमचो से दूरी बनाकर एक राज्यहित में निर्णय करने होंगे। कुछ कड़वी दवाई पीनी होगी। राज्यहित में कुछ कठोर निर्णय करने होगे। जनता के दर्द को समझना होगा। तभी उत्तराखंड राज्य प्रगति के पथ पर अग्रसरित होगा।
उत्तराखंड के वीरों ने नवगठित राज्य की मांग को लेकर आंदोलन किया। अपने प्राणों का बलिदान दिया, छाती पर गोलियां खाई तब जाकर इस राज्य के स्थापना की नींव पड़ी। केंद्र सरकार ने राज्य गठन के साथ ही आर्थिक मदद की। सत्ता की कुर्सी पर काबिज हुये मुखिया और जनप्रतिनिधि राज्य गठन का जश्न मनाने में मशगूल हो गये। इन मुखिया और जनप्रतिनिधियों के चमचों की भी मौज बहार आ गई। इन्होंने जनप्रतिनिधियों को एक दायरे में सीमित कर रख दिया। दुकान, शोरूम का उद्घाटन करने से लेकर अपनी उपलब्धियों का बखान करने में लग गये। वक्त हाथ में रेंत की तरह से फिसलता चला गया। राज्य को चलाने के लिये केंद्र और बर्ल्ड बैंक से कर्ज बढता चला गया। इन चमचो ने जनप्रतिनिधि को ये सोचने का वक्त हीं नहीं दिया कि राज्य की आर्थिक स्थिति क्या है और किन हालातों से गुजर रही है। इन चमचो ने खनन और शराब के कारोबार में दखल रखी। चमचों ने खूब संपत्तियां अर्जित की। जनप्रतिनिधि को जनता से दूर कर दिया। यहीं कारण रहा कि राज्य में जितने जनप्रतिनिधि बने वह सत्ता की कुर्सी से बेदखल होने के बाद जनता की नजरों में वो सम्मान नहीं पा सके। पूर्व के तमाम मुखिया और जनप्रतिनिधियों से जनता उनके चमचों के कारण खासी नाराज दिखाई देती है। यदा कदा इस बात का जिक्र जनता करती है। जनता बताती है कि किस नेता का किस चमचे ने बेडा गरक किया है। पूर्व के अनुभवों से सीख लेकर वर्तमान सरकार को राज्य की जनता के लिये कुछ विशेष करना होगा।