उत्तराखंड के भाजपा विधायकों से जनता नाराज और कांग्रेस की राह हुई आसान




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नवीन चौहान
उत्तराखंड की भाजपा सरकार के विधायकों से जनता बुरी तरह से नाराज है। कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर की चपेट में अपनो को खोने का गम जनता को दुखी कर रहा है। इलाज के अभाव में दम तोड़ चुके लोगों के परिजनों का आक्रोष भाजपा सरकार पर है। जबकि नेतृत्व परिवर्तन के बाद भाजपा विधायक और सरकार मस्ती में पूरी तरह से मदहोश है। ​नेतृत्व परिवर्तन के बाद मंत्री बने विधायक अपने को पावरफुल समझकर ताबड़तोड़ बल्लेबाजी कर रहे है। अधिकारियों को हड़का रहे है और माफियाओं के पैरोकार बने है। उलटे सीधे कार्यो के लिए नौकरशाहों पर दबाब बना रहे है। वही प्रदेश की जनता ने विधायकों को आउट करने के लिए फील्डिंग भी सजा दी है। आगामी विधानसभा चुनावों में अधिकतम भाजपा विधायकों की उनकी सीट से विदाई तय है। अगर हरिद्वार विधानसभा सीट की ही बात करें तो खुद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक की राह भी आसान नही है। हरिद्वार की जनता उनके बेहद नाराज चल रही है। उनको अपनी सीट बचाने के लिए कठिन चुनौतियों का सामना करना होगा। कुछ ऐसा ही हाल अन्य सीटों का भी है। झबरेड़ा विधानसभा सीट पर भाजपा विधायक देशराज कर्णवाल का तमाशा तो पूरी दुनिया सोशल मीडिया पर देख ही चुकी है। विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद्र अग्रवाल भी जनता की नाराजगी का सामना कर चुके है। बंशीधर भगत के व्यवहार से चिकित्सकों की नाराजगी भी चुनावी मुददा बनेंगी।
कोरोना संक्रमण काल का प्रकोप भाजपा सरकार के लिए मुसीबत का सबब है। कोरोना की दूसरी लहर भाजपा के लिए सुनामी बनकर विधानसभा चुनाव में दिखाई देंगी। चिकित्सा की अव्यवस्था और वैक्सीन को लेकर जनता की तड़प सरकार पर भारी गुजरेगी। वैक्सीनेशल के लिए लाइन में खड़ी जनता प्रदेश सरकार को कोस रही है। वही दूसरी ओर जिन परिवारों में कोरोना के चलते मौत हुई है। उन परिवारों ने भाजपा से दूर रहने का मन बना लिया है। आखिरकार कोरोना संक्रमण से भाजपा सरकार की विदाई के ताल्लुक को विस्तार से समझाते है।
मार्च 2020 के बाद से उत्तराखंड में कोरोना संक्रमण ने प्रदेश किया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कोरोना संक्रमण के प्रभाव को कम करने के लिए केंद्र सरकार की कोविड गाइड लाइन का अक्षरश—: पालन कराया। कोरोना का आगाज हुआ, लॉकडाउन को लेकर तमाम परेशानियां हुई। प्रवासियों का प्रदेश में आगमन हुआ। कारोबार चौपट हो गए। जनता के सामने भुखमरी का संकट उत्पन्न हुआ। लेकिन तत्कालीन सरकार के मुखिया त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस नाजुक वक्त को संभाला और प्रदेश में कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने में सफल रहे। त्रिवेंद्र सिंह रावत के ठोस और अडिग निर्णयों के चलते जिंदगी पटरी पर आ गई। प्रदेश में सबकुछ ठीक होने लगा। लोगों के कारोबार शुरू हो गए। इंसान की जिंदगी सामान्य रफ्तार पकड़ने लगी। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कोरोना को लेकर सजग रहे और जनता को संक्रमण से बचाने के लिए जागरूक करते रहे।
त्रिवेंद्र सिंह रावत प्रदेशवासियों के जीवन को सुगम बनाने की राह तलाशते रहे और स्वरोजगार और स्वावलंबन की दिशा में योजनाओं को लागू करते रहे। वही दूसरी ओर हरिद्वार में आयोजित होने वाले साल 2021 के महाकुंभ की तैयारियों में जुटे रहे। कुंभ महापर्व को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत संतों का मन टटोलते रहे। संतों ने कुंभ पर्व के वैभव और धन को लेकर दिव्य और भव्य कुंभ का राग अलापना शुरू कर दिया। