राज्य सूचना आयुक्त योगेश भटट की सख्ती के बाद फर्जी मार्कशीट के खेल का पर्दाफाश





काजल राजपूत
उत्तराखंड के राज्य सूचना आयुक्त योगेश भटट ने फर्जी मार्कशीट प्रकरण की सुनवाई करते हुए मुद्दे को बेहद संवेदनशील और गहन जांच का विषय बताया। शिक्षा के दस्तावेजों में फर्जीबाड़े से उत्तराखंड के विश्वविद्वालय के नाम की साख को बटटा लगता है। इसी के साथ कुलपति व उपकुलपति को भेजी गई कि वह फर्जी मार्कशीट के मद्देनजर विश्वविद्यालय की व्यवस्था सुनिश्चित करने के आदेश भी दिए है। पूरा प्रकरण एक फर्जी मार्कशीट के आधार पर प्रवक्ता की नियुक्ति को लेकर लोक सूचना आयोग की सुनवाई का है।
जहां लोक सूचना आयुक्त योगेश भटट ने सूचना के अधिकार में आई शिकायत पर सुनवाई के दौरान फर्जी मार्कशीट पर प्रवक्ता की नियुक्ति के गडबड़झाले को पकड़ा।
विदित हो कि पौड़ी के महाराजा अग्रसेन हिमालयन गढ़वाल विश्वविद्यालय की एक फर्जी मार्कशीट पकड़ में आई है। इस मार्कशीट को एक अभ्यर्थी ने प्रवक्ता पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन के साथ किया था। मार्कशीट की सत्यता जांचने के लिए जब संबंधित कॉलेज के प्रधानाचार्य ने विश्वविद्यालय प्रशासन को पत्र लिखा तो उप कुलसचिव और कुलसचिव ने इस प्रकरण पर चुप्पी साध ली। सूचना का अधिकार अधिनियम (आरटीआई एक्ट) में भी मार्कशीट (अंक पत्र) की सत्यता स्पष्ट नहीं की गई। सूचना आयोग पहुंचे इस प्रकरण में जब राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने कड़ा रुख अपनाया तो विश्वविद्यालय की ओर से स्पष्ट किया गया कि ऐसी कोई मार्कशीट उनके रिकॉर्ड में नहीं है। इसे बेहद गंभीर मानते हुए सूचना आयोग ने आदेश की प्रति विश्वविद्यालय के कुलपति व उप कुलपति को भी भेजी है।
राष्ट्रीय इंटर कॉलेज लावड़ा (मेरठ) में एलटी के एक शिक्षक ने प्रवक्ता पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन किया था। आवेदन के साथ उन्होंने महाराजा अग्रसेन हिमालयन गढवाल विश्वविद्यालय (पूर्व नाम हिमालयन गढ़वाल विश्वविद्यालय), घैडगांव, पोखड़ा (पौड़ी) की मार्कशीट लगाई थी।
संदेह होने पर इंटर कालेज के प्रधानाचार्य देवेंद्र कुमार ने महाराजा अग्रसेन हिमालयन गढ़वाल विश्वविद्यालय को पत्र भेजकर मार्कशीट (A-201932898) की सत्यता स्पष्ट करने का आग्रह किया था। जब इस पत्र पर कोई कार्रवाई नहीं की गई तो उन्होंने आरटीआई में जानकारी मांगी।
इंटर कॉलेज के प्रधानाचार्य के आरटीआई में जानकारी मांगे जाने के बाद भी वहां के लोक सूचना अधिकारी/उप कुल सचिव अनुभव कुमार ने मांगी गई सूचना नहीं दी। इसके साथ ही प्रथम विभागीय अपीलीय अधिकारी के रूप में कुलसचिव स्तर से भी वाजिब जवाब नहीं दिया गया। राष्ट्रीय इंटर कालेज के प्रधानाचार्य देवेंद्र कुमार ने सूचना आयोग का दरवाजा खटखटाया। प्रकरण पर सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने विश्वविद्यालय के लोक सूचना अधिकारी व अपीलीय अधिकारी को कारण बताओ नोटिस जारी किया।
कुल सचिव और उप कुल सचिव की भूमिका पर संदेह
होने पर सूचना आयोग ने जो नोटिस लोक सूचनाधिकारी/उप कुल सचिव व विभागीय अपीलीय अधिकारी/कुल सचिव को जारी किया था, उन्होंने उसका कोई जवाब नहीं दिया। लिहाजा, राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने कहा कि इस स्थिति में दोनों अधिकारियों की भूमिका संदेह के घेरे में है। साथ ही सूचना उपलब्ध न कराया जाना सूचना का अधिकार अधिनियम की मूल भावना के विपरीत है। उप कुल सचिव को इस आशय का नोटिस जारी किया गया कि उन पर सूचना में बाधा उत्पन्न करने पर क्यों न सुसंगत कार्रवाई की संस्तुति कर दी जाए। साथ ही आदेश दिया गया कि वह अगली सुनवाई में जवाब के साथ व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहेंगे। अपील का निस्तारण न करने पर यही नोटिस कुल सचिव को भी जारी किया गया।
