हरिद्वार।
जन्माष्टमी के पावन अवसर पर स्पर्शगंगा राष्ट्रीय कार्यालय में कदम्ब मिशन की शुरुआत की और पूरे भारत मे जगह- जगह कदम्ब लगाने का संकल्प लिया.कदम्ब का पेड़ भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय पेड़ है. कदम्ब का पेड़ पर्यावरण संरक्षण के लिए जरूरी है और इस वृक्ष का आध्यात्मिक महत्व भी है. रीता चमोली जी ने कहा कि “श्रीकृष्ण बाल लीला भी इसी पेड़ पर करते थे और शेषनाग से युद्ध के बाद कदम्ब के पेड़ पर जाकर श्रीकृष्ण ने विष के असर को समाप्त किया था।” श्री कृष्ण ने गीता में कहा -“मै पर्वतों में हिमालय और सरिताओं में जहान्वी(गंगा) हूं।”
भगवान कृष्ण प्रकृति में ही स्वयं को समाहित रखते हैं. पेड़,फ़ल,फूल,लताएं,नदी,,झरने, बांसुरी की धुन संपूर्ण प्रकृति को सहेजने का ही संदेश है,इसी धुन पर तो कृष्ण सबको मोहित कर देते हैं,मानव,पशु,पंछी,संपूर्ण प्रकृति इसी बांसुरी के सम्मोहन से इतराती है. आशु चौधरी जी ने कहा कि ये पेड़ कोई सामान्य पेड़ नहीं.अनेक व्याधियों से मुक्ति की शक्ति समाहित किए एक औषधीय गुणों से युक्त पेड़ है,रजनीश सहगल ने बताया कि कदम्ब की छाल, फल, तना, पत्तियां सभी औषधीय गुण से परिपूर्ण है. अंश मल्होत्रा जी ने कहा कि इसकी पत्तियां अल्सर के उपचार में काम आती है और घावों को जल्दी ठीक करती है,इसके खट्टे स्वादिष्ट फल बच्चो की पाचन शक्ति बढ़ाते है और छाल नेत्र रोगों में काम आती है.
रजनी वर्मा ने बताया कि कदम्ब मिशन के अंतर्गत स्पर्शगंगा पूरे भारत मे जगह जगह कदम्ब के पौधे लगाएगा,और कदम्ब के पेड़ की रक्षा का संकल्प लेगा.रेणु शर्मा ने कहा कि कदम्ब का छायादार होता है जनमानस को इसके लिए जागरूक भी किया जाएगा। रीमा गुप्ता ने कहा कि श्रीमद्भागवत पुराण में श्रीकृष्ण को कदम्ब का पेड़ प्रिय होने के वैज्ञानिक कारण भी हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से यह पेड़ श्रीकृष्ण के लिए बहुत विशेष था। शेषनाग से युद्ध करने के बाद श्रीकृष्ण को अपने अंदर थोड़े बहुत विष के असर का पता चलने पर उन्होंने कदम्ब के पेड़ पर जाकर तथा फलों को खाकर विष के असर को दूर किया था। साथ ही श्रीकृष्ण इस पेड़ पर बाल लीला भी बहुत करते थे।रीमा गुप्ता ने कहा कि श्रीमद्भागवत पुराण में यह बात स्पष्ट रूप से दी गई है। मथुरा और वृंदावन में कदम का पेड़ बहुत अधिक पाया जाता है। जन्माष्टमी पर इस पेड़ की पूजा भी की जाती है। इसके अलावा महाभारत में भी कदम्ब के पेड़ का महत्व दर्शाया गया है, क्योंकि उस समय सांपों से लोग दुखी थे, तो लोग कदम्ब के पेड़ का प्रयोग करके अपना बचाव करते थे। उस समय में प्रत्येक घर में यह पेड़ घर के बाहर, आंगन आदि में लगा होता था। बिमला ढोडियाल और कमला जोशी ने स्पर्श गंगा के माध्यम से जन जन को आह्वान किया कि कृष्ण के प्रकृति में रचने बसने के उस संदेश को जाने। मिशन कदम्ब में आमरीन, तारा नेगी, अंशु मलिक, सुनीता पंवार, रिद्धिश्री राजवंश, आकांक्षा चौधरी, संतोष सैनी, कविता शर्मा, सांची नेगी, धर्मेंद्र चौहान, तारा नेगी आदि ने भाग लिया।