मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने नन्ही बच्चियां के साथ मनाया फूलदेई, किया पौधरोपण




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सोनी चौहान
उत्तराखंड के लोकपर्व फुलारी पर नन्ही बच्चियां जब देहरी पर फूल डालती हैं और सभी के कल्याण की कामना करती हैं। तो यह सर्वे भवंतु सुखिनः की हमारी महान सांस्कृतिक परंपरा को दर्शाता है। फूलदेई प्रकृति से जुड़ा पर्व भी है। इसलिए इस अवसर पर वृक्षारोपण अवश्य करें। हमारी सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने व इसे प्रचारित करने में शशि भूषण मैठाणी पारस जी का अहम योगदान रहा है।


मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि सुख-समृद्धि का प्रतीक फूलदेई त्योहार उत्तराखंड की गढ़ कुंमाऊ संस्कृति की पहचान है। वसंत का मौसम आते ही सभी को इस त्योहार का इंतजार रहता है। देहरादून में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने भी यह त्योहार मनाया। पौधरोपण भी किया। घर की गृहणी उनको फूल वर्षा के बदले चावल, गुड़ के साथ दक्षिणा के रूप में रुपए भी देती है। यह त्योहार आमतौर पर चैत्र पंचमी को आता है। इस दिन लोग गांवों में अपने घरों को साफ-सफाई कर लाल मिट्टी से सजाते हैं।


फिर इसके बाद बच्चे इन घरों में विभिन्न प्रकार के फूलों की वर्षा कर गांव की उन्नति के गीत गाते हैं। फूलदेई त्योहार में बुरांस के फूल विशेष होते हैं। बच्चे एक दिन पहले ही जंगल जाकर बुरांस के फूल एकत्र करते हैं।
इसके साथ ही प्यूंली, हिलांश, सरसौं आदि के फूलों से सजी रिंगाल की टोकरियों को सिर में रखकर बच्चे गीत गाते हुए आंगन-आंगन जाते हैं। फिर गांव के सार्वजनिक चौक में वसंत ऋतु के आगमन को लेकर गीत गाकर नृत्य करते हैं।


मां यमुना के शीतकालीन प्रवास खरशाली गांव में फूलदेई त्योहार के अवसर पर बाजगी समाज द्वारा रिमझिम बारिश साथ आराध्यदेव शनिदेव समेश्वर देवता के मंदिर की परिक्रमा के साथ तांदी नृत्य किया गया।