उत्तराखंड के विधायकों के बढ़े वेतन भत्तों पर रोक लगाने की मांग




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न्यूज127
उत्तराखंड के विधायकों के बढ़े हुए वेतन भत्तों पर रोक लगाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा गया है। पत्र में उत्तराखंड की आर्थिक स्थिति का हवाला दिया गया है। प्रदेश के हितों में इस पत्र का संज्ञान लेने और बढाए गए वेतन व भत्तों पर रोक लगाने की मांग की गई है।
रूल आफ लॉ एंड जस्टिस फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष व एडवोकेट डॉ अरविंद कुमार श्रीवास्तव ने मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली को ईमेल के माध्यम से भेजे गए पत्र में बताया कि उत्तराखण्ड राज्य एक अत्यन्त अल्प वित्तीय संसाधनों का प्रदेश है। उत्तराखण्ड राज्य के पर्वतीय निवासी अत्यंत आर्थिक विसंगतियों से जूझ रहे हैं, जंगली जानवरों का प्रकोप व कृषि कार्य हेतु भूमि की कमी के कारण कृषि से भी कोई आय प्राप्त नहीं होती। पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार की व्यवस्था न हो पाने के कारण यहाँ के युवा पलायन करने को मजबूर हैं। उत्तराखण्ड राज्य पर पहले से ही काफी आर्थिक बोझ है। बावजूद इसके माननीय मुख्यमन्त्री ने विधेयक दिनांकित 23.08.2024 द्वारा विधायकों का मासिक मानदेय 290000 से बढ़ाकर 400000 रू० व पूर्व विधायकों की पेंशन में 20000 रू0 का इजाफा कर दिया था। वर्तमान मुख्यमन्त्री ने उक्त विधेयक को पारित करा दिया गया है।
यहाँ यह उल्लेखनीय है कि कुछ विधायक 4-5 टर्म से विधायक हैं तथा उन्हें मानदेय के साथ-साथ पूर्व कार्यकाल की पेंशन भी मिल रही है। जिस कारण उनकी पूर्व पेंशन ही 4-5 लाख बन जाती है तथा उसमें वर्तमान का मानदेय जोड़ देने पर यह आँकड़ा 10,00,000 रु० तक पहुँच जाता है। उत्तराखण्ड जैसे कम वित्तीय संसाधन, व्यक्तियों के पलायन, कृषि आय में कमी दिन-प्रतिदिन आपदाओं का बोझ रहता है, जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन, प्राकृतिक आपदा, वन अग्नि, जंगली जानवरों का प्रकोप उत्तराखण्ड राज्य में 12 माह चलता रहता है। है। ऐसी स्थिति में यह वित्तीय बोझ दुर्भाग्यपूर्ण ग्यिपूर्ण है। यदि इस विधेयक पर तत्काल प्रभाव से रोक नहीं लगाई गई तो यह इस गरीब राज्य व इसके गरीब नागरिकों के हित पर प्रतिकूल प्रभाव डालेगा।
जबकि इस राज्य की प्रतिव्यक्ति आय भी निम्नतर स्तर पर है, इस स्थिति में वर्तमान विधायकों का मानदेय व पूर्व विधायकों की पेंशन वेतरतीब व गैर जिम्मेदाराना तरीके से बढ़ाया जाना अत्यन्त दुखद व निन्दनीय है। इस प्रकार के विधेयक से मानदेय व भत्तों में वृद्धि को देखते हुए उत्तराखण्ड राज्य का गरीब नागरिक अत्यन्त दुखी व स्वयं को छला हुआ महसूस कर रहा है।
एक गरीब राज्य जिस पर पूर्व से काफी वित्तीय बोझ है, इतनी भारी-भरकम वेतन, पेंशन व भत्ते वृद्धि सहने की स्थिति में नहीं है, यह एक यक्ष प्रश्न है कि, ‘जो सत्ता पक्ष व विपक्ष छोटी-छोटी घटनाओं पर सदन की कार्यवाही ठप कर देते हैं व छोटी-छोटी बातों को लेकर माननीय उच्च न्यायालय या माननीय सर्वोच्च न्यायालय में पहुँच जाते हैं इस प्रकार की लुभावनी व स्वयं को लाभ पहुँचाने वाले प्रस्ताव, वेतन वृद्धि, भत्ते वृद्धि, पेंशन वृद्धि आदि पर सब एक हो जाते हैं। यहाँ उनको गरीब राज्य की गरीब जनता के ऊपर अपरोक्ष रूप से पड़ने वाला वित्तीय बोझ नजर नहीं आता है।
अतः उत्तराखण्ड राज्य की गरीब जनता को इस घोर/संकट से बचाने हेतु यह प्रार्थना पत्र आपकी सेवा में प्रेषित किया जा रहा है कि उक्त विधेयक को तत्काल प्रभाव से प्रतिबन्धित किया जाना आवश्यक एवं प्रार्थनीय है।