कोरोना ने भारत को दिखा दी उसकी असली तस्वीर, बेरोजगारी और गरीबी का दौर शुरू, वेतन घटे




नवीन चौहान
कोरोना संक्रमण ने भारत को असली तस्वीर दिखा दी है। गरीबी, भुखमरी और बेरोजगारी का दौर शुरू हो गया है। कारोबार ठप्प पड़ चुके है। युवा बेरोजगार हो चुके है। कंपनियों में उत्पादन बंद है। इंसान पेट और जिंदगी से जंगल लड़ रहा है। पेट की भूख मिटाने के लिए जिंदगी को खतरे में डालकर मजदूरी करने को विवश है। अगर कोरोना काल के बीते पांच महीनों की बात करें तो वास्तविकता ये है कि गरीब, मध्यमवर्गीय परिवारों की आर्थिक हालात बद से बदत्तर हो चुके है। बड़े औद्योगिक घरानों के गले—गले फंसी पड़ी है। वह कंपनी चला भी नही पा रहे और बंद करने की स्थिति में भी नही है। आखिरकार कोरोना ने भारत में भारी तबाही मचा दी है। आने वाले दिनों में कोरोना संक्रमण के चलते अर्थव्यवस्था पर पड़े भयावह परिणामों की तस्वीर दिखाई देंगी। जब युवा बेरोजगार अपराध की राह पर होंगे। अपने परिवार का पेट भरने के लिए चोरी, लूटपाट और हत्या तक करने पर आमादा होंगे।
साल 2020 का मार्च महीने में चीन के बुहान से कोरोना महामारी ने भारत में दस्तक दी। कोरोना एक प्राणघातक संक्रमण जो एक इंसान से दूसरे इंसान को अपनी चपेट में लेता है और इंसान की जिंदगी को लील लेता है। इस महामारी की रोकथाम के लिए कोई वैक्सीन नही है। ऐसे हालातों में भारत में संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लॉक डाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का फार्मूला अपनाया। 22 मार्च 2020 को लॉक डाउन के पहले सप्ताह में ही भारत में त्राहिमाम मच गया। गरीबों को रोटी और राशन का संकट उत्पन्न हो गया। केंद्र सरकार को कोरोना से सबसे पहली चुनौती गरीबों का पेट भरने की रही। सरकार की पहल पर गरीबों को रोटी, राशन दिया गया। देश की जनता घरों में रहकर लॉक डाउन का पालन करती रही। लेकिन लॉक डाउन के बाद से जो देश की जनता पर बीता वो दर्दनाक रहा। देश की गरीब जनता के घरों में सब्जी खरीदने तक के पैंसे नही रहे। दुकानदारों ने उधार देना बंद कर दिया। जनता घरों में भूखे रहने लगी। वक्त धीमी रफ्तार से आगे बढ़ा तो मुसीबतों का दौर भी बढ़ता चला गया। सरकार ने जनता की परेशानी और भुखमरी की समीक्षा करने के बाद लॉक​ डाउन में छूट दी। लेकिन इसका कोई फायदा जनता को नही मिला। क्योकि बाजारों में सन्नाटा पसरा रहा। प्रतिष्ठानोें में कार्य करने वाले कर्मचारियों को छुटटी दे दी गई। लोगों को वेतन मिलना बंद हो गया। हद तो तब हो गई जब सिडकुल क्षेत्रों की नामी कंपनियों ने भी बिना काम के वेतन देने से इंकार कर दिया। सरकार इंडस्ट्री के आगे विवश हुई और कंपनियों को चलाने की अनुमति दे दी गई। कंपनियों ने उत्पादन किया तो उनके निर्मित माल की डिलीवरी नही हो पाई। बाजार से ग्राहक नदारद थे। जिसके बाद कंपनियों से नौकरी से निकाले जाने का दौर शुरू हो गया। बेरोजगारी चरम की ओर बढ़ने लगी। कोरोना के खतरनाक प्रभाव जनता के चेहरे पर दिखने लगे। सरकार कोरोना और जनता की बेबसी के सामने कुछ करने की स्थिति में नही थी। वक्त बीता और पांच माह के बाद देश के जो हालात बने वह बेहद ही भयावय दिखाई पड़े। शिक्षित नौकरी पेशा युवक बेरोजगारी के आलम में घरों पर बैठे है। लोगों के पास आजीविका का कोई साधन नही है। केंद्र व राज्य सरकार कारोबार संचालित करने के लिए जनता को ऋण देने पर आमादा है। पर जनता के पास कारोबार करने की इच्छा शक्ति नही है। शिक्षण संस्थान बंद पड़े है और अस्पतालों में रौनक दिखाई पड़ रही है। जनता में बस कोरोना की चर्चा है। आने वाले दिनों के हालात कैसे होंगे इसका अंदाजा लगाना संभव नही है। लेकिन एक बात तो साफ है कि कोरोना ने भारत की वास्तविक तस्वीर दिखा दी है। भारत की जनता तब भी गरीब थी और आज भी गरीब ही है। सरकार के पास देश की जनता को देने के लिए वायदों के अलावा कुछ नही है। कोरोना का ये वो दौर है जब कर्मचारियों के वेतन में कटौती की जा रही है और कर्मचारी चुप है। ये ही कोरोना और भारत की अर्थव्यवस्था की सच्ची हकीकत।



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