मार्कशीट/डिग्री जैसे दस्तावेजों की सत्यता के लिए आरटीआई का प्रयोग खेदजनक
सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि मार्कशीट/डिग्री जैसे संवेदनशील दस्तावेजों की सत्यता के लिए भी यदि किसी प्रधानाचार्य को आरटीआई का सहारा लेना पड़े तो यह खेद की स्थिति है। क्योंकि, मार्कशीट और डिग्री जैसे दस्तावेज सरकारी सेवाओं के लिए अनिवार्य प्रक्रिया का भाग हैं। ऐसे में यदि विश्वविद्यालय समय पर उनका सत्यापन नहीं करता है तो इससे अनेक सवाल जन्म लेते हैं।
बिना रिकॉर्ड के पहुंचे अधिकारी, आयोग ने मौके से ही कराया सत्यापन
नोटिस और कड़ा रुख अपनाने के बाद लोक सूचना अधिकारी/ कुल सचिव अनुभव कुमार सूचना आयोग की अगली सुनवाई में उपस्थित तो हुए, लेकिन वह बिना रिकॉर्ड के पहुंचे। इस पर राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने सुनवाई स्थल से ही संबंधित मार्कशीट की सत्यता स्पष्ट कराने को कहा। जिसमें बताया गया कि ऐसी किसी मार्कशीट की जानकारी विश्वविद्यालय के रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है। हालांकि, मार्कशीट विश्वविद्यालय की ही प्रतीत हो रही थी।
मार्कशीट विश्वविद्यालय से जारी नहीं तो क्यों चुप रहे अधिकारी
सूचना आयोग में यह सवाल भी उठाया गया कि मार्कशीट फर्जी है तो अधिकारी क्यों अब तक चुप रहे। उन्हें तो आगे आकर बताना चाहिए था कि विश्वविद्यालय से कोई भी डिग्री/डिप्लोमा बिना प्रवेश, पढ़ाई व परीक्षा के जारी नहीं की जाती है। साथ ही यह भी बताना चाहिए था कि विश्वविद्यालय के नाम पर कोई भी दस्तावेज अवैध तरीके से प्राप्त न किया जाए। फर्जी मार्कशीट का यह प्रश्न सिर्फ संबंधित विश्वविद्यालय की साख का नहीं है, बल्कि उत्तराखंड राज्य और इसके नीति निर्धारकों की साख का भी है।
उत्तराखंड, हिमालय, गढ़वाल और गढ़वाल विश्वविद्यालय के नाम से किसी साख खराब?
राज्य सूचना आयुक्त योगेश भट्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि हिमालयन गढ़वाल विश्वविद्यालय के नाम में उत्तराखंड के साथ ही हिमालय, गढ़वाल और गढ़वाल विश्वविद्यालय का नाम भी जुड़ा है। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि इस नाम के साथ गलत कार्य किए जाने से किसी गरिमा प्रभावित होगी? साथ ही कहा कि राज्य अधिनियम से गठित हिमालयन गढ़वाल विश्वविद्यालय को फर्जी मार्कशीट के प्रकरण में अपनी स्थिति स्पष्ट करनी होगी। ताकि प्रदेश की उच्च शिक्षा नीति और राज्य के अंतर्गत उच्च शिक्षण संस्थानों पर भरोसा बना रहे।
मुद्दा संवेदनशील और गहन जांच का विषय
उत्तराखंड सूचना आयोग के राज्य सूचना आयुक्त यो
गेश भट्ट ने कहा कि फर्जी मार्कशीट का यह प्रकरण संवेदनशील का गहन जांच का विषय है। क्योंकि कम से कम यह तो स्पष्ट हो गया है कि विश्वविद्यालय के नाम पर फर्जी प्रमाण पत्र जारी किए जा रहे हैं। लोक सूचना अधिकारी को निर्देश दिए गए कि वह आगामी सुनवाई में यह स्पष्ट करेंगे कि प्रकरण के संज्ञान में आने के बाद क्या कार्रवाई की गई है। आदेश की प्रति इस आशय के साथ कुलपति व उपकुलपति को भेजी गई कि वह फर्जी मार्कशीट के मद्देनजर विश्वविद्यालय की व्यवस्था सुनिश्चित करें।



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