उत्तराखंड पुलिस को राजस्व गांव की जिम्मेदारी, जनता को सुरक्षा की गांरटी




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न्यूज127
उत्तराखंड प्रदेश सरकार ने राज्य के 1983 राजस्व गांवों को नियमित पुलिस क्षेत्राधिकार में सम्मिलित करने का निर्णय निस्संदेह एक ऐतिहासिक और दूरदर्शी पहल है। इस कदम से उत्तराखंड के ग्रामीण, पर्वतीय और सीमांत इलाकों में अब सीधे नियमित पुलिस व्यवस्था लागू होगी। वर्षों से जिन क्षेत्रों में पुलिस का प्रत्यक्ष नियंत्रण सीमित था, वहां अब अपराध नियंत्रण, त्वरित कार्रवाई और न्याय की उपलब्धता सुदृढ़ हो सकेगी। यह निर्णय उच्च न्यायालय के आदेशों तथा मंत्रिमंडलीय निर्णयों के अनुरूप राज्य की कानून व्यवस्था को स्थायी मजबूती देने की दिशा में उठाया गया ठोस कदम है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस निर्ण
य को प्रदेश की जनसुरक्षा को नई दिशा देने वाला कदम बताया है। उनके अनुसार, इस पहल से जनता में सुरक्षा भाव और शासन के प्रति विश्वास में वृद्धि होगी। ग्रामीण क्षेत्रों में अब पुलिस की उपस्थिति, निगरानी और जवाबदेही बढ़ेगी। इससे अपराधों की रोकथाम, शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई, और न्याय तक सरल पहुँच सुनिश्चित हो सकेगी।

नीतिगत स्तर पर यह निर्णय स्वागत योग्य है, परंतु व्यवहारिक स्तर पर इसकी चुनौतियाँ भी उतनी ही गंभीर हैं।
राज्य के पास पहले से ही पुलिस बल
की कमी एक बड़ी समस्या है।
1983 गांवों में नियमित पुलिस व्यवस्था लागू करने के लिए पुलिस चौकियों, थानों, वाहनों, संचार तंत्र और कर्मियों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि की आवश्यकता होगी।
पुलिसकर्मियों के पद सृजन की आवश्यकता है। इतने बड़े विस्तार को सफलतापूर्वक लागू करने के लिए राज्य सरकार को पुलिस विभाग में अतिरिक्त पदों का सृजन और नई नियुक्तियाँ करनी होंगी। मौजूदा बल पहले से ही सीमित संसाधनों और अत्यधिक कार्यभार से जूझ रहा है।
राज्य के पुलिसकर्मियों के मनोबल से जुड़ा सबसे बड़ा प्रश्न है — का है। वर्षों से यह मांग लंबित है और पुलिस बल के मनोबल पर सीधा असर डाल रही है। जब राज्य सरकार कानून व्यवस्था को सुदृढ़ करने की बात करती है, तब यह भी आवश्यक है कि जो बल इसे लागू करेगा, उसका आर्थिक और सामाजिक सम्मान भी सुनिश्चित हो। पुलिस एक अनुशासित बल है — जो प्रायः अपनी बात सार्वजनिक रूप से नहीं कह पाता। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि उनकी समस्याएं गौण रहें। वेतन, कार्य घंटे, प्रमोशन और संसाधन संबंधी दिक्कतें लंबे समय से जस की तस हैं।
आज आवश्यकता इस बात की है कि राज्य सरकार पुलिस सुधारों को नीतिगत प्राथमिकता में रखे।
ग्रामीण क्षेत्रों में पुलिस क्षेत्राधिकार का विस्तार तभी कारगर सिद्ध होगा जब जमीन पर कार्यरत सिपाही से लेकर अधिकारी तक, हर स्तर पर संसाधन, प्रशिक्षण और सम्मान की सुनिश्चितता होगी। एक थका हुआ, असंतुष्ट पुलिस बल जनसुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकता।
राज्य सरकार को अब यह देखना होगा कि “कानून व्यवस्था की मजबूती सिर्फ आदेशों से नहीं, बल्कि पुलिसकर्मियों के आत्मबल से आती है।” 1983 गांवों को नियमित पुलिस क्षेत्राधिकार में शामिल करना उत्तराखंड सरकार की दूरदर्शी सोच का परिचायक है।

राज्य की कानून व्यवस्था तभी सुदृढ़ होगी जब पुलिस और जनता — दोनों विश्वास और सहयोग के सूत्र में बंधें।
सरकार का यह कदम उस दिशा में पहला पड़ाव है, परंतु अंतिम नहीं। अब अगला कदम होना चाहिए — “पुलिस व्यवस्था में सुधार, सम्मान और संसाधन का विस्तार।
मुख्यमंत्री पुष्कर धामी युवा हैं। प्रदेश पुलिस के हितों के लिए ठोस कदम उठाएंगे