- त्वचा संबंधी रोग और दमा जैसी बीमारियों को बन जाती है कारण
न्यूज 127.
मोदीपुरम स्थित भारतीय कृषि प्रणाली अनुसंधान संस्थान में गाजर घास जागरूकता सप्ताह का शुभारंभ किया गया। 16 अगस्त से शुरू हुए जागरूकता सप्ताह का शुभारंभ संस्थान के निदेशक डॉ सुनील कुमार ने किया।
इस दौरान अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि कुछ वर्षों पहले तक यह घास सिर्फ अनुपयोगी भूमि, बंजर भूमि, रेलवे लाइन के किनारे या सड़क के किनारे खाली पड़ी जमीन में ही पायी जाती थी। परंतु आज इसने हमारी खेती योग्य भूमि में भी प्रवेश कर लिया है। यह घास हमारी फसलों को नुकसान पहुंचा रही है। गाजर घास से निकलने वाले एलिलो केमिक्लस स्थानीय वनस्पतियों का अंकुमरण कम कर धीरे धीरे उन्हें विस्थापित कर देते हैं। इसीलिए यह जैव विविधता के लिए खतरा है। उन्होंने इस हानिकारक गाजरघास को नियंत्रित करने एवं इसके उन्मूलन के लिए सदैव तत्पर रहने के लिए वैज्ञानिकों और किसानों को आगाह किया।
डॉ राघवेंद्र सिंह विभागाध्यक्ष सीएसआरएम ने गाजरघास के दुष्प्रभावों के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि गाजर घास के लगातार संपर्क में रहने से मनुष्यों में त्वचा सम्बंधी रोग (डर्मीटाइटिस), एलर्जी, बुखार, दमा इत्यादि बीमारियां हो जाती है। इस कार्यक्रम के दौरान उपस्थित लोगों ने संस्थान के प्रक्षेत्र पर गाजर घास को उखाड़ा।
इस कार्यक्रम में डॉ आरपी मिश्रा, डॉ पीसी जाट, डॉ चन्द्रभानु, डॉ सुरेश मलिक, डॉ पुष्पेंद्र सिंह, डॉ सुनील कुमार, डॉ पीसी घासल, डॉ निर्मल, संस्थान के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी अशोक कुमार समेत अन्य अधिकारी और कर्मचारियों ने अपनी सहभागिता दी। कार्यक्रम के अंत में डॉ मोहम्मद आरिफ ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।