विजय सक्सेना
हरिद्वार के कबाड़ियों की पुलिस थाने में मजबूत पकड़ है। कबाड़ियों का थाने में रसूक है। थानेदार से लेकर सिपाही तक कबाड़ियों को बड़ा आदर देते है। यही कारण है कि कबाड़ियों के यहां से बरामद होने वाले चोरी के सामान का मुकदमा तक दर्ज नही होता। इस पूरे खेल के पीछे पुलिस को मिलने वाला नजराना तो नही है। कमोवेश यह हाल तो जनपद के सभी थाना क्षेत्रों का है। जहां पिछले कुछ दशकों के भीतर कबाड़ियों के रसूक में जबरदस्त उछाल आया है।
छोटा-मोटा कबाड़ बीनने वाले अब कबाड़ के बड़े कारोबारी बन गए है। इन कारोबारियों ने अपने यहां पर रेहड़े लगाए हुए है। जो कबाड़ को बीनने का काम करते है। इसी के साथ निर्माणाधीन मकानों की रैकी भी करते है। जहां से सरिया, बिजली व अन्य सामान को चोरी कर कबाड़ की दुकान पर बेच देते है। धीरे-धीरे ये कबाड़ी पुलिस को मिठाई और नजराना पेश करते है। पुलिस थानों का स्कैप खरीदते है। वह यही से पुलिस और कबाड़ियों की दोस्ती शुरू हो जाती है। जिसकी सबसे बड़ी मार गरीब जनता पर पड़ती है। गरीबों के यहां चोरी हो जाए तो पुलिस कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने का हवाला देकर टहला देती है। इसी के चलते कबाड़ियों के खिलाफ मुकदमे दर्ज नही होते।
हरिद्वार के कुछ कबाड़ी पुलिस के मुखबिर होने का दावा करते है। पुलिस को छुटभैयया चोर पकड़वा देते है। जिससे पुलिसकर्मियों का विश्वास को जीतने में भी सफल होते है। पुलिस थानों में होने वाले छोटे मोटे कार्य को मुफ्त में कराने में कबाड़ियों का बड़ा योगदान रहता है। फिलहाल तो हरिद्वार के कबाड़ियों की पुलिस थानों में जबरदस्त सेटिंग है। पुलिस की कबाड़ियों से दोस्ती की मार गरीब जनता को सहनी ही पड़ेगी। क्षेत्र के एक कबाड़ी ने नाम नही छापने की शर्त पर बताया कि थाने को नजराना तो देना ही पड़ता है। लेकिन सिपाहियों की इच्छाओं को पूरा करना भारी पड़ता है।