दीपक चौहान.
हाल ही में एशियाई चैंपियनशिप जीतकर लौटी विजेता भारतीय टीम की हॉकी खिलाड़ी मनीषा चौहान ने अपनी खेल प्रतिभा से न केवल लोगों का दिल जीता बल्कि अपने माता पिता और उत्तराखंड प्रदेश का नाम भी रोशन किया। उसके हरिद्वार लौटने पर प्रशंसकों में खुशी की लहर है। न्यूज 127 के साथ हुई खास बातचीत में मनीषा चौहान ने स्कूल के मैदान से इंडिया टीम में शामिल होने तक के सफर की कहानी बतायी।
स्कूल के मैदान में बहाया पसीना
टीम इंडिया की महिला हॉकी टीम में शामिल हरिद्वार के श्यामपुर कांगड़ी गांव में रहने वाली मनीषा चौहान मूल रूप से पौडी के एक गांव की रहने वाली है। मनीषा को स्कूल समय से ही खेलों के प्रति रूचि थी। उसने कई खेलों में हिस्सा लिया लेकिन कामयाबी हॉकी में मिली। जब उसका सेलेक्शन जूनियर हॉकी में हुआ तो उसने फिर हॉकी को ही अपना लक्ष्य बनाकर आगे बढ़ने की ठान ली। स्कूल के मैदान में खूब पसीना बहाया, लोगों के ताने भी सुने लेकिन इन सबकी परवाह किये बिना उसना अपना पूरा ध्यान अपने लक्ष्य पर केंद्रित रखा।
हाथ में हो गई थी इंजरी
मनीषा ने बताया कि वर्ष दो साल पहले खेल की प्रैक्टिस करते समय उसके हाथ में इंजरी हो गई थी, तब डॉक्टरों ने उसे ठीक होने के लिए कंप्लीट रेस्ट करने के लिए कहा था, ऐसा न करने पर इंजरी से बड़ा नुकसान हो सकता था। यह बात जब डॉक्टर ने बतायी तो वह टूट गई, उसे लगा कि उसका सपना बिखर गया है। लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। ऐसे समय में उसे हौंसला दिया उसके माता पिता और कोच बलविंदर सिंह ने। कोच बलविंदर के मार्गदर्शन के साथ वह मैदान में अपनी फिजिकल प्रक्टिस करती रही। एक साल के ब्रेक क बाद जब वह इंजरी से उबर कर वापस मैदान पर लौटी तो उसने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। कड़ी मेहनत कर उसने अपने खेल की बदौलत टीम इंडिया में स्थान बनाया।
बर्थडे पार्टी तक में जाना किया बंद
मनीषा चौहान के पिता ज्ञान सिंह चौहान ने बताया कि उनकी बेटी ने खेल को अपना सबकुछ माना। परिवार में कोई शादी समारोह होता था तो वह उसमें नहीं जाती थी। हॉकी के लिए उसने सबकुछ किनारे किया। बर्थडे पार्टी तक में जाना छोड़ दिया। उसका एक ही मकसद था कि हॉकी में देश के लिए खेलना है। अपने खेल से अपने प्रदेश और देश का नाम रोशन करना है। प्रधानमंत्री की खेलों इंडिया योजना ने भी उसे आगे बढ़ने का मौका दिया।