सांप भी मर गया लाठी भी नही टूटी की तर्ज पर उत्तराखंड के बंद अस्पताल खुले




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नवीन चौहान
सांप भी मर गया और लाठी भी नही टूटी कुछ इसी फार्मूले का प्रयोग कर सरकार ने निजी अस्पतालों को अपने बंद अस्पताल खोलने के लिए राजी कर लिया। सरकार की हठधर्मिता के आगे निजी चिकित्सक पूरी तरह से बेवस नजर आए। सरकार के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत ने चिकित्सक संगठनों को संतुष्ट करने और चिकित्सकों की मांगों का परीक्षण कराने के लिए वित्त मंत्री प्रकाश पंत की अध्यक्षता में एक कमेठी गठित कर दी। जो कमेटी क्लीनिकल स्टैब्लिशमेंट एक्ट में चिकित्सकों की अड़चनों को दूर कर इस एक्ट को व्यवहारिक बनाने का कार्य करेंगी। जिसके बाद चिकित्सक इस एक्ट को स्वीकार करेंगे। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की इस सलाह पर निजी चिकित्सक अपने अस्पताल खोलने को राजी हो गए। कुल मिलाकर कहा जाए तो चिकित्सकों की बात को सरकार ने सुन भी लिया और उनकी नाराजगी भी दूर कर दी। ये चिकित्सकों के लिए अच्छी बात रही कि एक सम्मानजक मोड़ पर आकर सरकार और उनके बीच में बन रही खाई पट गई। जिसके बाद रविवार को प्रदेश के सभी निजी चिकित्सकों ने अपने अस्पतालों के ताले मरीजों के खोल दिए।
केंद्र सरकार के उत्तराखंड प्रदेश को भेजे गए क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट को लागू करने के आदेश के विरोध में उत्तराखंड प्रदेश के तमाम चिकित्सक संगठन लामबंद हो गए। उत्तराखंड के सभी संगठनों ने करीब नौ दिनों से अपने निजी क्लीनिकों पर ताले जड़ दिए। पहले शांतिपूर्ण तरीके से चिकित्सक संगठनों ने विरोध जताया। लेकिन जब सरकार तक उनकी आवाज नही पहुंची तो निजी चिकित्सक सड़कों पर आ गए। निजी चिकित्सक संगठनों ने रैली निकालकर सरकार विरोधी नारे लगाए। निजी चिकित्सकों और सरकार के बीच की लड़ाई को खत्म कराने के लिए जनप्रतिनिधियों ने पहल शुरू की। उत्तराखंड के केबिनेट मंत्री मदन कौशिक, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट वही विपक्षी पार्टियों के नेता पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत सहित तमाम नेताओं ने मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को निजी चिकित्सकों के हितों को ध्यान में रखते हुए एक्ट को सरल बनाने की बात की। जिसके बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत आगे बढ़े और निजी चिकित्सक संगठनों के प्रतिनिधियों से मिलकर बीच का रास्ता निकाला। हालांकि इस रास्ते में अभी कई कठिनाई बाकी हैं। लेकिन सबसे अच्छी बात ये रही कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने चिकित्सकों का बातों को पूरा सम्मान दिया। जिसके बाद निजी चिकित्सकों के चेहरों पर खुशी दिखाई दी। क्लीनिकल इस्टैब्लिशमेंट एक्ट की अव्यवहारिक अड़चनों को दूर करने की जिम्मेदारी इस कमेटी पर आ गई है। देखना होगा कि कमेटी में शामिल चिकित्सक अपनी बात मनमाने में कामयाब होते है। या पूर्व के ही एक्ट में संसोधन करके प्रदेश में लागू किया जायेगा। इस बात को लेकर प्रदेश के निजी चिकित्सक पशोपेश में है। फिलहाल निजी अस्पतालों के ताले मरीजों के लिए खुल गए है। ये राहत की बात है।