हमारी सांस्कृतिक विरासत के विरूद्ध चल रहा वैचारिक और सामाजिक युद्ध: स्वामी रामदेव




नवीन चौहान.
हरिद्वार। पतंजलि विश्वविद्यालय में आयोजित “छत्रपति शिवाजी महाराज कथा’ के छठवें दिन पूज्य स्वामी गोविन्द देव गिरि जी महाराज ने कहा कि अनुशासन का पालन करने वाले थोड़े से लोग भी योजनाबद्ध तरीके से कार्य करें तो बड़े कार्य को सिद्ध कर सकते हैं। समय की प्रतीक्षा करना आना चाहिए, कोई भी कार्य उत्तेजना में नहीं, योजना के अनुरूप होना चाहिए। मुट्ठी भर अंग्रेजों ने भारत आकर 150 वर्षों तक राज किया, इसका मुख्य कारण योजना और अनुशासन था।

उन्होंने कहा कि इस कथा में सारा इतिहास विश्वासघात का इतिहास है। ऐसे कई प्रसंग हैं जिनमें पराक्रम, वीरता, साहस के साथ-साथ छल, धोखा व विश्वासघात दिखाई पड़ता है। जीजा माता के पिता व दो भाइयों को धोखे से मारा गया। शिवाजी महाराज के बड़े भाई सम्भा जी को भी अफजलखान ने विश्वासघात से मारा। जीजा माता की वेदना कैसे शांत हो सकती थी जिसने अपने पिता, भाइयों व पुत्र को खोया हो। जगदम्बा माता के मंदिर को अफजलखान ने तोड़ा था, वह घाव शिवाजी महाराज के अंतःकरण में था। जीजा माता के साथ-साथ सम्पूर्ण भारत की यह आकांक्षा थी कि इन पापियों को कुचलने का सत्र आरम्भ होना चाहिए। माता जीजा के संकल्प को शिवाजी महाराज ने अफजलखान को मारकर पूरा किया। जो कार्य भगवान राम ने रावण को मारकर किया, भगवान कृष्ण ने कंस का निंकदन करके किया, वही कार्य शिवाजी महाराज ने अफजलखान का संहार करके किया।

कार्यक्रम में स्वामी रामदेव जी महाराज ने कहा कि जब हम सनातन धर्म के संरक्षक, उद्गाता, उसके प्रणेता और राष्ट्र जागरण के पुरोधा छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन को देखते हैं तो एक महान व्यक्तित्व हमारे आँखों के सामने आ जाता है। श्रद्धेय महाराज श्री के श्रीमुख से उनके जन्म, हिन्दु साम्राज्य के उनके दृढ़ निश्चय और यवनों, मुगलों व क्रूर अत्याचारियों के संहार की कथा सबके हृदय को बहुत प्रकार से प्रेरित करने वाली है। इस कथा के विभिन्न संदर्भ हैं जिसके वैचारिक, सामाजिक, आध्यात्मिक, राजनैतिक, राष्ट्रीय और आने वाले दीर्घकालिक उनके पूरे पक्ष व पहलुओं को पूज्य महाराजश्री बहुत तार्किक और व्यवहारिक रूप से हमारे बीच में बता रहे हैं।

उन्होंने कहा कि शिवाजी महाराज ने सनातन धर्म, राष्ट्र धर्म के साथ एक विराट लक्ष्य लेकर जो इतना बड़ा प्रचंड पुरुषार्थ और पराक्रम किया आज उस रूप में युद्ध की आवश्यकता नहीं है लेकिन हमारी सांस्कृतिक विरासत के विरूद्ध आज भी वैचारिक संग्राम, सांस्कृतिक संग्राम, आर्थिक युद्ध, राजनैतिक युद्ध, सामाजिक युद्ध चारों ओर अभी भी चल रहा है। हमारी शिक्षा, चिकित्सा, खान-पान, वेश-भूषा, तथा हमारी भाषा आदि सभी तरह से हमारे गौरव को धूमिल करने के लिए जो कुत्सित प्रयास करते हैं और चारों तरफ जो राजसिक, तामसिक, आसुरी शक्तियां संगठित होकर छद्म रूप से जो प्रहार करती हैं, इन सबके विरूद्ध हम सबको संगठित होकर अपने-अपने उत्तरदायित्वों का निर्धारण करना है।

कहा कि यहाँ पर पतंजलि बाल गुरुकुलम् के तीन-चार वर्ष के बच्चे भी कथा का श्रवण कर रहे हैं। यहाँ उनके भीतर संस्कारों के बीज बोये जा रहे हैं क्योंकि बच्चों का अवचेतन मन बड़ों से लाखों गुणा ज्यादा सक्रिय होता है। यह कथा मात्र पतंजलि योगपीठ के परिसर में नहीं हो रही है, आस्था चैनल के माध्यम से इस कथा का विचार व संस्कार विश्वव्यापी हो रहा है और पूरे राष्ट्र में नवचेतना का संचार हो रहा है।
उन्होंने कहा कि एक परिवार को अखण्ड रखना बहुत बड़ी चुनौती होती है। 99 प्रतिशत परिवार खण्डित हो जाते हैं, बिखर जाते हैं।

पूरे राष्ट्र को अखण्ड करने का एक बड़ा संकल्प और उसको मूर्त रूप देने का कितना बड़ा अप्रतिम पुरुषार्थ छत्रपति शिवाजी महाराज ने किया। ऐसा एक संकल्प हम बचपन से ही ले लें, जैसे आज पतंजलि के योग, आयुर्वेद, स्वदेशी, भारतीय शिक्षा, चिकित्सा व्यवस्था और सनातन धर्म मूलक ज्ञान-विज्ञान, अनुसंधान, अविष्कार से करोड़ों लोगों का उपचार और उपकार का ये जो बहुत बड़ा महायज्ञ चल रहा है, इसके मूल में भी योग का बीज है। ये योग का बीज हृदय में पहले से ही था जो धीरे-धीरे विकसित होता रहा जिसने व्याकरण, शास्त्र, वेदशास्त्र, वैदिक धर्म से राष्ट्रधर्म की इतनी बड़ी यात्रा पूरी हुई।

इस अवसर पर ओसवाल पम्प के डायरेक्टर व पतंजलि परिवार के वरिष्ठ पद्मसेन आर्य ने सपत्नीक आरती में भाग लिया। कार्यक्रम में भारतीय शिक्षा बोर्ड के कार्यकारी अधिकारी एन.पी. सिंह, पतंजलि विश्वविद्यालय की मानविकी संकायाध्यक्षा साध्वी आचार्या देवप्रिया, भारत स्वाभिमान के मुख्य केन्द्रीय प्रभारी भाई राकेश ‘भारत’ व स्वामी परमार्थदेव, पतंजलि विश्वविद्यालय के आई.क्यू.ए.सी. सैल के अध्यक्ष प्रो. के.एन.एस. यादव, कुलानुशासक स्वामी आर्षदेव सहित सभी शिक्षण संस्थान यथा- पतंजलि गुरुकुलम्, आचार्यकुलम्, पतंजलि विश्वविद्यालय एवं पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज के प्राचार्यगण व विद्यार्थीगण, पतंजलि संन्यासाश्रम के संन्यासी भाई व साध्वी बहनें तथा पतंजलि योगपीठ से सम्बद्ध समस्त इकाइयों के इकाई प्रमुख, अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित रहे।



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