नवीन चौहान.
स्वामी श्रद्धानंद की कर्मस्थली गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्वालय के सुनहरे भविष्य की पहली किरण चमकती हुई दिखाई दे रही है। यूजीसी ने गुरूकुल के इतिहास में पहली बार महिला कुलपति प्रोफेसर हेमलता को कुलपति पद के दायित्वों का निर्वहन करने की जिम्मेदारी दी है।
प्रोफेसर हेमलता का संपूर्ण शिक्षा से जुड़ा हुआ है। उन्होंने अपने शैक्षिणिक जीवन में कई कीर्तिमान स्थापित किए। 32 बच्चों को पीएचडी की उपाधि दिलाई तो अंग्रेजी के बच्चों के लिए ज्ञानर्वद्धक पुस्तकें लिखी। शिक्षा के क्षेत्र में कई पुरूस्कार मिले। ईमानदारी और पारदर्शी कार्यशैली को पसंद करने वाली प्रोफेसर हेमलता एक सरल हृदय की महिला है। उन्होंने अपने जीवनकाल में ईमानदारी और सच्चाई के मार्ग का अनुसरण किया। शिक्षा के क्षेत्र में उनकी लगन और मेहनत को देखते हुए ही यूजीसी ने भी गुरूकुल के इतिहास को बदलकर एक महिला को कुलपति पद सौंप दिया। न्यूज127 ने प्रोफेसर हेमलता से खास बातचीत की और उनके दूरदर्शी विजन को जानने का प्रयास किया।
विदित हो कि गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्वालय की पहली महिला कुलपति प्रोफेसर डॉ हेमलता को गुरूकुल कांगड़ी के अस्तित्व को बचाने की चुनौती है। एक और गुरूकुल को आंतरिक राजनीति से निजात दिलाकर उसके पुराने गौरव को दिलाने की चुनौती है। वही दूसरी और आर्य प्रतिनिधि सभाओं और भारत सरकार के बीच सामन्जस्य बैठाने का कठिन लक्ष्य भी है। इसी के साथ विश्वविद्वालय में पारदर्शिता से नियुक्तियों कराना और परिसर में फैले आंतरिक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना भी प्राथमिकताओं में शुमार है।
एक परिचय: गुरूकुल कांगड़ी की कुलपति प्रोफेसर हेमलता का जन्म तमिलनाडु के मददुरई में साल तीन जनवरी साल 1961 को हुआ। माता-पिता के संस्कारों का हेमलता पर अमिट प्रभाव पड़ा। तीन बहनों में सबसे बड़ी बेटी हेमलता ने शिक्षा को ही अपना कैरियर बनाया। अपने जीवन में दूसरों के लिए कुछ अच्छा करना है। इसके लिए शिक्षा के क्षेत्र से बड़ा कोई माध्यम नहीं हो सकता है। उन्होंने बताया कि जब कोई बच्चा उनके पास पढ़ने के लिए आया तो उन्होंने अपने से योग्य बनाने का प्रयास किया। उन्होंने 32 बच्चों को पीएचडी की उपाधि दिलाने में महती भूमिका अदा की।
उन्होंने बताया कि वह गुरूकुल कांगड़ी में अंग्रेजी विभाग प्रमुख के तौर पर अपना कार्य कर रही थी। अचानक एक पत्र उनको मिला। जब पत्र खोलकर देखा तो पता चला कि कुलपति के पद का दायित्व उनको सौंपा गया है। एक महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली तो उनको खुशी से ज्यादा दायित्वों के भार की अनुभूति जरूर हुई। उन्होंने कहा कि वह किसी भी कार्य को पूरी ईमानदारी, निष्ठा और समर्पण के साथ करने में विश्वास रखती है। कुलपति के तौर पर भी इसी तरह कार्य करती रहेगी। गुरूकुल को यूजीसी के मानकों के अनुरूप व आर्य समाज के नियमों का पालन करते हुए संचालित करने का प्रयास करूंगी।
प्रोफेसर हेमलता ने बताया कि वह अपना सबसे बड़ा आदर्श अपने माता-पिता को मानती है। उनके दिए हुए संस्कारों ने आज उनको इस मुकाम तक पहुंचाया है। तमिल भाषा के अलावा अंग्रेजी विषय की वह प्रोफेसर है। लेकिन देवभाषा संस्कृत और मातृ भाषा हिंदी का उन्होंने खूब अध्ययन किया है। प्रोफेसर हेमलता ने बताया कि भारत की नई शिक्षा नीति को सर्वश्रेष्ठ बताया। उन्होंने कहा कि बच्चों का भविष्य बेहद उज्जवल होने वाला है।