नवीन चौहान
उत्तराखंड प्रदेश की स्थापना को 20 साल पूरे हो गए और 9 नवंंबर से 21वां साल शुरू हो रहा है। नेता और अधिकारी प्रदेश स्थापना के इस उल्लास में शामिल हो रहे हैं। लेकिन आज भी प्रदेश अपना बुनियादी ढांचा या आधारभूत ढांचा स्थापित नहीं कर सका है। प्रदेश की आर्थिक व्यवस्था चलाने के लिए बार—बार कर्जा लेना पड़ रहा है। प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों और पेंशन तक के लिए केंद्र सरकार पर निर्भर रहना पड़ रहा है। गरीब आज भी गरीब है और आजीविका के संसाधन न होने के चलते हुए पलायन पूरे 20 साल में नहीं रूक सका। प्रदेश की जवानी और पानी काम नहीं आ सकी। सत्ता में बैठे नेता केवल अपनी ढपली अपना राग की अलाप रहे है। केवल पद पाने की इच्छा और मलाई चाटना ही उनका मकसद रहा है। हरीश रावत की सरकार में मलाई चाटने के चक्कर में 9 विधायक भाजपा में शामिल हो गए। नतीजा यह निकला की प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा। नारायण दत्त तिवारी की सरकार का विजन और विकास ही प्रदेश में औद्योगिक और विकास की रफ्तार को बढ़ा गए थे। उस रफ्तार पर चलना तो दूर उसे चलाना भी मुश्किल हो रहा है। केवल निवेश की खोखली बातें की जाती हैं। दावा किया जाता है कि प्रदेश में निवेश हो रहा है, लेकिन धरातल पर यह बातें शून्य है। ऐसा नहीं है कि प्रदेश में सत्ता पर केवल किसी एक ही दल का वर्चस्व रहा। प्रत्येक पांच साल बाद सत्ता के चेहरे जनता बदलती रही। हालांकि प्रदेश में हर साल आपदा के जख्म जरूर होते हैं, जिन्हें भरने में समय और धन का बजट हिस्सा खर्च करना पड़ता है।
प्रदेश निर्माण के बाद पहले भाजपा, 2002 में कांग्रेस, 2007 में भाजपा, 2012 में कांग्रेस और अब 2017 से भाजपा सत्ता में काबिज है। प्रदेश निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली उत्तराखंड क्रांति दल दम तोड़ चुकी है। प्रदेश की सत्ता कांग्रेस और भाजपा पर ही निर्भर रह गई है। अब किसी भी दल के द्वारा मुद्दों की राजनीति करना और उन्हें उठाने का काम गायब सा ही हो गया है।
इस बार केंद्र और राज्य में डबल इंजन की सरकार काम कर रही है। सत्ता बदलती रही, लेकिन प्रदेश आय के लिए अपने संसाधन तैयार नहीं कर पाई। त्रिवेंद्र सरकार पहले भारतीय रिजर्व बैंक से 2100 करोड़ का कर्जा ले चुकी हैं और फिलहाल भी करीब 3000 करोड़ की फाइल चल रही है। लेकिन बड़ा सवाल बार—बार यह उठ रहा है कि प्रदेश आत्मनिर्भर कैसे बनें।
अब कोरोना संक्रमण के कारण अन्य राज्यों से अपने घर लौटे प्रवासियों को रोजगार के साथ उनकी आजिविका के संसाधन उपलब्ध कराना चुनौती है।
हालांकि प्रदेश का साल का बजट 53 हजार करोड़ से ज्यादा का हो गया है। इस बजट में केंद्र सरकार ही सहयोग करती है। राज्य की अर्थव्यवस्था खनन, शराब, कृषि, बागवानी, पशुपालन, वन, विनिर्माण, व्यापार, पर्यटन, होटल, रेस्टोरेंट पर चल रही है। इसमें सबसे बड़ी आय शराब और खनन से हो रही है। इस साल तो कोरोना से आर्थिकी की कमर पूरी तरह से टूट गई। हालांकि प्रदेश में सरकारें बदलती रही है।
उत्तराखंड के वित्तीय वर्ष 2020-21 पर एक नजर
प्रदेश का 53 हजार करोड़ रुपये का बजट पहुंच गया है। इसमें राजकोषीय घाटा 7549.74 करोड़ है। इस पर काबू पाने के लिए चुनौती कम होने के बजाय बढ़ी हैं।
— वर्ष 2020-21 के लिए 53526.97 करोड़ का राजस्व प्लस बजट
– राजस्व प्राप्तियां 42439.33 करोड़ व पूंजीगत प्राप्तियां 9984.59 करोड़
-राज्य का कर राजस्व 13760.75 करोड़ व करेत्तर राजस्व 3539.42 करोड़ अनुमानित
-49.66 करोड़ का राजस्व सरप्लस बजट, 7549.74 करोड़ राजकोषीय घाटे का अनुमान
-राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 2.57 फीसद, एफआरबीएम एक्ट की सीमा के भीतर।