स्वाधीनता के 77 वर्ष बाद भी देश की आधी आबादी अर्थात महिलाएं राजनीति में उचित प्रतिनिधित्व नहीं पा सकी हैं। सितंबर 2023 में संसद ने 128वां संविधान संशोधन पारित कर लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया। इसके बावजूद किसी भी पार्टी ने महिलाओं को इतनी उम्मीदवारी नहीं दी।
वजह यह भी है कि राजनीति में चुनाव जीतना महत्वपूर्ण है इसलिए इसमें ऐसे पुरुष उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जाती है जो अपने क्षेत्र में लोकप्रिय व प्रभावशाली हों तथा जिनके पीछे जनबल दिखाई दे। यद्यपि सभी पार्टियों के नेता महिला आरक्षण का ऊपरी तौर पर समर्थन करते हैं लेकिन जब टिकट देने की बारी आती है तो महिलाओं की उपेक्षा की जाती है।
यह एक तरह का दोहरा व्यवहार है जिसमें कथनी और करनी का अंतर साफ नजर आता है। कुछ पार्टियों ने कोटे के भीतर कोटा देने का मुद्दा आगे बढ़ाया था अर्थात महिलाओं के 33 फीसदी कोटे में से अजा-अजजा और ओबीसी को आरक्षण की बात कही थी। संविधान संशोधन में किए गए प्रावधान के मुताबिक परिसीमन प्रक्रिया से महिला आरक्षण लागू करने का मुद्दा जुड़ा हुआ है।
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इसके अनुसार परिसीमन के बाद जनगणना के संदर्भित आंकड़ों के आधार पर महिला आरक्षण दिया जाएगा जो 15 वर्षों की अवधि के लिए रहेगा। ऐसे आंकड़े 2026 तक आ पाएंगे। पिछले 3-4 दशकों में महिला आरक्षण इसलिए वास्तविक धरातल पर नहीं उतरा क्योंकि पुरुष राजनेताओं को भय था कि इससे वे अपनी सीट खो बैठेंगे और वह सीट महिला के लिए आरक्षित हो जाएगी।
यदि कुल 543 सदस्यों की वर्तमान लोकसभा में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण लागू किया गया तो महिलाओं के लिए 182 सीटें आरक्षित हो जाएंगी और पुरुषों के लिए सिर्फ 363 सीटें ही बचेंगी। उल्लेखनीय है कि वर्तमान लोकसभा में 467 पुरुष सदस्य हैं। ऐसी हालत में महिला आरक्षण से पुरुष सदस्यों को नुकसान न होने पाए इसलिए परिसीमन के बाद लोकसभा की सदस्य संख्या वर्तमान 543 से बढ़ाकर 770 की जा सकती है।
इस दूरगामी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए नए संसद भवन का निर्माण किया गया ताकि अधिक सदस्यों को वहां स्थान मिल सके। इस तरह के आकलन के अनुसार महिलाओं के लिए 253 सीटें आरक्षित हो जाएंगी जिन पर विभिन्न पार्टियों की अथवा निर्दलीय महिलाएं चुनाव लड़ सकेंगी।
तब शेष 513 सीटें पुरुष नेताओं के लिए उपलब्ध होंगी। ऐसी स्थिति में राजनीतिक पार्टियों को अपने पुरुष नेताओं को निर्वाचित कराने में कोई दिक्कत नहीं होगी। इन पार्टियों को अलग से महिला कोटा मिल जाएगा। लोकसभा की सीटें बढ़ाकर ही इस पहेली का हल निकाला जा सकता है।
अभी देखा जाता है कि राजनेता अपने परिवार की किसी महिला को ही टिकट देते हैं। जब महिला आरक्षण लागू होने से सीटें बढ़ जाएंगी तो राजनीति में सक्रिय अन्य महिलाओं को भी पर्याप्त अवसर उपलब्ध होगा।