नवीन चौहान
गुरूकुल महाविद्वालय की पवित्र भूमि ने भारत को कई शूरमां दिए। शिक्षाविद, साहित्यकार, लेखक, कवि और कई अफसरों को मुकाम दिया। वही आधुनिक भीम के नाम से पहचान पाने वाले विश्वपाल जयन्त जैसे पहलवान दिए। आर्य समाज की यह संस्था 118 सालों तक रेंगती रही। संस्था के पदाधिकारी अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए स्वामी दर्शनानंद के नाम को पहचान दिलाने के लिए कोई बड़ा काम नही कर सके। वक्त के साथ इस संस्था के कई चेलों ने अपने गुरूओं को राजनीति जरूर सिखा दी। गुरू असमंजस की स्थिति में है। उनकी शिक्षा में कोई कमी थी या चेले की महत्वकांक्षा अधिक रही। लेकिन यह सब बाते अब अतीत बन चुकी है। गुरूकुल महाविद्वालय अब पतंजलि गुरूकुलम और आचार्यकुलम के नाम को धारण कर चुका है। योगगुरू बाबा रामदेव इस संस्था के नए कर्णधार बन गए है। करीब 350 बीघा भूमि, जिसकी वर्तमान कीमत अरबों की है, अब बाबा रामदेव की संस्था पतंजलि योगपीठ में समाहित हो चुकी है। लेकिन इस संस्था के विवाद और कुछ बाते अनसुलझी पहेली ही रहेगी।
गुरूकुल महाविद्वालय की यह संस्था स्वामी दर्शनानंद जी ने साल 1907 में शुरू की थी। आर्य समाज की इस संस्था को बनाने के पीछे उनका उददेश्य भारत में श्रेष्ठ नागरिक तैयार करना था। इसके लिए तीन चवन्नी, तीन बीघा जमीन से इसकी शुरूआत की गई। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और आसपास के कई राज्यों से गरीब घरों के बच्चे यहां निशुल्क आवासीय शिक्षा गुरूकुल में रहकर हासिल करते थे। गुरूकुल की संस्था में कार्यरत लोगों का वेतन महज 70 रूपये से लेकर 130 रूपये तक होता था। इसी के साथ यह सभी कर्मचारी गांव—गांव जाकर संस्था के लिए गेंहू, चावल व अन्न का दान लेने के लिए जाते थे। बिजनौर के कई गांवों से इस संस्था के लिए भरपूर राशन और पैंसा दान में आता था। गुरूकुल में एक व्यायाम शाला, गऊशाला और फार्मेसी शुरू की गई। हरे फलदार पेड़ों की सुंगध दूर तक फैलती थी। यहां तमाम औषधिएं पौधे होते थे। वक्त बीतता गया और संस्था में पदाधिकारियों की महत्कांक्षा बढ़ती चली गई। संस्था में काबिज लोगों ने कुर्सी को अपनी जागीर समझ लिया। बदलते वक्त के साथ संस्था में कुछ नए लोगों महासभा में जोड़ने का सिलसिला शुरू हुआ। संस्था से जुड़े नए लोगों ने अपने स्वार्थ को पूरे करने के लिए आगे की रणनीतियां बनानी शुरू की। कुछ पुराने लोगों को ठिकाने लगाया और पर्दे के पीछे अपनी दिगामी खुरापाते की। कुल मिलाकर देखा जाए तो संस्था के निष्क्रय पदाधिकारी ही इस संस्था के विकास के बाधक बने रहे। आखिरकार गुरूकुल की पवित्र भूमि पर योगगुरू बाबा रामदेव का आगमन हुआ। बाबा रामदेव कैसे आए क्यो आए, यह जानने से महत्वपूर्ण यह है कि वह जिस उददेश्य के लिए वह पूर्ण होना चाहिए। स्वामी दर्शनानंद की पवित्र भूमि में श्रेष्ठ नागरिकों की उत्पत्ति होनी चाहिए। पेड़ों की सुगंध के साथ—साथ शिक्षा की खूशबू महकनी चाहिए। 6 जनवरी 2024 को गुरूकुल की भूमि पर हुए शिलान्यास कार्यक्रम से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह संस्था आने वाले दिनों में कई कीर्तिमान स्थापित करेगी। पतंजलि गुरूकुलम के छात्र स्वामी दर्शनानंद जैसे मनीषियों के नाम को पुर्नजीवित करेंगे।
HARIDWAR: गुरूकुल महाविद्वालय की भूमि पर काबिज रहे निष्क्रय पदाधिकारी, चेले ने गुरू को सिखाई राजनीति




