नगर निगम घोटालों में पार्षदों का कारनामा: पत्नी और परिवारों के नाम का वेतन डकारा




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न्यूज127
नगर निगम के घोटालों का सिलसिला थमने का नाम नही ले रहा है। एक के बाद एक नए घोटाले सामने आ रहे है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने घोटालेबाजों को सबक सिखाने की ठान ली है। इसी के चलते दो आईएएस,
क पीसीएस समेत 12 कर्मचारियों को निलंबित कर पारदर्शी सरकार चलाने का संदेश दिया। जिसके बाद प्रदेश में शिकायतकर्ताओं का भी मनोबल बढ़ा है। भ्रष्टाचारियों के खिलाफ खुलकर आवाज बुलंद करने में लगे है। नया मामला राजधानी देहरादून नगर निगम का है।
यह प्रकरण नगर निगम की मोहल्ला स्वच्छता समितियों में 99 फर्जी सफाई कर्मचारियों के नाम पर लगभग 9 करोड़ रुपये के वेतन गबन से जुड़ा है। यह फर्जीवाड़ा 2019 से 2023 तक पांच वर्षों तक लगातार चलता रहा और किसी ने इस पर गंभीरता से कार्रवाई नहीं की।इस घोटाले का खुलासा जनवरी 2024 में तब हुआ जब जिलाधिकारी के आदेश पर मुख्य विकास अधिकारी (CDO) ने जांच शुरू की। जांच में साफ हुआ कि जिन कर्मचारियों के नाम पर वेतन निकाला गया था, वे वास्तविकता में कभी मौजूद ही नहीं थे।जांच में यह भी सामने आया कि कई पार्षदों ने अपने रिश्तेदारों, पत्नियों और पार्टी पदाधिकारियों को सफाई कर्मचारी दर्शाकर, वर्षों तक उनके नाम से सरकारी वेतन प्राप्त किया।इस घोटाले को सार्वजनिक करने में आरटीआई एक्टिविस्ट और अधिवक्ता विकेश सिंह नेगी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण रही।नेगी ने सूचना के अधिकार (RTI) के तहत नगर निगम से दस्तावेज़ मांगे और उन्हें खंगालने पर यह बड़ा घोटाला सामने आया। उन्होंने यह खुलासा किया कि न केवल फर्जी कर्मचारियों के नाम पर वेतन निकाला गया, बल्कि मोहल्ला स्वच्छता समितियों की आड़ में व्यवस्थित रूप से योजनाबद्ध भ्रष्टाचार को अंजाम दिया गया।विकेश नेगी ने अपने प्रयासों से न केवल इस पूरे तंत्र को बेनकाब किया, बल्कि कई बार अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के विरुद्ध जन सुनवाई में साक्ष्य भी प्रस्तुत किए। उनके निरंतर दबाव के चलते प्रशासन को मामले की जांच तेज करनी पड़ी।अब इस प्रकरण में नगर निगम के उप नगर आयुक्त गौर भसीन की तहरीर पर मुकदमा दर्ज किया गया है। FIR में विशेष रूप से निम्न पक्षों की जांच की बात कही गई है:यह भी संभावना जताई जा रही है कि जांच का दायरा भविष्य में और भी व्यापक किया जाएगा और नगर निगम के कुछ अधिकारियों की सांठगांठ और मिलीभगत की भी जांच हो सकती है।देहरादून जैसे संवेदनशील शहर में इतने वर्षों तक बिना किसी रोक-टोक के इस तरह का भ्रष्टाचार होना शासन-प्रशासन की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करता है।