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सभी अखाड़ों को एक—एक करोड़ की धनराशि जारी की। ताकि अखाड़े एक सीमित कुंभ आयोजित कर प्रतीकात्मक रूप में धर्म का संदेश समूचे विश्व को दे सके। लेकिन संतों को लगा कि भक्त नही आए तो कुंभ की दिव्यता में कमी आयेगी और उनको मिलने वाले संपदा कम पड़ जायेगी। आखिरकार संतों ने पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से मन ही मन नाराजगी बना ली। वही दूसरी ओर प्रदेश के तमाम भाजपा विधायक जो पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से नाखुश थे, उन्होंने भी मोर्चा खोल दिया। मंत्रीमंडल के तीन पद रिक्त चले आ रहे थे तो दूसरे विधायकों को अपनी किस्मत का पिटारा खुलने के सपने आने लगे।
आखिरकार संतों और विधायकों का गठजोड़ नेतृत्व परिवर्तन कराने में कामयाब रहा। लेकिन भाजपा हाईकमान ने प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कुर्सी सीधे सरल स्वभाव के गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत को सौंप दी। कुंभ पर्व के आयोजन के बीच तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली तो उन्होंने भी दिल खोलकर सभी देशवासियों को कुंभ स्नान के लिए आमंत्रित कर लिया। संतों की बांछे खिल उठी। संतों को लगा कि अब उनके भक्त हरिद्वार आयेंगे और कुंभ की रौनक बढ़ेगी। लेकिन हाईकोर्ट ने सख्ती दिखाई तो मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने कोविड गाइड लाइन का पालन करने और 72 घंटे पूर्व की आरटीपीसीआर जांच रिपोर्ट को अनिवार्य कर दिया। तीरथ सिंह रावत ने संतों पर हैलीकाप्टर से पुष्प वर्षो कराई और उनके मन की मुराद पूरी कर दी। लेकिन बाद में कदम पीछे खीचे और बार्डर पर सख्ती कराई। लेकिन हरिद्वार में तब तक श्रद्धालुओं का प्रवेश हो चुका था। कुंभ का समापन भी नही हो पाया था कि एकाएक कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर का प्रकोप विस्फोट के रूप में सामने आया। कई संत कोरोना संक्रमित होकर गोलोक पधार गए और हरिद्वार में संक्रमित मरीजों की संख्या में बेतहाशा बृद्धि हो गई।
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत पशोपेश की स्थिति में थे। चिकित्सा प्रबंध नाकाफी थे। कोरोना संक्रमित मरीज अस्पताल में दम तोड़ने लगे। मरीजों को अस्पताल और आक्सीजन की कमी हो गई। निजी अस्पतालों ने लूट खसोट करनी शुरू की। गरीब लोग बिना इलाज के दम तोड़ते रहे। सरकार के मंत्री तक अपने रिश्तेदारों को अस्पताल में भर्ती कराने के लिए गिडगिड़ाते रहे। केबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत का एक ऐसा ही वीडियो खूब वायरल हुआ। प्रदेश की जनता का भाजपा सरकार से नाराजगी का सिलसिला शुरू हो चुका था। वही नेतृत्व परिवर्तन के बाद मंत्री बने विधायक फूल मालाओं से स्वागत कराने में मशगूल थे। वह प्रशा​सनिक अधिकारियों को सुधारने की चेतावनी देते घूम रहे थे। जबकि जनता की नाराजगी भाजपा विधायकों से बढ़ती जा रही थी। मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत के अटपटे बयानों पर जनता सिर खुजला रही थी। प्रदेश की जनता को सुरक्षित बचाने के लिए ​की जाने वाली तमाम तैयारियों में सरकार की लापरवाही की पोल भी खुली।
मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत अपनी कुर्सी पर ठीक तरीके से बैठ नही पाए और चुनौतियों का अंबार लग गया। भाजपा विधायकों को नेतृत्व परिवर्तन की खुशी मिली और प्रदेश की जनता को अपनो को खोने का गम मिला। यही कारण है कि भाजपा विधायकों से जनता बुरी तरह से नाराज है और उनको जबाब देने के लिए विधानसभा चुनाव का इंतजार कर रही है। वैसे बताते चले कि भाजपा विधायकों के कारनामों ने ही कांग्रेस के लिए 2022 के लिए सत्ता की राह आसान कर दी है। कांग्रेस में अगर सिर फुटोव्वल नही हुई तो जनता उनके स्वागत को तैयार है।



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