न्यूज127
गुरुकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय में संकट के काले बादल मंडरा रहे है। जबकि स्वामी श्रद्धानंद की तपस्थली की मजबूत नींव यूजीसी ने संभाल रखी है। यूजीसी से मिलने वाले अनुदान से कर्मचारियों का वेतन और अन्य खर्चो की पूर्ति हो रही है। जबकि गुरूकुल की आमदनी की बात करें तो प्रतिवर्ष 20 करोड़ की आय हो रही है। जबकि प्रतिवर्ष कर्मचारियों के वेतन और अन्य तमाम खर्चो पर करीब 180 करोड़ से अधिक की धनराशि खर्च हो रही है। कुल मिलाकर देखा जाए तो आमदनी चवन्नी और खर्चा रूपया है।
गुरूकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय के कर्मचारियों को अपने वेतन पर ही संकट मंडराता नजर आ रहा है। कर्मचारियों को आर्य प्रतिनिधि सभाओं की सोच पर संदेश है। इसी के चलते तमाम कर्मचारी यूजीसी के शरणागत होना चाहते है। ताकि विश्वविद्यालय की तमाम शैक्षणिक गतिविधियां सुचारू रूप से चलती रहे। भविष्य में आर्थिक संकटों का सामना ना करना पड़े। यूजीसी रेगुलेशन 2023 लागू हो जाए और कुलपति और कुलाधिपति की नियुक्ति यूजीसी की मानकों के अनुरूप हो। ताकि आर्य प्रतिनिधि सभाओं का दखल पूरी तरह से समाप्त हो जाए।
हालांकि ऐसा तो कर्मचारियों का सोचना है। लेकिन आर्य प्रतिनिधि सभाओं के वर्चस्व की बात करें तो वह अपने कदम किसी सूरतेहाल में पीछे खीचने के मूड में नही है। आर्य प्रतिनिधि सभा गुरूकुल कांगड़ी समविश्वविद्यालय को अपनी रीति—नीति से चलाना चाहती है। विश्वविद्यालय के संचालन में एपीएस अपना पूरा दखल और वर्चस्व कायम रखना चाहती है। लेकिन एपीएस अभी तक अपने कर्मचारियों के सुरक्षित भविष्य को लेकर संतुष्ट नही कर पाई है। कर्मचारियों की आर्य प्रतिनिधि सभाओं से नाराजगी और गतिरोध की सबसे बड़ी वजह यही है। कर्मचारियों का मानना है कि अगर आर्य प्रतिनिधि सभा गुरूकुल के सच्चे हितैषी होने का दावा करती है तो कर्मचारियों को आर्थिक संकट का सामना नही करना चाहिए। विश्वविद्यालय की भूमि और तमाम संसाधन खुद—बुर्द नही होने चाहिए। बोर्ड आफ मैनेजमेंट के अनुरूप कार्य होने चाहिए।
गुरूकुल की आर्थिक स्थिति
गुरूकुल के कर्मचारियों के वेतन पर एक साल में करीब 180 करोड़ का खर्च आता है। जबकि आमदनी की बात करें तो प्रतिवर्ष 30 करोड़ ही एकत्रित हो पाता है। फिलहाल 6500 से सात हजार बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे है। जबकि करीब 245 स्थायी स्टॉफ है तथा 350 के करीब संविदाकर्मी कार्यरत है।
एपीएस पर संदेह का कारण
कर्मचारियों का एपीएस पर संदेह का कारण अपनी जिम्मेदारी का ठीक ने निर्वहन नही करना और संस्था की संपत्ति की ब्रिकी करना है। पूर्व में आर्य प्रतिनिधि सभाओं ने गुरूकुल की भूमि को खुर्द बुर्द किया है। जिसके चलते कर्मचारियों का विश्वास आर्य प्रतिनिधि सभाओं के प्रति कमजोर हुआ है। कई भूमि विवादों में आ गई। सिंहद्वार की भूमि, जगजीतपुर में करोड़ों पर भूमि,
लोकसेवा आयोग और विष्णु गार्डन के पीछे 144 बीघा भूमि। ऐसी तमाम भूमि डंपिंग जोन में तब्दील हो कर रह गई है।