नवीन चौहान
आबकारी विभाग के भ्रष्ट सिस्टम ने 13 जिंदगी लील ली। जबकि एक दर्जन लोग जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहे है। इन असमायिक मौत ने सरकार और प्रशासन की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगा दिया हैं। आखिरकार इन मौतों का जिम्मेदार कौन हैं। जहरीली शराब की बिक्री रोकने की जिम्मेदारी किसकी है। एक ओर प्रदेश सरकार आबकारी नीति में राजस्व बढ़ाने के लिए शराब को बदस्तूर जारी रखना चाहती है। दूसरी ओर आबकारी विभाग के अधिकारी अपनी जेब गरम करने के लिए अवैध शराब तस्करों को संरक्षण प्रदान करते हैं। सरकारी वेतन लेने वाले अधिकारियों की जिम्मेदारी इन नकली शराब की फैक्ट्रियों को बंद करने की भी हैं। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या इन अधिकारियों को अपने कर्तव्य का भान है। अगर वास्तव में होता तो शराब तस्करों के हौसले इतने बुलंद ना होते।
भगवानपुर गांव में तेहरवीं का भोज करने के बाद शराब पीने से एक दर्जन लोगों की मौत ने पूरी उत्तराखंड सरकार को हिलाकर रख दिया। इस घटना की अपडेट सरकार के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत अधिकारियों से लेते रहे। आनन-फानन में आबकारी विभाग के 13 अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया। वही पुलिस प्रशासन ने भी थाना प्रभारी झबरेड़ा प्रदीप मिश्रा और लखनौता चौकी प्रभारी गंभीर तोमर समेत बीट कांस्टेबलों को निलंबित कर दिया। प्रशासन ने निलंबन की कार्रवाई करना शुरू कर दिया है। लेकिन बड़ा सवाल जस का तस है कि नकली शराब का अवैध कारोबार फल फूल रहा हैं। तस्करों के हौसले बुलंद है। खुद जिलाधिकारी दीपक रावत ने मिस्सरपुर में एक नकली शराब की फैक्ट्री को पकड़कर भारी मात्रा में अवैध शराब बरामद की थी। डीएम का छापा एक संदेश था तो आबकारी विभाग के अधिकारियों की नींद क्यो नहीं टूटी। इस विभाग के अधिकारियों की हीलाहवाली के चलते शुक्रवार का दिन काला अध्याय लिखा गया। इस बार प्रदेश सरकार को ठोस कार्रवाई करनी चाहिए। दोषी कर्मचारियों के खिलाफ सख्त से सख्त एक्शन लिया जाए। ताकि एक जनता में एक संदेश जाए ।