मरीजों के बीच गुजारा बचपन तो अब खुद डॉक्टर बनकर सेवा करेगा अस्तित्व




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न्यू देवभूमि हॉस्पिटल के चेयरमैन डॉ सुशील शर्मा के बेटे अस्तित्व का एमबीबीएस डॉक्टर बनने का सपना साकार

न्यूज 127
न्यू देवभूमि हॉस्पिटल के चेयरमैन डॉ सुशील शर्मा के बेटे अस्तित्व शर्मा का नीट एग्जाम पास करने के बाद एमबीबीएस डॉक्टर बनने का नया सफर शुरू हो चुका है। अस्तित्व शर्मा ने नीट के एंट्रेंस एग्जाम के पहले प्रयास में ही सफलता हासिल की। नीट एंट्रेंस का परिणाम जारी होने के बाद ही डॉ सुशील शर्मा और उनके परिवार को बधाई देने वालों का तांता लगा गया। अस्तित्व की सफलता पर उनके परिजनों को शुभकामनाएं मिल रही है। जबकि अस्तित्व ने अपनी इस सफलता का श्रेय माता-पिता को दिया और दादी मां के पैर छूकर आशीर्वाद लिया।

हरिद्वार के रानीपुर मोड़ स्थित न्यू देवभूमि हॉस्पिटल के चेयरमैन डॉ सुशील शर्मा के सुपुत्र अस्तित्व शर्मा बचपन से ही पढ़ाई में बेहद होनहार और प्रतिभावान रहा। डीपीएस रानीपुर में स्कूली शिक्षा अर्जित की और अपनी प्रतिभा के जौहर दिखलाए। सीबीएसई की 10वीं की बोर्ड परीक्षा में डीपीएस रानीपुर के छात्र अस्तित्व शर्मा ने टॉपर में स्थान बनाने की कामयाबी हासिल की। 10वीं का रिजल्ट आने के बाद अस्तित्व ने डॉक्टर बनने के लक्ष्य चुना। डॉक्टर बनने के सपने के बारे में पिता डॉ सुशील शर्मा को बताया और आगे की पढ़ाई दिल्ली जाकर करने की इच्छा जताई।

डॉ सुशील शर्मा ने अपने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए उसको दिल्ली भेजने की अनुमति दे दी। जिसके बाद उसकी आगे की पढ़ाई दिल्ली में कराने के लिए मां रूचि शर्मा उसके साथ रही। बेटे अस्तित्व ने डॉक्टर बनने के लिए मन लगाकर पढ़ाई की और सोशल मीडिया से दूरी बना ली। अस्तित्व के करीब दो सालों के अथक प्रयास ने डॉ बनने के सपने को साकार किया। बेटे की सफलता पर मां रूचि शर्मा ने मंदिर में जाकर पूजा अर्चना की भगवान को धन्यवाद दिया। जिसके बाद दादी मां शांति देवी का आशीर्वाद लिया। मां रूचि शर्मा ने बताया कि अस्तित्व की मेहनत का परिणाम है। जो उसके मन की इच्छा पूरी हुई है। एक मां के लिए सबसे ज्यादा खुशी का पल है। बेटा डॉक्टर बनकर आयेगा तो समाज की सेवा करेगा।

डॉ सुशील शर्मा ने बताया कि उसकी डॉक्टर बनने की इच्छा थी। हमने उसको अपनी प्रतिभा को साबित करने का मौका दिया। उसने लक्ष्य हासिल किया तो बेहद खुशी हो रही है। अस्तित्व ने बताया कि बपचन से घर का वातावरण डॉक्टर और मरीजों के बीच में देखा। पिता डॉक्टर थे तो मरीजों को, उनकी बीमारियों को देखने और समझने को मिलता था। पिता को मरीजों की सेवा करते देखा तो दिल में इच्छा हुई कि में भी डॉक्टर बनूंगा। 10वीं के बाद नीट एग्जाम की तैयारी शुरू कर दी और माता-पिता के आशीर्वाद से यह सफलता मुझे मिल गई है। आगे का सफर अब मेडिकल कॉलेज से शुरू होगा।