जाने क्यों कई बार हो चुका है संतों के साथ खूनी संघर्ष




Listen to this article

हरिद्वार। रेप केस में डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम, आशाराम जैसे कई संतों के जेल की सलाखों के पीछे जाने के बाद संतो के मामले परत दर परत खुलते जा रहे हैं। संतों के साथ खूनी संघर्ष के पीछे आपसी रंजिश के साथ सम्पत्ति बड़ी वजह है। यही कारण है कि संतो को भी सुरक्षा के लिए शस्त्रों के साथ सुरक्षाकर्मी भी रखने पड़ते हैं। कई संतों को तो जेड और वाई श्रेणी की सुरक्षा भी मिली हुई है। गनर रखने वाले संतों की तो लम्बी फेहरिस्त है।
संतों की हत्या व उन्हें जेल की सलाखोंके पीछे धकेलने के बाद तो देश के कई हिस्सों में तो बवाल तक हुए हैं। संतों के जेल भेजने का सिलसिला काफी साल पहले तमिलनाडु से शुरू हुआ था। जयललिता के शासनकाल में स्वामी जयेंद्र सरस्वती को हत्या के केस में जेल जाने पर पूरे तमिलनाडु सहित देश में बवाल जैसे हालात पैदा हो गये थे।
यही नहीं, आसाराम बापू हो या फिर हरियाणा में ही रामपाल। तमाम धर्माचार्यों की गिरफ्तारी पर उनके समर्थकों ने भारी बवाल किया है। आसाराम बापू जिस समय जेल जा रहे थे उस समय गुजरात सहित कई राज्यों में तनावपूर्ण हालात पैदा हो गए थे। ऐसा ही रामपाल की गिरफ्तारी के दौरान भी हुआ था। रामपाल ने तो अपने समर्थकों को ही ढाल की तरह इस्तेमाल कर पुलिस बल पर बड़ा हमला बोल दिया था। अब डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम के समर्थकों ने भी वही काम किया है। भगवा चोला धारण करने वाले संत अब यज्ञ, हवन, पूजा-पाठ और भगवान का ध्यान करने के साथ-साथ हथियारों से भी प्रेम करने लगे हैं। इस का जीता जागता उदाहरण है हरिद्वार के संतों द्वारा बनवाए गए अत्याधुनिक हथियारों के लाइसेंस।
हरिद्वार संत बाहुल्य क्षेत्र है। लिहाजा हमेशा से ही यहां संतों को अपनी जान का खतरा रहा है और शायद यही कारण है कि अब भारी तादाद में हरिद्वार में संत समाज का एक तबका अपनी जान-माल की सुरक्षा के लिए भजन, माला, शास्त्रों के साथ-साथ अब शस्त्र भी रखने लगा है। कई संतों ने सुरक्षा गार्ड भी रखे हुए हैं। जिन पर संतों व सरकार का काफी धन खर्च होता है।
हरिद्वार में कोतवाली हरिद्वार और कोतवाली कनखल के पास ऐसे तमाम संतों का ब्यौरा है जिन्होंने लाइसेंसी हथियार लिए हुए हैं। हरिद्वार कोतवाली क्षेत्र में ही बड़े संतों और महंतों ने लाइसेंसी हथियार लिए हुए हैं। लगभग 30 से ज्यादा संतों ने अंग्रेजी और अत्याधुनिक हथियार रखे हुए हैं।
हथियारों को रखने के मामले में सबसे ज्यादा कनखल कोतवाली में संतों लाइसेंस लिए हुए हैं। हमने जब कनखल कोतवाली के असलहा रजिस्टर को चेक किया तो करीब 50 से ज्यादा संतों के नाम हमारे सामने थे। इन नामों में तमाम अखाड़ों के प्रमुख संतों के साथ-साथ छोटे महंत और मंदिर के पुजारी भी शामिल हैं।
जिन संतों के पास हथियारों के लाइसेंस हैं उनमें कुछ प्रमुख संत भी शामिल हैं। हाल ही में शंकराचार्य की उपाधि से नवाजे गए स्वामी अच्युतानंद तीर्थ हों या फिर स्वामी चिन्मयानंद। रामदेव के सहयोगी आचार्य बालकृष्ण ने भी हथियार का लाइसेंस लिया हुआ है।यही नहीं कई संतों ने तो अपने नाम से दो-दो लाइसेंस लिए हुए हैं। एक जमाने में संतों की छवि ध्यान कंदराओं में पाठ पूजा करने वालों की हुआ करती थी लेकिन आजकल जिस तरह से संतों, अखाड़ों, महंतों और मठों का स्वरूप बदल रहा है उससे संतों को भी लगता है कि उनकी जान को खतरा है। उसकी सबसे प्रमुख वजह है कि इन संतों के जो भक्त इनको दान स्वरूप पैसे, जमीन, जायदाद देते हैं उन पर भी कई लोगों की नजर रहती है। लिहाजा इसलिए भी अब संत हथियार जैसी दूसरी चीजें रखने लगे हैं।
