उत्तराखंड का बच्चा-बच्चा खून से आंदोलनकारी, जानिए पूरी खबर




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नवीन चौहान, हरिद्वार। आंदोलन की राह से जन्मा राज्य उत्तराखंड का बच्चा-बच्चा आंदोलनकारी है। हर छोटी सी बात पर उत्तराखंड के वाशिंदे आंदोलन की राह पकड़ते हैं। टेबिल पर बैठकर बातचीत से हल होने वाली समस्या का समाधान भी आंदोलन से ही करते हैं। कमोवेश उत्तराखंड के सभी विभागों की यहीं स्थिति है। किसी ना किसी समस्या को हल करने के लिये आंदोलन करने को उतारू रहते हैं। इसी आंदोलन करने की राह उत्तराखंड की पुलिस ने भी पकड़ ली है। भारतीय कानून का अनुपालन कराने की शपथ लेने वाले अनुशासित सिपाही मिशन आक्रोश और मिशन महाव्रत के तौर पर आंदोलन को हवा देते हैं। आंदोलन करने की चेतावनी मित्र पुलिस के सिपाहियों के गैर जिम्मेदार होने की पोल खोलती है। इसी के साथ ये साबित करती है कि यहां का हर बच्चा-बच्चा खून से ही आंदोलनकारी है।
उत्तराखंड राज्य का गठन एक वृहद आंदोलन के फलस्वरूप हुआ था। पहाड़ों की शांत वादियों में रहने वाले लोगों के खून ने उबाल लिया और अपने लिये एक अलग राज्य की मांग की। खूब धरने प्रदर्शन हुए। केंद्र सरकार के खिलाफ जमकर मोर्चा खोला गया। अपने हक हकूक की मांग करते हुये यूपी से विभाजित करने की मांग की गई। इस आंदोलन की गूंज दिल्ली में सुनाई दी। कई आंदोलनकारियों की जान गई। जिसके बाद यूपी का एक पहाड़ी हिस्सा अलग कर 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य की स्थापना हुई। इन 17 सालों में राज्य अपने अस्तित्व को बरकरार रखने के लिये संघर्ष कर रहा है। सरकारी विभागों में नई नौकरियों की भर्ती की गई तो पुलिस महकमें में भी उत्तराखंड पुलिस में नौजवानों को शामिल किया गया। पुलिस महकमें का अंग बने नौजवानों ने कानून की रक्षा करने की शपथ ली और मित्रता सेवा सुरक्षा का संकल्प किया। पुलिस की वर्दी पहनने के बावजूद इन पुलिसकर्मियों के जहन से एक आदमी की तरह आंदोलन करने का जो जज्बा था वो खत्म नहीं हुआ। यही कारण है कि वेतन विसंगति और तमाम हक हकूक के लिये उत्तराखंड पुलिस के जवान आंदोलन करने को अग्रसरित रहते हैं। कानून की बेड़ियों में जकड़ा पुलिस महकमा अपने सख्त अनुशासन के लिये जाना जाता है। पुलिस की वर्दी पहनने के साथ ही जवानों को बेहद सख्त अनुशासन की सीख दी जाती है। लेकिन खून से आंदोलनकारी जवान बार-बार कानून का उल्लघंन करते हैं। जो किसी हद तक भी सही नहीं ठहराया जा सकता है। यही कारण है कि 17 सालों में उत्तराखंड पिछड़़ा हुआ है। सरकारी नौकरी पर कार्यरत लोगों के पेट नहीं भर रहे हैं। राज्य को आर्थिक नुकसान पहुंचा रहे हैं।