संतों की धींगामुश्ती से सनातन की फजीहत, मारपीट गुत्मगुत्था के बाद समझौता




Listen to this article

न्यूज 127.
प्रयागराज में संतों के दो गुटों के बीच हुई मारपीट के मामले में अब दोनों पक्षों के बीच समझौते की खबर सामने आ रही है। ऐसे में जनता सवाल पूछ रही है कि पहले लड़कर क्यों सनातन और संतों की फजीहत करायी। समझौता ही करना था तो झगड़ा ही क्यों किया। प्रयागराज में मेलाधिकारी विजय किरन आनंद की मध्यस्थता में दोनों पक्षों ने घटना पर पश्चाताप किया। इसके साथ ही अपनी-अपनी शिकायतें वापस ले ली।


विदित हो कि गुरुवार को मेला प्राधिकरण सभागार में अखाड़ा परिषद के दोनों पक्ष आमने-सामने आ गए थे। फिर देखते ही देखते सभागार में जमकर लात-घूसें चले। मेलाधिकारी की मध्यस्थता के बाद गुरुवार को दूसरे धड़े ने न सिर्फ भूमि का निरीक्षण किया, बल्कि पुलिस कमिश्नर और मेलाधिकारी को दी शिकायत भी वापस ले ली। इसके अगुआ और श्री पंच निर्मोही अनि अखाड़े के अध्यक्ष राजेंद्र दास के अनुसार, अखाड़ों में भिड़ंत और संतों की लड़ाई से दुनिया में गलत संदेश जा रहा है। यही कारण है कि राष्ट्र, सनातन संस्कृति और महाकुंभ को दिव्य-भव्य बनाने के लिए शिकायत को वापस ले लिया है। इस संबंध में दोनों ओर से मेलाधिकारी को लिखित में भी दिया गया है। दूसरी ओर अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रविंद्र पुरी और जूना अखाड़े के अध्यक्ष प्रेम गिरी ने भी अपनी शिकायत वापस ले ली।


भले की समझौते को आपसी सौहार्द के रूप में देखा जा रहा है और प्रचारित किया जा रहा है, किन्तु वास्तविकता कुछ और ही बतायी जा रही है। सूत्रों की मानें तो बड़े दवाब के चलते सुरमाओं ने यह कदम उठाया है। यदि समझौता न किया जाता तो कुंभ के दौरान सुरमाओं की दुर्दशा होना तय था। भले की समझौता हो चुका है, किन्तु आग पर राख डालने से आग एकदम नहीं बुझा करती। ठीक ऐसा ही हाल समझौते का भी बताया जा रहा है। कुछ उपद्रवी भगवाधारी मामले को इतना जल्दी शांत नहीं होने देंगे और जिस प्रकार की कथित संतों द्वारा संतों के प्रति भाषा का प्रयोग किया गया और आरोप लगाए गए, उसकी चिंगारी बुझने वाली नहीं है। इस कारण से सचेत रहने की हर पल जरूरत है।



Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *