अयोध्या के बाद बदरीनाथ धाम पर मुस्लिमों ने किया अपना दावा, जानिए पूरी खबर




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देश में अभी अयोध्या, काशी व मथुरा का विवाद हल नहीं हुआ है कि एक बार फिर दारूम उलूम के मौलान अब्दुल लतीफ ने एक टीवी चैनल को दिए बयान से विवाद की आग में घी डालने का काम किया है। मौलाना ने अयोध्या के अतिरिक्त उत्तराखण्ड के चार धामों में से एक प्रसिद्ध बदरीनाथ धाम को मुसलमानों का स्थान बता डाला। मौलाना के अनुसार यह भूमि बदरुद्दीन ही है। यह तो मुसलमानों की दरियादिली का नमूना है कि उन्होंने हिन्दुओं को पूजा-अर्चना के लिए इस स्थान को उन्हें दे रखा है।

विदित हो कि देवबंद, सहारनपुर दारुल उलूम के मौलाना अब्दुल लतीफ ने एक टीवी चैनल पर दावा किया है कि बद्रीनाथ हिंदुओं का नहीं बल्कि मुस्लिमों का स्थान है जो बदरुद्दीन के चलते बद्रीनाथ कहा गया है। इसके साथ ही मौलाना अब्दुल लतीफ ने एहसान जताया जो वहां हिन्दू पूजा अर्चना आदि कर रहे हैं जिसे उन्होंने मुसलमानों की दरियादिली के कारण है।

इस सनसनीखेज बयान के बाद हिन्दू संगठनों में रोष व्याप्त है। मौलाना अब्दुल की इन बातों से समाज में विद्धेष के अतिरिक्त और कुछ हासिल होने वाला नहीं है।
मौलाना अब्दुल लतीफ के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय प्रवक्ता बाबा बलराम दास हठयोगी ने कहा कि मौलान को न तो इतिहास की जानकारी है और न ही संस्कृति की। कहा कि जब इस्लाम पैदा नहीं हुआ था तब से बदरीनाथ का वर्णन पुराणों में है। कहा कि बदरूद्दीन 14वीं शताब्दी में हुआ था। बाबा हठयोगी ने कहाकि जो आज अपने को मुसलमान कहते हैं उनके दादा-पड़दादा भी हिन्दू थे। कहा कि जिसे आज दारूम उलूम कहा जाता है उसका नाम देवीवृंद था। वहां देवी मंदिर थे, यह प्रमाणिक है। कहा कि मौलाना हवा में तीर मार रहा है। उन्होंने कहा कि यह तो हिन्दुओं का एहसान है कि मुसलमान आज हिन्दुस्तान में रह रहे हैं। कहा कि ऐसी सिरफिरी बात करने वालों को सरकार को सलाखों के पीछे डाल देना चाहिए।

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेन्द्र गिरि महाराज ने कहा कि ऐसा बयान पागल मानसिकता का व्यक्ति ही दे सकता है। बदरीनाथ का वर्णन पुराणों में है और पुराण आज के लिखे नहीं हैं। ऐसी बात करने वालों से सरकार को सख्ती से निपटना चाहिए।

मुस्लिम भक्त ने लिखी थी बदरीनाथ की आरती
दारूम उलूम के मौलाना अब्दुल लतीफ ने बदरीनाथ को जिस बदरूद्दीन का बताया, वास्तव में वह सनातनी सोच के व्यक्ति थे। वे मुसलमान होते हुए भी भगवान बदरीनाथ के भक्त थे। जो आरती वर्तमान में बदरीनाथ मंदिर में गाई जाती है, उस आरती को बदरूद्दीन ने ही लिखा था।
152 सालों से कपाट खुलने से बंद होने तक मंदिर में नित्य सुबह-शाम जो आरती गाई जाती है, उसे एक मुस्लिम शायर ने लिखा था और वह शायर चमोली जिले के नंदप्रयाग निवासी फकरुद्दीन (बदरुद्दीन) थे।
बदरुद्दीन ने यह आरती वर्ष 1865 में लिखी थी। जब से ये आरती लिखी गई तब से भगवान बद्री विशाल की पूजा परंपराओं की शुरुआत इसी आरती के साथ होती है। जब ये आरती फकरुद्दीन ने लिखी थी तब उनकी उम्र महज 18 साल थी। इस आरती में बदरीनाथ धाम के धार्मिक महत्व के अलावा यहां की सुंदरता का भी वर्णन किया गया है। यह आपसी सौहार्द की अनूठी मिशाल है। बदरीनाथ मंदिर ही विश्व में एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां मुस्लिम द्वारा लिखी गई आरती गाई जाती है। अभी तक जितने भी धर्म ग्रंथ लिखे गए हैं वह सभी ब्राह्मणों व ऋषि-मुनियों द्वारा लिखे गए हैं। ऐसे में आपसी सौहार्द की अनूठी मिशाल का विवादिन बनाना अचित नहीं कहा जा सकता।