बीते कुछ सालों से हरिद्वार में संतों के बीच खूनी संघर्ष देखने के लिए मिला है जिसमें 2 दर्जन से ज्यादा संतों की हत्याएं कर दी गई हैं। यह बात अलग है कि हत्याएं कभी उनके शिष्यों ने जमीन जायदाद के लिए की, या फिर कुछ हत्याएं भूमाफियाओं ने संतों की भूमि हड़पने के लिए की है। हरिद्वार में महज 21 साल में 22 साधु सन्यासी संपत्ति के चलते परलोक सिधारे हैं। सबसे अधिक हत्या की वजह संतों का रियल स्टेट के कारोबार में उतरना है। आज कोई भी अखाड़ा हरिद्वार में ऐसा शेष नहीं है जो रियल स्टेट के कारोबार में न उतरा हो। सभी की जमीनों पर बहुमंजिला इमारतें खड़ी हुई हैं और उनको मोटे दामों पर बेचकर उकूत सम्पदा इकट्ठा की जा रही है। यही अकत सम्पदा संतो ंके अपहरण और उनकी मौत की असली वजह कही जा सकती है।
25 अक्टूबर, 1991 को रामायण सत्संग भवन के संत राघवाचार्य आश्रम से निकलकर टहल रहे थे। स्कूटर सवार लोगों ने उन्हें घेर लिया पहले गोली मारी फिर चाकूओं से गोद दिया गया।
09 दिसम्बर, 1993 को रामायण सत्संग भवन के ही स्वामी व संत राघवाचार्य आश्रम के साथी रंगाचार्य की ज्वालापुर में हत्या कर दी गई। अब सत्संग भवन में सरकारी पहरा है और उस पर रिसीवर तैनात है।
सूखी नदी स्थित मोक्षधाम की करोड़ों की सम्पत्ति। 1 फरवरी, 2000 को ट्रस्ट के सदस्य गिरिश चंद अपने साथी रमेश के साथ अदालत जा रहे थे। पीछे से एक जीप ने टक्कर मारी जिसमें रमेश मारे गये। पुलिस ने स्वामी नागेन्द्र ब्रह्मचारी को सूत्रधार मानते हुए जेल भेज दिया।
बेशकीमती कमलदास की कुटिया पर भी लोगों की दृष्टि रही है। यहां झगड़े हुए लेकिन कोई हत्या तो नहीं हुई परन्तु पुलिस का पहरा बरकरार है।
चेतनदास कुटिया में तो अमेरिकी साध्वी प्रेमानंद की दिसंबर 2000 में लूटपाट कर हत्या कर दी गई। कुछ स्थानीय लोग पकड़े गये मामला चल रहा है।
5 अप्रैल, 2001 को बाबा सुतेन्द्र बंगाली की हत्या।
16 जून, 2001 को हर की पैड़ी के सामने टापू में बाबा विष्णुगिरि समेत चार साधुओं की हत्या।
26 जून, 2001 को ही एक अन्य बाबा ब्रह्मानंद की हत्या। इसी वर्ष पानप देव कुटिया के बाबा ब्रह्मदास को दिनदहाड़े गोली से उड़ा दिया गया।
17 अगस्त, 2002 बाबा हरियानंद व उनके चेले की हत्या। एक अन्य संत नरेन्द्र दास की हत्या।
06 अगस्त, 2003 को संगमपुरी आश्रम के प्रख्यात संत प्रेमानंद उर्फ भोले बाबा गायब। 07 सितंबर 2003 को हत्या का खुलासा। आरोपी गोपाल शर्मा पकड़ा गया। अब तक आश्रम सील है।
28 दिसम्बर, 2004 को संत योगानंद की हत्या। हत्यारों का पता नहीं।
15 मई, 2006 को पीली कोठी के स्वामी अमृतानंद की हत्या। संपत्ति पर सरकारी कब्जा।
25 नवंबर, 2006 की सुबह इंडिया टैम्पल के बाल स्वामी की गोली मारकर हत्या। तीन हत्यारे गिरफ्तार साजिश के तार अयोध्या से जुड़े।
08 फरवरी, 2008 को निरंजनी अखाड़े के 7 साधुओं को दिया गया जहर। सभी बचे। कोई पकड़ा नहीं गया।
सम्पत्ति को लेकर साल 2012 में सुधीर गिरि की हत्या, हत्यारोपी चार वर्ष बाद गिरफ्तार हुए।
चार वर्ष पूर्व लक्सर क्षेत्र में झोपड़ी में रह रहे दो साधुओं की पत्थर से कुचलकर हत्या। ऐसे अनेक मामले हैं जब संतों को असमय काल का ग्रस बनना पड़ा।