नवीन चौहान
कुंभ पर्व 2021 का आगाज हो चुका है। संत, सरकार, प्रशासन और पत्रकारों ने गंगा पूजन कर लिया है। कुंभ से जुड़े दो शब्द दिव्य और भव्य सरकार से लेकर मेला प्रशासन की जुबां पर रटे रटाए है। खबरों की सुर्खियां भी कुंभ की दिव्यता और भव्यता के दर्शन कर रही है। लेकिन कुंभ महपर्व की सबसे बड़ी शोभा आस्थावान भक्त श्रद्धालु तमाम मुसीबतों का सामना करते हुए बेहद ही कड़ी जांच से गुजर रहे है। कोविड संक्रमण के संबंध में आरटीपीसीआर की 72 घंटे पूर्व की नेगेटिव रिपोर्ट कुंभ क्षेत्र में अनिवार्य है। जबकि तमाम वीवीआईपी बिना आरटीपीसीआर के ही मेला क्षेत्र में भ्रमण कर चुके है। कुंभ कार्यो का निरीक्षण कर चुके है। जिसमें कुछ वीवीआईपी को कोरोना संक्रमण से जूझना भी पड़ा। ऐसे में सबसे बड़ी बात यह है कि कोरोना संक्रमण काल में दिव्य और भव्य कुंभ का आयोजन अपने आप में कई सवाल छोड़ रहा है। अगर कोरोना संक्रमण ने विकराल रूप धारण किया तो जिम्मेदारी किसकी।
कोरोना संक्रमण काल में कुंभ पर्व का आयोजन करना एक चुनौतीपूर्ण कठिन चुनौती निर्णय था। लेकिन धर्म परंपरा और संतों की इच्छा के सामने सरकार की इच्छा शक्ति कमजोर पड़ गई। संतों को सम्मान करते हुए कुंभ पर्व की तैयारियां शुरू की गई। कुंभ बजट जारी हुआ। सीमित कुंभ और डिजीटल कुंभ दर्शन कराने को लेकर योजना बनाई गई। सरकार ने कुंभ पर्व को लेकर तमाम स्थायी और अस्थायी कार्यो को कराना शुरू किया। तमाम पुल, घाट, बिजली, पानी और शौचालय की व्यवस्था की गई। वक्त बढ़ता गया और कुंभ के आयोजन को अंतिम रूप दिया जाने लगा। यहां तक तो सब ठीक रहा। लेकिन कोर्ट ने दखल दी और कोरोना संक्रमण से सभी को सुरक्षित रखने की जिम्मेदारी सरकार और मेला व जिला प्रशासन की तय कर दी। जिसके बाद आरटीपीसीआर जांच को अनिवार्य कर दिया गया। हरिद्वार की सीमा में प्रवेश करने वाले सभी लोगों को 72 घंटे पूर्व की कोरोना नेगेटिव रिपोर्ट जरूरी कर दी गई। सीमाओं पर चेकिंग प्वाइंटस बना दिए गए। आरटीपीसीआर जांच शुरू करने का कार्य तेजी से शुरू हो गया। लेकिन कुंभ पर्व में आने वाले तमाम वीवीआईपी और वीआईपी मेला प्रशासन और जिला प्रशासन के लिए मुसीबत का सबब बनने लगे। तमाम चुनौतियों के बीच वीवीआईपी के प्रोटोकाल का अनुपालन करना और जनता को सुरक्षित बचाना प्रशासन के लिए किसी अग्निपरीक्षा से कम नही है। वही दूसरी ओर बात करें संतों की तो दो गज की दूरी तो बस कागजों में है। मास्क भी चुनिंदा संतों के चेहरे पर दिखाई देंगे। संतों का समागम ऐसा कि मानो कोई कीर्तिमान स्थापित करने की होड़ हो।
आखिरकार कोरोना काल में संतों को आस्था और जनता की जिंदगी के बीच में कोविड गाइड लाइन के अनुपालन के संदेश की बेहद जरूरत है। मास्क और दो गज की दूरी तो बेहद ही जरूरी है। लेकिन क्या संत कर पायेंगे। शायद असंभव सी प्रतीत होने वाली बात है। हरिद्वार में अगर सबकुछ ठीक रहेगा तो मां गंगा की कृपा ही मानो। वैसे हालत तो कुछ और ही इशारा कर रहे है। कोविड से सावधानी आपके जीवन में सबसे पहले है। कुंभ स्नान तो अगली बार हो जायेगा। लेकिन कोरोना के डंक ने डंस लिया तो ठिकाना ही बदल जायेगा।