हरिद्वार। डबल इंजन की उत्तराखंड सरकार के सरकारी अस्पतालों में आज भी सुविधाओं के अभाव में मरीज दम तोड़ रहे है। पहाड़ के सरकारी अस्पतालों की स्थिति बहुत दयनीय है। महिलाओं की सुरक्षा का दंभ भरने वाली सरकार सिर्फ कागजों में ही अस्पतालों को चला रही है। पहाड़ के अस्पतालों में अनुभवी चिकित्सकों का अभाव है। सरकार की इसी संवेदनहीनता और नाकामी के चलते कर्णप्रयाग के एक सरकारी अस्पताल में सुविधाओं के अभाव में एक महिला की जान चली गई। वह महिला जो सामान्य प्रसव के लिये अस्पताल में भर्ती हुई थी। लेकिन बच्चे को जन्म देने के कुछ मिनटों बाद अत्यधिक रक्तश्राव के कारण महिला की मौत हो गई। अस्पताल प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा।
कर्णप्रयाग की गीता को सामान्य प्रसव के लिये सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गीता को सामान्य प्रसव हुआ। नवजात को जन्म देने के बाद गीता को रक्तश्राव शुरू हो गया। गीता को प्रसव कक्ष से बार्ड के बैड पर सिफ्ट कर दिया गया। गीता दर्द से कराहती रही। अस्पताल के पास गीता का इलाज करने के लिये समुचित प्रबंध नहीं था। कुछ क्षणों की पीड़ा सहने के बाद गीता ने इस सांसारिक दुनिया से विदाई ले ली। गीता तो चली गई पर उत्तराखंड की सरकार और हमारे सिस्टम के लिये कई सवाल छोड़ गई। महिलाओं की सुरक्षा और बेटी बचाओं का नारा देने वाली मोदी सरकार के डबल इंजन की त्रिवेंद्र सरकार एक सामान्य प्रसव में महिलाओं को इलाज के दौरान सामान्य सुविधायें तक नहीं दे पा रही है। डबल इंजन की इस सरकार में सरकारी अस्पतालों की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। महिलाओं को इलाज तक नहीं मिल पा रहा है। आखिर गीता की मौत के लिये जिम्मेदार कौन है? हमारे डॉक्टर जो सरकारी अस्पतालों में जाना नहीं चाहते। या हमारी सरकार जो सिस्टम को चलाने में फेल हो रही है। ये सवाल सभी के सामने है।