डीएवी वैदिक आनंदोत्सव: वैदिक मूल्यों और आधुनिकता शिक्षा का अदभुत संगम




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नवीन चौहान
मां गंगा के तट पर हरिद्वार की पावन भूमि पर डीएवी सेंटेनरी पब्लिक स्कूल, जगजीतपुर के प्रांगण में दो दिवसीय ‘वैदिक आनंदोत्सव’ केवल एक विद्यालयी कार्यक्रम नहीं था, बल्कि यह उस शैक्षिक दर्शन की जीवंत अभिव्यक्ति थी जो भारत के भविष्य को संस्कृति, ज्ञान और विज्ञान के त्रिवेणी संगम से गढ़ने का आह्वान करता है।

आज जब शिक्षा का अर्थ केवल अंकों और प्रतियोगिता तक सीमित होता जा रहा है, तब डीएवी विद्यालयों की यह पहल वैदिक मूल्यों और आधुनिक शिक्षा के बीच सेतु बनाने की दिशा में एक सार्थक प्रयास है। ‘वैदिक आनंदोत्सव’ इसी समन्वय का प्रतीक बनकर उभरा — जहाँ ऋषि दयानंद सरस्वती की शिक्षा-दृष्टि, भारतीय परंपरा का गौरव और 21वीं सदी की शैक्षिक ऊर्जा एक साथ झलकी।

वेदों का आलोक और शिक्षा का उद्देश्य

वैदिक आनंदोत्सव कार्यक्रम का आरंभ वैदिक मंत्रोच्चारण और दीप प्रज्वलन से हुआ। यह केवल परंपरा नहीं थी, बल्कि एक संदेश था कि ज्ञान की यात्रा अंधकार को दूर कर प्रकाश की ओर ले जाने से ही प्रारंभ होती है।
मुख्य वैदिक वक्ता प्रो. दिनेश चंद्र शास्त्री ने ठीक ही कहा कि “वेद केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन का विज्ञान हैं।” यह विचार आज के उस समाज के लिए अत्यंत प्रासंगिक है जहाँ शिक्षा का उद्देश्य जीवनदर्शन से कटता जा रहा है।

संस्कार और सृजनशीलता का अद्भुत संगम

विद्यालय के प्रधानाचार्य मनोज कुमार कपिल ने अपने संबोधन में कहा कि इस उत्सव का मकसद केवल आयोजन करना नहीं, बल्कि विद्यार्थियों के भीतर वैदिक आदर्शों को पुनर्स्थापित करना है। यही वह दृष्टि है जो डीएवी संस्थानों को विशिष्ट बनाती है — जहाँ विद्यार्थी केवल ‘सफल’ नहीं, बल्कि ‘सुसंस्कृत’ नागरिक के रूप में विकसित होते हैं।

विद्यार्थियों की प्रस्तुतियाँ इस दृष्टि की साक्षात अभिव्यक्ति थीं — चाहे राजस्थानी लोकनृत्य की सांस्कृतिक झंकार हो, या ऐतिहासिक नाट्य प्रस्तुति “छत्रपति वीर शिवाजी” का राष्ट्रभक्ति से भरा संदेश। यह देखना सुखद था कि आधुनिक मंच पर भी परंपरा का स्वर जीवंत था, और आधुनिक शिक्षा के बीच भी संस्कृति का स्पंदन स्पष्ट था।

भविष्य की पीढ़ी को दिशा देता यह आयोजन

पुरस्कार वितरण केवल प्रतिभा का सम्मान नहीं था, बल्कि यह प्रेरणा थी — कि शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य प्रतियोगिता नहीं, बल्कि आत्मविकास और समाज के प्रति उत्तरदायित्व है। जब विद्यार्थी “रघुपति राघव राजा राम…” जैसे भक्ति गीत पर ताल देते हैं और साथ ही ‘नव रस नृत्य नाटिका’ के माध्यम से भावनाओं की गहराई को अभिनय से व्यक्त करते हैं, तब यह स्पष्ट होता है कि नई पीढ़ी में भी भारतीयता जीवित है — बस उसे सही दिशा और प्रेरणा की आवश्यकता है।

डीएवी संस्था ‘वैदिक आनंदोत्सव’ आयोजनों के माध्यम यह स्मरण कराते है कि भारत का वैभव उसकी तकनीक या भौतिक प्रगति में नहीं, बल्कि उसकी आत्मा — उसके संस्कार, उसके वेदज्ञान और उसके मानवीय मूल्यों में निहित है।

आज जब विश्व शिक्षा को केवल कौशल तक सीमित करने की भूल कर रहा है, डीएवी जैसे संस्थान यह साबित कर रहे हैं कि शिक्षा तभी पूर्ण है जब वह “मानवता के उत्थान और आत्मा के जागरण” का माध्यम बने।

हरिद्वार डीएवी सेंटेनरी पब्लिक स्कूल का वैदिक आनंदोत्सव कार्यक्रम महज एक आयोजन नही है। यह केवल विद्यार्थियों के लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए एक प्रेरणा है — कि भारतीय संस्कृति कोई पुरानी परंपरा नहीं, बल्कि एक जीवंत विचारधारा है, जो हर युग में प्रासंगिक और पथप्रदर्शक रहेगी।

दो दिनों तक चलने वाले वैदिक आनंदोत्सव को सकुशल संपन्न कराने के लिए स्कूल के सभी शि​क्षक, शिक्षिकाएं और समस्त स्टॉफ अपने ज्ञान और कौशल को प्रदर्शित करत है। वह समाज को दर्शाने का प्रयास करते है कि डीएवी स्कूल बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ वैदिक मूल्यों को कूट—कूट कर भरने का प्रयास करते है। ताकि वह श्रेष्ठ नागरिक बनकर राष्ट्रसेवा कर सकें और राष्ट्रप्रेम के लिए समर्पित रहे।