जय शिव शंकर, हर-हर महादेव, आस्था, समर्पण और सेवा का महापर्व कांवड़ यात्रा




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न्यूज 127.
सावन का महीना, आसमान में बादल, रिमझिम बारिश की फुहार, पांव में छाले, कंधों पर कमंडल और दिल में भोलेनाथ का नाम। कांवड़ यात्रा यह कोई आम यात्रा नहीं, यह है श्रद्धा की अग्निपरीक्षा, आस्था का समर्पण, और संकल्प की पराकाष्ठा है। कांवड़ नहीं, भावनाओं का भार है ये।

हरिद्वार, गंगोत्री, गौमुख, नीलकंठ, देवप्रयाग, ऋषिकेश इन पवित्र स्थलों से जल लेकर हजारों कांवड़िए जब पैदल, नंगे पांव, घंटों-घंटों चलकर अपने गांव, नगर या मंदिरों में शिवलिंग पर जल अर्पित करते हैं, तो लगता है मानो आदिकाल का तपस्वी युग लौट आया हो। हर ओर ‘बोल बम’ की गूंज सिर्फ आकाश नहीं चीरती, यह मन की अशुद्धियों को भी भस्म करती है। इस वर्ष भी अनुमानित 2 करोड़ से अधिक शिवभक्तों ने कांवड़ यात्रा में भाग लिया। कोई मीलों पैदल, तो कोई बग्घी, साइकिल या बाइक से यात्रा कर रहा है, लेकिन हर किसी का उद्देश्य एक ही—
“गंगाजल लाकर भोलेनाथ को अर्पित करना, और खुद को भीतर से शुद्ध करना”।

उत्तराखंड सरकार, हरिद्वार पुलिस, स्वास्थ्य विभाग और स्वयंसेवी संस्थाएं दिन-रात सेवा में जुटी हैं। जहां एक ओर सुरक्षा के लिए ड्रोन, CCTV और स्पेशल फोर्स, वहीं दूसरी ओर सेवा शिविरों में ठंडा पानी, भोजन, दवाएं और प्राथमिक चिकित्सा। हर कोई एक ही उद्देश्य में एकजुट है — “शिवभक्तों को कोई कष्ट न हो”। सड़क किनारे रुककर जल पीते शिवभक्त, दूसरों की मदद करते युवाओं की टोली, और नंगे पांव चलती महिलाएं — यह सब दृश्य कांवड़ यात्रा को सिर्फ एक धार्मिक उत्सव नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक महायात्रा बना देते हैं।

इतिहास की बात करें तो कांवड़ यात्रा का उल्लेख पुराणों में भी मिलता है। मान्यता है कि रावण स्वयं कैलाश पर्वत पर गंगाजल चढ़ाने गया था। इसी पावन परंपरा को आज लाखों भक्त निभा रहे हैं। हरिद्वार, ऋषिकेश और नीलकंठ जैसे स्थानों पर स्थानीय लोग श्रद्धालुओं पर फूल बरसाकर स्वागत कर रहे हैं। सांसद, मंत्री और सामाजिक संगठन कांवड़ियों के फल, शर्बत, छांव, जूते और पट्टियाँ देकर स्वागत कर रहे हैं। यह संवेदनशीलता, सेवा और सद्भाव की ऐसी मिसाल है जो हर किसी को भावुक कर देती है।

कांवड़ यात्रा एक संकल्प है… एक संवाद है… एक साक्षात्कार है शिव से। यह भीड़ नहीं, एक मौन पुकार है – “हे भोले, तू ही आधार है… तेरे बिना जीवन बेकार है।” हर ‘बोल बम’ के साथ श्रद्धा और समर्पण की ऐसी आभा फैलती है कि देवभूमि की आत्मा खुद झूम उठती है।